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________________ ऊपर से नीचे ( २९० ) बायें से दाहिने अङ्क-परिचय १-कृष्ण का नाम । १-इसका फल प्रत्यक्ष है। ३-नाटक खेलने का स्थान । २-उद्देश्यपूर्ति के लिए इसकी क्रिया विधि-पूर्वक होनी ६-कृष्ण का बहुतेरे ऐसा समझते हैं । चाहिए। ७--, बड़े ठाट का, होता है। १०-कृष्ण। ३-होली की महिमा इसके ही अानन्द से है। १२-इसका समय ही थोड़ा होता है। ४-इस के गरम होने से अनाज पकने में सहायता मिलती है। १३-यहाँ नाज उलट पड़ा है। ५-कोई-कोई बहुत कोमल होती है। १४-दिखाई देना। ६-सभ्य संसार में कहीं-कहीं अब यह प्रचलित नहीं। १५-किसी काम के सिद्ध करने के लिए प्रायः इसकी ८-इसका शब्द इसकी अान्तरिक ठेस का पता देता है। आवश्यकता पड़ती है। ९-एक अवतार ऐसा भी हश्रा है जो इसी क्रिया से १८-शिवजी का धनुष । प्रसिद्ध हुआ है। १९-घोर कठिनाइयाँ पड़ने पर भी भारतीय महिला की १०-श्री राधा जी का स्थान । श्रद्धा इस पर कम नहीं होती। २०-चना। ११-व्यापारी इसकी हवा हर एक ग्राहक को नहीं देता। २२-किसी बात का बार बार कहना। २३-ऊँचे कुल का। १४-दूध से बनता है। २४-जो कहा न जा सके। १६-हृदय के चलने का शब्द। २६-स्त्रियों के लिए इसका अाकर्षण प्रबल होता है। १७-नये को देखने बहतेरे दौड़े जाते हैं । २७-यदि यह न होती तो मनुष्य अपने हाथ ही से बेकार १९-युद्ध करती हुई सेना को अपने सरदार के हुक्म से 'हो जाता। प्रायः......पड़ा है। २९-इसी के द्वारा मक्खन निकाला जाता है । २०-होली। २१- लड़ाई। २३-पुष्प । ३०-घर-घर बनती है। २४-इसके लगने पर प्रायः लोग सिमट पाते हैं। २५-अनेक। २८-वर्षा ऋतु में यह अनोखी होती है । नोट-रिक्त कोष्ठों के अक्षर मात्रा रहित और पूर्ण हैं। वर्ग नं. ७ की शुद्ध पूर्ति वर्ग नम्बर ७ की शुद्ध पूर्ति जो बंद लिफाफे में मुहर लगाकर रख दी गई थी, यहाँ दी जा रही है । पारितोषिक जीतनेवालों का नाम हम अन्यत्र प्रकाशित कर रहे हैं । है या अपनी याददाश्त के लिए वर्ग ८ की पूर्तियों की नकल यहाँ पर कर लीजिए। और इसे निर्णय प्रकाशित होने तक अपने पास रखिए। L श्र ई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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