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________________ ६४ सरस्वती [भाग ३८ हैं वे जैसे एक ही प्रकार के नहीं होते, वैसे ही ये मोती भी छोटे-बड़े विभिन्न आकारों के होते हैं। इस तरह इन खेतों से उत्पन्न मोतियों से माला बनाने के लिए एक खास आकार और चमक के मोती चुनने का कार्य उतना ही कठिन होता है जितना कि प्राकृतिक मोतियों से चुनाव करते समय हो सकता है। ___ मालायें बनाने के लिए अच्छे और एक से मोतियों का चुनाव मिकीमोटो के कारखाने में जापानी लड़कियाँ अपनी कुशल अँगुलियों के द्वारा करती हैं । कारखाने में कार्य करने के अतिरिक्त बहत-सी लड़कियाँ गोताखोर भी होती हैं । वे पानी के भीतर मर्दो की अपेक्षा अधिक सीप के भीतर बोये हुए दो मोतियों के नमूने] समय तक रह सकती हैं। के लिए केवल वे ही मोती चुने जाते हैं जो अत्यन्त मिकीमोटो के मोतियों की ख्याति संसार में दिन पर उच्च कोटि के और सुन्दर होते हैं। शेष रद्दी कर दिये दिन बढ़ती जा रही है और जापान का यह व्यवसाय जाते हैं । परन्तु प्राकृतिक रूप से जो मोती उत्पन्न होते अत्यन्त अर्थ-प्रदायक और महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है। साँवलिया ! लेखक, श्रीयुत सूर्यनारायण व्यास 'सूर्य' . मेरी ममता की नौका पर, नहीं निकट-तट है, दुस्तर है, ले मन की पतवार ! सागर अगम-अपार ! नाविक ! कहाँ चले तज करके, ' उस विशाल-सागर की भंवरेंसरल - हृदय - संसार ? और वीचि-वल्लरियाँ ! उस सुन्दर दुनिया में देखो बड़ी सरल, मन-मोहक भी है, जाओगे हिय-हार ! . किन्तु कठिन, साँवलिया ! - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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