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________________ संख्या ४]. - सामयिक साहित्य ४०७ ज़रा गौर करें अाप व्यस्त दिन के दोपहर में अपने मुसलमान तथा कांग्रेस दिमाग़ की हालत, अपने झरोखों तथा खिड़कियों के ___ गत १९ मार्च को दिल्ली में जो महत्त्वपूर्ण किवाड़ों पर बरसती हुई ज्वाला, लोगों पर आलस्य फैलाने 'राष्ट्रीय सम्मेलन' हुआ है उसके सभापति के आसन। वाली नमी से भरी हुई हवा का झंकारा एवं शुष्क सदी के से पं.डत जवाहरलाल नेहरू ने जो एक महत्त्वपर्ण • मौसम में गर्मी पाने की उत्कट इच्छा पर! भाषण किया है उसका निर्वाचन के सम्बन्ध का क्या ऐसी दशा में भारतीय चाय का एक प्याला एक अंश यह है-- इन असुविधाओं को दूर करने में सफल नहीं होगा ? केवल मुस्लिम सीटों के सम्बन्ध में कांग्रेस को सफ-. ज़रूर, भारतीय चाय का केवल एक प्याला आपको इस लता नहीं प्राप्त हुई। किन्तु इस अवसर पर हम लोगों की प्रकार तरोताज़ा बना देगा कि आप अपनी चारों तरफ़ की असफलता ने यह प्रदशित कर दिया है कि सफलता बड़ी परिस्थिति से भली भाँति हिलमिल जायँगे। कोई परवा - आसानी से हमारी पहुँच के अन्दर है और मुस्लिम जनता नहीं, चाहे कैसा ही दुःस्वदायी मौसम हो अथवा कैसा ही अधिकाधिक संख्या में कांग्रेस की ओर झक रही है। हम व्यस्त समय। . लोगों की असफलता इसलिए नहीं हुई कि हम लोगों ने __केवल आप ही नहीं-हज़ारों सीधे-सादे ग्राम-वासी मुस्लिम जनता में काम करना छोड़ रखा था और हम भी जो मिट्टी के घरों और फूस के झोंपड़ों में रहते हैं, उपयुक्त समय पर उसके पास नहीं पहुँच सके । किन्त धीरे-धीरे इस बात को आप लोगों की तरह महसूस करने जहाँ पर हम लोग पहुँच, विशेष कर गाँवों में, वहां हम लगे हैं। सनसनाती चायदानी एवं मनमोहक प्याले और लोगों ने मसलमानों के हृदय में कांग्रेस के प्रति वही स्थान . तरियाँ गो कि उन्हें नहीं मिल सकती तिस पर भी उन्हें और उनमें उसी साम्राज्य-विरोधी भावना को पाया जो हमें भली भौति विदित है कि मिट्टी के प्याले में भारतीय चाय दूसरे लोगों में मिली थी। साम्प्रदायिक समस्या के सम्बन्ध रह उतनी ही स्वादिष्ट अँचेगी जितनी चीनी के प्याले में में हमें बहत-सी बातें सुनाई पड़ती है, किन्तु जिस समय ग्रापको। चाय पीने की पादत इन नव-दीक्षितों में वही हमने किसानों से--चाहे वे हिन्द हो, चाहे मुसलमान और मुख-सुविधा प्रकट करती है जिस ग्राप भारतीय चाय के चाह सिख--- बात की हमने उनके बीच साम्प्रदायिक .. मेवन से प्राप्त करते हैं। . समस्या पाई ही नहीं। मुसलमानों में हमें सफलता इस उनके सस्त जीवन को प्रात्साहित करने के लिए अथवा कारण से भी नहीं प्राप्त हो सकी कि मस्लिम निर्वाचकों उनक शारीरिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक कल्याण का की संख्या अपेक्षाकत बहत थोडी थी और उन्हें अधिकारी- . ऊपर उठाने के लिए बहुत कुछ किया गया है, किन्तु फिर गण तथा पंजीपति ग्रामानी से दवा सकते थे और उनको . भी कछ करने का बाकी है। क्योंकि भारत में चाय को अपने अनकल बना सकते थे। किन मुझे यह प्रण खपत नितान्त कम है, खासकर जब अाप यह सोचते हैं। विश्वास है कि इस हालत में भी हमें अब की अपेक्षा कि छोटे महाद्वीप सरीखे इस भारत में यह हर श्रेणी के कहीं अधिक सफलता प्राप्त हुई होती यदि हम लोगों ने लोगों के लिए एक उपादेय पेय है। किसी पूँजीपनि के मुस्लिम जनता की अोर और अधिक ध्यान दिया होता। राजप्रासाद में या किसी गरीब के झोपड़े में, बाहर या हम लोगों ने बहुत दिन से उनकी ओर कोई ध्यान नहीं भीतर, गर्मी में अथवा सर्दी में, एकान्त में या मित्रों की दिया है और बहुत दिन से वे गलतफहमी में रक्खे गोष्ठी में चाहे कोई भी अवस्था हो, प्रत्येक दिन के प्रत्येक गये हैं और अब अावश्यकता इस बात की है कि उनकी. समय पर केवल यही पेय है, जो सर्वप्रिय होने का स्थायी ओर विशेष प्रकार से ध्यान दिया जाय । उनके भावी एव व्यापक दावा रखता है। इसलिए हर एक भारतीय को य का सहयोग में काई सन्देह नहीं है, किन्तु शत यह है कि ' जो भारत के प्रति अपने हृदय में तनिक भी स्थान रखता हम लोग ठीक तरीके से उनके पास पहुँचे । हो. यह चाहिए कि भारत की मिट्टी में उपजी हुई भारतीय चाय की उन्नति में सहाय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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