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________________ [ भाग ३८ शिक्षित व्यक्ति और २ लाख मज़दूर इन शक्कर के कारख़ानों पूर्वी रूस-वासी आदि के ६५ करोड़ मंगोल - वंश के लोग बुद्ध भगवान् द्वारा प्रचारित श्रार्य छाया में हैं। अफ्रीकावासी इथियोपियन-वंश तथा उसके उत्तर-पूर्व और दक्षिण के निवासी योरपीय (फ्रांस, जर्मन, अँगरेज़ और रोमन आदि ) श्रार्य - जातियों की सांस्कृतिक छाया में हैं । इस तरह क़रीब ८० करोड़ अनार्य-वंश के लोग भी वर्तमान में श्रार्य-संस्कृति की छाया में श्रा चुके हैं । अतः समस्त भू-मण्डल में सिर्फ़ बीस करोड़ अनार्यों को छोड़कर बाकी सब आर्य संस्कृति के मानव रहते हैं । ३१२ सरस्वती में लगे हुए हैं । ऐसे राष्ट्रोपयोगी व्यवसाय को संरक्षण देते रहना परमावश्यक है । संसार की विभिन्न जातियाँ और उनकी संस्कृति 'मिथिला मिहिर' लिखता है - समस्त भू-मण्डल में प्रायः दो अरब मनुष्य बसते हैं । इनमें आर्य-वंश, द्राविड़ वंश, मंगोल-वंश, सेमेटिक और हेमेटिक, इथियोपियन, अमेरिका के मूलनिवासी रेड इण्डियन तथा आस्ट्रेलिया और सिंहल द्वीप के आदिनिवासियों का समावेश होता है। पृथ्वी के इन कतिपय प्रधान मानव गोत्रों में से द्राविड़ वंश आज-कल प्रायः आर्य वंश में मिल-सा गया है। ब्रह्मदेश, चीन, जापान, पूर्व- रूस, कासगार, मंगोलिया, तिब्बत, स्याम और कम्बोडिया इन देशों में मंगोल - वंश का निवास है । इनकी संख्या अन्दाज़ से ६५ करोड़ है । फिनिशिया, सीरिया, अरबिस्तान, यहूदी-भूमि पैलेस्टाईन और उत्तर अफ्रीका का किनारा, इन प्रदेशों में सेमेटिक हेमेटिक वंशवालों का वास है और इनकी संख्या प्रायः १५ करोड़ है । सहारा का रेगिस्तान अफ्रीका के पूर्वीय और पश्चिमीय किनारे तथा दक्षिणी हिस्से में इथियोपियन वंश के लोग रहते हैं। इनकी संख्या करीब १२ करोड़ होगी । अमेरिका के रेड इण्डियन मुश्किल से २ करोड़ होंगे । अन्य सामुद्रिक टापुत्रों की आदम बर्बर जातियों की संख्या अन्दाज़ से ४ करोड़ होगी । इस प्रकार पृथ्वी पर अनार्य-वंशजों की संख्या ९७ करोड़ और श्रार्य-वंशजों की ९६ करोड़ है । मतलब यह कि अन्दाज़ से श्राधा संसार आर्य वंशवालों से बसा हुआ है और आधे में अनार्य हैं । श्रार्यों की प्राचीन संस्कृति के वेदों, ब्राह्मणों, आरण्यकों, गृह्यसूत्रों और उपनिषदों का उत्तराधिकार तो भारत की २३ करोड़ श्रार्य- जनता को ही मिला है। उपर्युक्त ९७ करोड़ अनार्य-वंशजों में तिब्बत, चीन, जापान, मंगो - लिया, ब्रह्मदेश, स्याम, कम्बोडिया, जावा, सुमात्रा और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat देवपुरस्कार की जीत इस वर्ष दो हज़ार रुपये का 'देवपुरस्कार' व्रजभाषा की रचना पर दिया गया है और वह मिला है पंडित रामनाथ 'जोतिसी' को उनके 'रामचन्द्रोदय-काव्य' पर । जोतिसी जी की इस सफलता पर अनेक बधाइयाँ । उन्होंने अपने इस काव्य में अपने सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा हैरायबरेली प्रान्त, निकट बछराँवाँ कौ पुर; 'विद्याभूषन' रामनाथ कवि, पुर भैरवपुर । कान्यकुब्ज कुल सुकुल, तात विध्याप्रसाद बुध; कल्यानी पतिदेव, जननि जनि मार्ग चौथि सुध । महि गुन नवेंदु बैक्रमि जनमि, जन्म दिवस बय ब्रह्म सर ; भो अवधपुरी मैं 'जोतिसी', रचित राम- जस पूर्नतर । रायबरेली प्रांत, राज्य रहवाँ गुन- मंडित; भए भूप रघुबीरकस, कल कीर्ति खंडित | रघुनन्दन झा शास्त्रि, तहाँ परधानाध्यापक : तिनकी कृपा कटाक्ष, 'जोतिसी' भे बहु व्यापक । विज्ञान- व्याकरन - न्याय- नय, ज्यौतिप-काव्य-कलाप पढ़ि; पुनि चन्दापुर-नृप सँग रहे, द्वादशाब्द मुद मान मढ़ि । ; अवध- नरेस सुरेस सरिस परतापनरायन : 'जग जाहिर जस जासु, पुहुमि पति पूजित पाँयन । जगदम्बा पटरानि, तासु नृप ग्रासन राजै जगदंबिकाप्रताप, पुत्र ज्यहि श्रंक बिराजै । तिहि राज ज्यौतिषी, राजकवि, अपर पुस्तकाध्यक्ष-पद ; लहि श्रवधपुरी रहि 'जोतिसी', अब निरखत सियराम - पद | Printed and published by K. Mittra, at The Indian Press, Ltd., Allahabad. www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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