SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 425
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादकीय नोट अतिरिक्त एक लाख स्वयंसेवकों की सेना अलग तैयार रखनी पड़ती है । इससे यही बात प्रकट होती है कि योरप आज कितना अधिक सशस्त्र है। जब फ़िनलैंड जैसा एक नगण्य देश सामरिक दृष्टि से अपने को इतना अधिक तैयार रख सकता है तब उन राष्ट्रों के सम्बन्ध में क्या कहा जाय जो संघर्ष के स्थानों के समीप स्थित हैं । उनकी समर-सज्जा यहाँ तक बढ़ी चढ़ी है कि सारी स्थिति को कहीं अधिक भयप्रद बना दिया है। यहाँ तक जो ब्रिटेन शान्ति का हामी ही नहीं था, किन्तु शस्त्रास्त्र बढ़ाने के. भी विरुद्ध था, वही आज अभूतपूर्व सामरिक योजनाओं को कार्य का रूप देने में जुटा हुआ है । और उसकी देखादेखी अब फ्रांस भी आत्मरक्षा के नाम पर अभूतपूर्व सामरिक योजना के काम में लग गया है, यद्यपि वह पहले से ही ख़ूब तैयार है। ब्रिटेन के प्रधान राजनीतिज्ञों का कहना है कि ऐसा करने से ही संसार में शान्ति की स्थापना हो सकेगी। इसका एक प्रत्यक्ष परिणाम यह हुआ है कि जर्मनी और जापान भी अब शान्ति की बातें करने लग गये हैं । हाँ, इटली ज़रूर ब्रिटेन की सामरिक योजना से चिढ़ गया है, जिसका उसने प्रदर्शन भी किया है । यह तो स्पष्ट ही है कि संसार के सभी छोटे-बड़े राष्ट्र युद्ध-सज्जा से उत्तरोत्तर सज्जित हो जा रहे हैं। उन्हें इस बात की भी परवा नहीं है कि उनके ऐसे आयोजनों से प्राथिक अवस्था कितनी दयनीय हो जायगी । वे यह सब कुछ जानते हैं, परन्तु लाचार हैं। संसार में इस समय परस्पर ईर्ष्या द्वेष का ऐसा ही बोलबाला है । और योरप की महाशक्तियों की यह परिस्थिति देखकर उनके पड़ोस के छोटे छोटे राज्य भी आतंकित और शंकित हो उठे हैं। उन्हें डर है कि इस बार के लोकसंहारक युद्ध में वे भी गेहूँ के साथ घुन की तरह पिस जायँगे। इसी से वे सभी नख से शिखा तक युद्ध के आयोजनों से सज्जित होने में अपनी चौकात के बाहर ख़र्च करने में लगे हुए हैं । योरप की इस परिस्थिति का एशिया के मुसलमानी देशों arry की भीषण स्थिति योरप की समस्या सुलझती नहीं दिखाई दे रही है । स्पेन का युद्ध पूर्ववत् भीषण से भीतर होता जा रहा है । इसका कारण यह कि इस युद्ध में दोनों ओर से योरप के भिन्न भिन्न देशों के योद्धा एक बड़ी संख्या में युद्ध कर रहे हैं । इस आशंका से कि कहीं यह युद्ध अधिक व्यापकरूप धारण न कर जाय, ग्रेट ब्रिटेन के प्रयत्न से योरप के अन्य राष्ट्र भी इस बात पर राज़ी हो गये हैं कि अब इस युद्ध में कोई बाहरी देश किसी भी तरह का भाग न ले, साथ ही यह भी कि इसकी पूरी देख-रेख की जाय कि कोई राष्ट्र इस समझौते का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है । freeन्देह इस प्रयत्न का अच्छा प्रभाव पड़ा है और स्पेन के बाहर अन्य देशों में इस युद्ध को लेकर जो चञ्चलता उमड़ पड़ी थी वह अब बहुत कुछ दब गई है । तथापि यह नहीं कहा जा सकता है कि इस व्यवस्था से योरप की समस्या सुलझती सी जान पड़ती है। इस अवस्था का कारण यह है कि योरप का कोई भी राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र पर विश्वास नहीं करता और रूस और फ्रांस की सन्धि होने के बाद जर्मनी और जापान की जब से सन्धि हुई तब से तो योरप की समस्या और भी उलझ गई है। वास्तव में इन दोनों सन्धियों ने पहले के विश्वास को और भी अधिक मज़बूत ही नहीं कर दिया है, किन्तु उसके साथ ही उसकी अवस्था को और भी जटिल बना दिया है । इस सम्बन्ध में यहाँ फ़िनलैंड का उदाहरण देना अनुपयुक्त न होगा। स्वाधीन होने के पहले यह छोटा-सा देश रूस की अधीनता में था। अब यहाँ प्रजातंत्र शासन प्रचलित है । गत १८ वर्षों के भीतर फ़िनलैंड की बड़ी उन्नति हुई है । अनिवार्य शिक्षा-पद्धति के प्रचलन से वहाँ की निरक्षता दूर हो गई है और अब वहाँ साक्षरों की संख्या ९९ फ़ीसदी हो गई है । फ़िनलैंड के निवासी भी शान्त, क़ानून के पाबन्द और धार्मिक हैं । परन्तु रूस के डर से उस छोटे-से देश को भी राष्ट्रीय सेना के ४०९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 1 www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy