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________________ संख्या ५ ] में कितना व्यापक क्षेत्र कार्य करने के लिए खाली प्रतियोगिता एक प्रमुख कारण है । ऊपर हम बता चुके हैं पड़ा है— डालर कि किस प्रकार विदेशी कम्पनियों का भारतीय बाज़ार पर प्रभुत्व है 1 वे भारतीय कम्पनियों से जहाँ अधिक सक्षम हैं, १,०७,९४,८०,००,००० वहाँ उनको यहाँ व्यवसाय करने के लिए रियायतें भी बहुत२५,००,००,००,००० सी मिली हुई हैं । उनको भारत सरकार के पास कोई १२,६२,५०,००,००० पूँजी जमा नहीं करनी पड़ती। भारत में बीमे का जो ७,३९,३०,००,००० कुछ कारबार वे करती हैं उसको दिखाने के लिए वे बाध्य - नहीं हैं। इसलिए वे ग्राहक को फँसाने के लिए मनमाना खर्च कर सकती हैं। उन पर इसके लिए कोई बन्धन नहीं ४,५५,८०,००,००० ४,१६,२०,००,००० ५०,००,००,००० ५०,००,००,००० १,७७,१०,००,००० है । 'यूनियन एंश्युरेंस सोसायटी' के मैनेजर मिस्टर डब्ल्यू० १,४०,००,००,००० एच० बाल्कर के कथनानुसार 'बीमा का जहाँ तक ताल्लुक १,११,००,००,००० है, भारत मुक्त वाणिज्यं द्वार का देश है। यहाँ कोई ७१,००,००,००० रक्कम जमा नहीं करनी पड़ती, और नाम मात्र को प्रतिबन्धक - क़ानून है । कर विशेषकर वास्तविक आमदनी पर इन्कमटैक्स भर है।' इससे अन्दाज़ा लगाया जा सकता ३१,००,००,००० है कि विदेशी और भारतीय कम्पनियाँ समान स्थिति में १२,३०,००,००० अपना कारवार नहीं कर रही हैं। इसके मुक़ाबिले में तुर्की, स्पेन, इटली, आस्ट्रेलिया, बैज़िल, चिली, उरुगुश्रा आदि देशों में या तो विदेशी कंम्पनियों के लिए दरवाज़ा एकदम बन्द है या इतने कड़े कानून हैं कि उनको काम नहीं मिलता । सन्तोष की बात इतनी है कि भारत सरकार प्रतिव्यक्ति बीमा ने देशी कम्पनियों की इस दैन्यावस्था को दूर करने का २,३००रु० निश्चय कर लिया है और इस बात को स्वीकार कर लिया १,८०० ११ है कि जिस देश में भारतीयों को बीमा का व्यवसाय करने की मनाही होगी उस देश की कम्पनी इस देश में काम-काज न कर सकेगी। इतना ही नहीं, उसने नये बिल में जो ७५० " ३ फ़रवरी १९३७ को असेम्बली में पेश हुआ है- विदेशी १,००० " ६०० १ अमरीका योरप इंग्लैंड कनाडा जापान जर्मनी आस्ट्रेलिया फ्रांस इटली दक्षिण अफ्रीका डेन्मार्क • दक्षिण अमरीका भारत न्यूज़ीलैंड हमारा देश इस व्यवसाय में कितना पिछड़ा हुआ है, इसका अन्दाज़ा इसी से किया जा सकता है कि हमारे देश में प्रतिव्यक्ति बीमा की रकम ६ ) आती है, जब कि अन्य देशों में - संयुक्त राज्य (अमरीका) कनाडा न्यूज़ीलेंड स्ट्रेलिया इंग्लेंड स्वीडन इटली नार्वे भारतीय बीमा व्यवसाय की प्रगति जापान नीदरलैंड भारत ܕܝ ܘܘܟ ४५० ११ ४०० " ܕܕ ܘܘܘ ३५० १ ६ 33 मार्ग की बाधायें भारत अन्य व्यवसायों के समान इसमें भी पिछड़ा हुआ है। इसके दो कारण हैं। एक बाह्य और दूसरा आन्तरिक । बाह्य कारणों में विदेशी कम्पनियों की तीव्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४५१ कम्पनियों के लिए भारत सरकार के पास पूँजी जमा कराना, और भारत में किये धन्धे का हिसाब अलग रखने और उसकी भारत सरकार के एक्युरेटर द्वारा जाँच कराने का भी विधान किया है। मगर इतना ही काफ़ी नहीं है । भारतीय बीमा कम्पनियाँ संरक्षण चाहती हैं। सरकार की तक की उदासीनता भारतीय बीमा व्यवसाय की उन्नति के मार्ग में बहुत बाधक रही है। सरकार अपना सब बीमा का काम व बीमे की रकम देशी कम्पनियों में जमा कराकर देशी व्यवसाय को प्रोत्साहन दे सकती है। इसी प्रकार रेलवे, कार्पोरेशन, ट्राम-कम्पनी, पोर्टट्रस्ट, म्युनिसि www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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