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________________ विज्ञानशाला में संख्या ४] व्यक्ति चित लेटा था। एक हाथ में 'पिस्टिल' और दूसरे में टाच लेकर वे आगे बढ़े। नीचे लेटा हुआ व्यक्ति हिल-डुल नहीं रहा था । समीप जाकर ध्यानपूर्वक देखने से ज्ञात हुया कि चित लेटा हुआ व्यक्ति जिन्दा नहीं है, मुर्दा है, उसका मुँह पूरा खुला हुआ है. ग्रां बन्द हैं। उसके मुँह के लगभग फुट भर ऊपर एक बहुत ही पतली) नली थी, जो कार लटके हुए उस काँच के यन्त्र के पेंदे में लगी हुई थी । समीप ही टेबिल पर दो मोमबत्तियाँ और लगी थीं. रावर्ट ने उन्हें भी जला दिया और फिर ध्यानपूर्वक यन्त्रों को देखने लगे। वह काँच का बड़ा यन्त्र आक्षा किसी लाल रङ्ग के तरल पदार्थ से भरा हुआ था। उस यन्त्र में और भी बहुत-सी काँच की नलियों लगी हुई थीं, जिनका सम्बन्ध इधर-उधर रक्खे हुए अन्य यन्त्रों से था। वे उसके विषय में विचार कर ही रहे थे कि उन्होंने देखा कि उस नली से उक्त तरल पदार्थ की एक बूँद उस मुर्दे के मुँह में गिरी। समस्या और भी जटिल प्रतीत होने लगी। वे उसी कोने में लगे हुए दूसरे यन्त्रों को देख रहे थे कि अचानक उनका हाथ एक 'हँडिल' पर पड़ा और कड़ाक कड़ाक करके काँच के सब यन्त्र टुकड़े टुकड़े होकर गये। हतबुद्धि से वे कुछ देर खड़े रहे और फिर उस लाश के समीप आये । लाश उस तरल पदाथ में नहा गई थी । यन्त्र इतने 'फोर्स' से टूटे थे कि टुकड़े छिटक कर इधर-उधर फैल गये थे । वे लाश का निरीक्षण करने लगे, सिर बिलकुल ठंडा था, पैर भी बिलकुल ठण्डे थे | उसके वक्षस्थल पर हाथ रखा तब वे सन्न रह गये। वक्षस्थल में काफी गरमी थो धीमी, बहुत ही धीमी-सी दिल की धड़कन भी प्रतीत हुई। 'तो क्या मैं आज हत्या के पाप का भागी बना, उनके हृदय ने शून्य से यह प्रश्न किया। कुछ देर तक वे निश्चल बैठे जलती हुई मोमबत्तियों के खि फाड़-फाड़ कर देखते रहे, मानो आँख उनकी लौ में कुछ पढ़ने का प्रयत्न कर रहे हों । फिर 'टेबल' पर पड़ी वस्तुओं का निरीक्षण करने लगे । वहाँ उन्हें एक 'डायरी' मिली। उसे पढ़ने से ज्ञात हुआ कि वह एक वैज्ञानिक था । उसे अपने सिद्धान्तों पर और इसी लिए अपनी सफलता पर दृढ़ विश्वास था, इसी लिए जीवन तथा मृत्यु के प्रश्न पर आयष्कार करने के लिए उसने स्वयं अपने प्राणों की बाजी लगाई थी। रोबर्ट को प्रतीत हुआ, मानी विज्ञानशाला का एक एक यन्त्र रो-रोकर मूक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ३७९ भाषा में कह रहा है कि 'विश्व के सबसे महान् आविष्कारक की अनोखी सफलता का श्राज तूने मिट्टी में मिला दिया ! विश्व के सबसे बड़े वैज्ञानिक की आज तूने हत्या की' । रावट के हृदय ने मूक-भाषा में ही उत्तर दिया कि 'विश्व मृत्यु जैसे शक्तिशाली शत्रु पर सदा के लिए विजय प्राप्त करना चाहता था और सफलता उसके चरणों को चूम रही थी ! निःसन्देह में हत्यारा हूँ ! और फिर उस विज्ञानशाला के एक-एक कढ़ से प्रतिध्वनि हुई 'हत्यारा ! कक्ष हत्यारा !-- हत्यारा!........ीर एक-एक मोमबत्ती की लौ ने भी मानो उसकी ओर संकेत करके कहा, 'हत्यारा !-•••••••• 'हत्यारा' !.........' वहाँ से राबर्ट भारी दिल लिये हुए लौटे और फिर अपनी विज्ञानशाला का सब सामान भी यहीं पहुँचा दिया और सम्पूर्ण विश्व से सम्बन्ध विच्छेद कर वहीं श्राविष्कारों में रत होगये । इतने में ही कार ने तीन-चार चक्कर काटे और थोड़ी. देर के बाद वह रुक गया। जेम्स तथा उसका साथी स्त्रिम को विज्ञानशाला में ले गये। वहाँ उसकी आँखों की पट्टी खोल दी गई। उन्होंने उसे कुछ रासायनिक पदार्थ मुंचाये, जिससे वह ग्रान्तरिक बन्धन से भी मुक्त हो गया । राष्ट उस समय विज्ञानशाला में ही था । उसने स्विम का स्वागत किया। स्विम ने देखा कि विज्ञानशाला में एक बहुत बड़ा 'डाइनमो' लगा हुआ है और विद्युत् का प्रकाश चारों ओर फैला हुआ है। विज्ञानशाला में चारों ओर मेज़ों पर बहुत-से यंत्र लगे हुए हैं और एक तरफ लोहे की बड़ी बड़ी मशीनें । वह इन सब यन्त्रों तथा मशीनों को देखता हुआ इधर-उधर घूम रहा था कि राबर्ट ने हंसकर कहा“मिस्टर स्विम को वह आविष्कार तो दिखा दो जिसे दिखाने के लिए इन्हें मुल्जिम की भाँति पकड़ लाये हो ।" जेम्स ने कहा- "हाँ देखिए मिस्टर स्थिम । हमने एक प्रकार को नवीन किरणों की खोज की है, जिनकी सहायता से मनुष्य गायब हो सकता है । उस अवस्था में यह सब देख सकता है, किन्तु उसे कोई नहीं देख सकता। उन नवीन किरणों का सिद्धान्त भी 'एक्स रेज़' के ही समान है। अन्तर केवल इतना ही है कि एक्स रेज़ मनुष्य के केवल मांस में ही प्रविष्ट हो सकती हैं, www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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