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________________ मलार में महेश्वर लेखक, श्रीयुत कुमारेन्द्र चटर्जी, बी० ए०, __एल-टी०, और श्रीयुत गणेशराम मिश्र भारत का प्राचीन इतिहास उसके प्राचीन ध्वंसावशेषों में कितना अधिक छिपा हुआ है, यह बात दिन प्रतिदिन अधिकाधिक प्रकट होती जाती है। यह लेख उसका एक नया प्रमाण है। उस लेख में यह बतलाया गया है कि मलार गाँव के निवासियों ने अपने देवमन्दिर निर्माण की कामना से एक प्राचीन टेकरी को खोदकर मध्यकालीन इतिहास पर कितने महत्त्व का प्रकाश डाला है। [महेश्वर के मन्दिर के भीतर की भूति] main स परिवर्तनशील संसार में श्रादि- वे कीर्ति-प्रेमी बड़े दूरदर्शी थे, जिन्होंने अपने मनोगत PE काल से लेकर आज तक कितने भावों को एक ऐसे अमिट साधन-द्वारा व्यक्त किया जो कितने परिवर्तन हुए, इसका पता कई सदियों के पंच-तत्त्वों के ग्राघातों को सहते हुए भी अपने is २ र लगाना कठिन है । लोगों ने अपने समय के प्रभुत्रों की कथा कहने के लिए निर्जीव होते हुए Ema को अजर और अमर समझा और भी जीवित बने हुए हैं। अपना विस्तार बढ़ाया। मदोन्मत्त पुरातत्त्ववेत्ताओं ने अनेक स्थानों पर इन धराशायी सत्ताधीशों ने असहायों को ध्वंस किया और अपना प्रभुत्व कथाकारों द्वारा उनके प्रभुत्रों की सामाजिक, ऐतिहासिक जमाया । पृथ्वी पर वे अपने को अजेय समझकर अपना और सभ्यता-पूरित कथायें सुनने और समझने का प्रयत्न ताण्डव नृत्य करते रहे, पर अन्त में मेदिनी को 'मेरी’ 'मेरी' किया है और संसार के कोने कोने में उनका कीर्ति-ढिंढोरा कहते कहते काल के गाल में समा गये । परन्तु उन लोगों पीटा है । तथापि भारत के अनेकानेक स्थान अभी वे-देखेने कीर्ति-स्थापनार्थ नाना प्रकार के जो देवालय, प्राचीर, सुने' पड़े हुए हैं। भूगर्भ में अभी अनेक रहस्यमय स्थान कलागार, स्तूप, स्तम्भ इत्यादि स्थापित किये थे वे अब छिपे हुए हैं, जिनका पता समय ही दे सकेगा और तब भी भतल पर या भूगर्भ में पड़े पड़े उनके समय की भारत के शृंखलाबद्ध प्राचीन इतिहास का पूरा पता लग वस्तु-स्थिति की घोषणा और उनकी धर्मपरायणता का सकेगा। परिचय देने के लिए त्व बनाये हुए हैं । यदि प्राचीनता का पता देनेवाला एक ऐसा ही भूगर्भशायी और सभ्यता की कथा स्थान 'महामाया' की कृपा से अपढ़ कृषकों द्वारा मध्य पर केवल लेखनी-द्वारा प्रान्तगत विलासपुर-ज़िले में खोजा जा चुका है। इस नाव पर खुदाई दिन रहता । पर प्राचीन स्थान का नाम 'मलार' है। यह स्थान बिलासपुर फा.७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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