SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 393
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक रोचक वैज्ञानिक कहानी विज्ञानशाला में .. लेखक, श्रीयुत व्रजमोहन गुप्त श्री रररर ! असमर्थ है और इसलिए उसे न जाने कैसा लग रहा है। कार चला जा रहा था। सड़क उसे इस विचित्र प्रकार के बन्धन पर जिसमें वह बँधा है, .2G के दोनों ओर ऊँचे ऊँचे वृक्ष थे और आश्चर्य होता है, और कभी कभी उसकी दृष्टि जेब में 9 . वृक्षों के परली पार उनकी सघनता पड़े 'पिस्टिल' की अोर बरबस खिंच जाती है। TEXASix बढ़ती चली गई थी। उस सघन "हाँ, जब हमने अपने पत्र का कुछ भी उत्तर न पाया व के मध्य से दो बड़े शहरों को तब सोचा कि पहले आपको एक दिन अपनी विज्ञानशाला मिलाने के लिए यह सड़क निकाली गई थी। मार्ग दिखला दें। हमारी बातों पर विश्वास न होना स्वाभाविक अच्छा न था, बहुत दिनों से सड़क की मरम्मत भी नहीं ही था, क्योंकि न जाने कितने चोर-डाक इसी प्रकार हुई थी। जहाँ-तहाँ बहुत-से गढ़े हो गये थे, किन्तु कार धनाढ्य व्यक्तियों से रुपया वसूल किया करते हैं।" उन सबको उपेक्षणीय समझ कर घरररर करता चला ही जा इस समय तक एक और व्यक्ति सामने के वृक्षों से रहा था। कार में केवल एक ही व्यक्ति बैठा था, कोट, उस रस्से को खोल चुका था और आकर जेम्स के समीप पैन्ट हैट, टाई से सुसज्जित । वही कार 'ड्राइव' कर रहा ही खड़ा हो गया था। था। सड़क सीधी थी; कार पेड़, पौधे, झाडझकाड़ सब "हाँ, मुझे आपकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ था कुछ पीछे छोड़ता दौड़ता चला जा रहा था कि कार में और मैं आपकी विज्ञानशाला देखने के लिए बहुत उत्सुक बैठे हुए व्यक्ति ने देखा कि एक मोटा रस्सा सामने सड़क भी हूँ। सब कुछ देख चुकने पर जितना सम्भव होगा, रुपया पर तना है, वह दोनों ओर के दो वृक्षों से बँधा हुआ है। भी दे दूंगा, किन्तु इस समय तो मैं एक बहुत. यावश्यक उसने ब्रेक दबाया । कार धीमा हुश्रा, धीमा हुश्रा और रुका कार्य से जा रहा हूँ।" कि पास के वृक्ष से एक व्यक्ति ने निकलकर एक रूमाल "अाशा है आप हमें हमारी इस धृष्टता के लिए क्षमा उसको नाक से लगा दिया--केवल क्षण भर के लिए। और करेंगे, किन्तु यदि अाप सोचगे तो समझ जायँगे कि हमारे उस व्यक्ति (ड्राइवर) ने अनुभव किया कि उसके हाथ। में, उसके पैरों में और उसके सिर में झनझनाहट-सी है, विज्ञानशाला एक गुप्त स्थान पर है। कोई भी व्यक्ति वहाँ और क्षण भर में वह भी शान्त हो गई। वह देख प्रवेश नहीं कर सकता। श्रापको वहाँ ले जाने का प्रबन्ध सकता है, सुन सकता है, बोल सकता है, किन्तु हाथ- करने के लिए हमें बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पैर नहीं हिला सकता। उसकी आँखें जेब में पड़े पिस्टल' पड़ा है। हमारा सब पारश्रम व्यर्थ न हो जाय, इसी लिए पर गड़ी हुई है, किन्तु वह लाचार है, अशक्त है। समीप इस बन्धन का प्रबन्ध किया गया है। अब आपको हमारी हो दूसरा व्यक्ति खड़ा हुश्रा बहुत गम्भीर मुद्रा से उसकी इच्छा पर निभर करना होगा।" ओर देख रहा है। क्षण भर के बाद उसी व्यक्ति ने निस्त- और इतने में ही जेम्स ने एक बड़ा-सा रूमाल जेब ब्धता भग की से निकालकर स्विम की आँखों पर बांध दिया। जेम्स "श्राप घबराय नहीं मिस्टर स्विम । मैं ! कोई डाक तथा उसके साथी ने उसे वहाँ से उठाकर पिछली सीट नहीं हूँ, एक वैज्ञानिक हूँ । मेरा नाम जेम्स है ।" पर बिठा दिया। जेम्स उसकी बग़ल में बैठ गयो और “जेम्स ! हाँ, आपका पत्र मुझे मिल गया था ।" उसके साथी ने कार को 'स्टार्ट' कर दिया । वार्तालाप फिर और स्विम कठपुतले के समान बैठा है। वह देख प्रारम्भ हो गया । रहा है, सुन रहा है, बोल रहा है, किन्तु हिलने-डुलने में हमें ज्ञात हुआ था कि आप एक ऐसे धनाढ्य ३७७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy