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________________ संख्या ५] भाई परमानन्द और भूले हुए हिन्दू प्रति अपनी अज्ञता प्रकट करना है। इस प्रकार हिन्दू-सभा व्यक्ति से यह आशा करना अनुचित नहीं है कि वे इस या मुसलिम-लीग का यह दावा कि वे हिन्दुओं या मुसल- अन्तर को भले प्रकार समझे और उसमें कोई मौलिक और मानों के हित-चिन्तन में लगी हुई हैं, 'बिलकुल रद हो वास्तविक भेद न करें। जाता है। उनके तो हित एक हैं और उसकी रक्षा भी भाई जी का यह कहना भी ठीक ही है कि कांग्रेस भी वही संस्था कर सकती है जिसका द्वार सबके लिए खुला स्वयं उस वातावरण से प्रभावित हुई जैसा कि वह अाज हुआ हो और जो अपनी शक्ति के लिए सबकी शक्ति और भी होती है। यह तो प्रत्येक जीवित संस्था का लक्षण संगठन पर निर्भर रहती हो । परन्तु भाई जी यह सब जान- ही है । पर वास्तविक और महत्त्वपूर्ण प्रश्न तो यह है कि कर भी नहीं जानना चाहते और वे हिन्दू-सभा के दृष्टिकोण राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय तथा शिक्षा और अनुभव के फलको ही सब बातों में आगे रखना उचित समझते हैं। स्वरूप जो चन्द लोग अपने अन्य भाइयों की अपेक्षा - अब भाई जी के उक्त लेख के विचारों की अोर श्राइए। अधिक लाभ उठा लेते हैं और उनसे अधिक जागृत हो भाई जी इस बात को तो स्वीकार करते हैं कि आज देश में जाते हैं वे उस जागृति का किस प्रकार उपयोग करते हैं। राजनैतिक जागृति उत्पन्न हो चुकी है, किन्तु वे कांग्रेस को यदि वे लोग संगठित होकर एक संस्था के रूप में उस -इसका श्रेय नहीं देना चाहते। वे महात्मा गांधी का केवल जागृति का अन्य लोगों में भी प्रचार करते हैं और उनकी इस बात का 'क्रेडिट' देने को तैयार हैं कि उन्होंने भी विचार-धाराओं में परिवर्तन उत्पन्न करने में सफल हो "सत्याग्रह-आन्दोलन चलाने में इसे इस्तेमाल कर लिया जाते हैं तो हम उसी संस्था को इस जागृति के उत्पन्न करने और कांग्रेस का नाम बढाया।" उनकी राय में देश में का श्रेय देते हैं। क्या कांग्रेस ने इस प्रकार देश में जागृति जो जागृति उत्पन्न हुई है वह केवल महायुद्ध के कारण | नहीं उत्पन्न की ? क्या उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं इसमें संदेह नहीं कि महायुद्ध का प्रभाव भारतवर्ष पर भी ने इस लम्बे-चौड़े मुल्क के गाँव गाँव में जाकर वहाँ की पड़ा जैसा कि संसार के अन्य देशों पर पड़ा, और भारत- सोती हुई जनता के कानों में जागृत और जीवित संसार वासियों में जागृति उत्पन्न हुई। किन्तु अाज की दुनिया की झनकार नहीं डाली ? क्या उन्होंने उन तक मुल्क के अन्दर जब एक देश का दूसरे देश से रेल, तार, डाक की आज़ादी और प्रात्म-विश्वास का सन्देश नहीं पहुँचाया ? आदि के द्वारा इतना घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित होगया है, क्या भाई जी का यह ख़याल है कि भारतवर्ष की ३५ करोड़ यह बात तो प्रतिदिन हमारे जीवन में घटती ही रहती है जनता में से प्रत्येक के अन्दर जो जागृति और देश-प्रेम कि हमारी विचारधाराओं पर न केवल हमारी शिक्षा, की मात्रा पाई जाती है वह उनके निजी अध्ययन, हमारे देश की परिस्थिति, किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय बातों का भी अनुभव और संसार की परिस्थितियों को स्वयं समझ सकने प्रभाव पड़ता है, यद्यपि यह प्रभाव हम लोग प्रतिदिन न का परिणाम है ? जिस देश में ९२ फी सदी लोग गांवों तो अनुभव ही कर सकते हैं और न अपनी विचारधारात्रों में अशिक्षा का जीवन व्यतीत करते हों उनके विषय में का इस प्रकार विश्लेषण ही कर सकते हैं कि इसका कितना यह सोचना तो साफ़ भूल होगी। यह नहीं कहा जा सकता अंश और कौन-सा किस परिस्थिति का परिणाम है, और न है कि यह जागृति उन लोगों के द्वारा उत्पन्न की गई है इस प्रकार के विश्लेषण की कोई अावश्यकता ही जान जो स्वयं लड़ाई के मैदानों में अन्य देशों के लोगों के पड़ती है। केवल इतना ही जान लेना पर्याप्त है कि वर्तमान सम्पर्क में आये और नवीन विचार-धारा लेकर अपने समय में मनुष्य की विचार-गति अनेक राष्ट्रीय और अन्तर्रा-मुल्क को लौटे। इसलिए यह स्वीकार करना ही ष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम है। महायुद्ध के समय का पड़ेगा कि देश की वर्तमान जागृति के उत्पन्न करने में यह प्रभाव अधिक विकसित रूप में पड़ा और इस कारण अधिकांश में कांग्रेस का हाथ रहा है । हाँ, इसमें सन्देह इसका हमें शीघ्र अनुभव हो सका। किन्तु मूल में बात नहीं कि कांग्रेस स्वयं ऐसे लोगों की संस्था थी, जैसा कि वही है । उस समय जो अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव प्रत्येक देश पर वह आज भी है, जो अपने अन्य भाइयों से अधिक जागृत पड़ा था वह आज भी पड़ रहा है। भाई जी जैसे दूरदर्शी अवस्था में थे। ऐसी दशा में यह कह देना कि वर्तमान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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