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________________ श्री राजेश्वरप्रसादसिंह हिन्दी के नवयुवक कहानी-लेखकों में अग्रगण्य हैं। 'सरस्वती' में आपकी अनेक सुन्दर कहानियाँ छप चुकी हैं। यह कहानी भी पाठकों को पसन्द आये बिना न रहेगी। मतभेद लेखक, श्रीयुत राजेश्वरप्रसाद सिंह " नते हो ?" सही फ़िल्मवाले कम से कम हम लोगों में साहित्य प्रेम तो ए कहो ।” कलम रोककर, काग़ज़ से दृष्टि जाग्रत कर ही रहे हैं ।” उठाकर, रमेश ने कहा। ___ "वास्तविक, यथार्थ, उच्च कोटि के साहित्य के लिए ___ "शजेंट थियेटर में 'डेविड कापरफ़ील्ड' दिखाया जा डुगडुगी बजानेवालों की ज़रूरत न पड़नी चाहिए । 'मुश्क रहा है।" वह है जो खुद अपनी सुगन्ध फेंके, न कि अत्तार उसका ___ "अच्छा ! 'डेविड कापरफ़ील्ड' डिकेंस की सर्वोत्कृष्ट ढिंढोरा पीटे !' साहित्य वह पवित्र मन्दिर है जिसके द्वार रचना है। किन्तु मेरा तो विश्वास है कि ये फिल्मवाले सदैव सबके लिए खुले रहते हैं। उच्च कोटि के मानसिक चार्ल्स डिकेंस जैसे महान् लेखकों के साथ न्याय नहीं कर मनोरञ्जन तथा ज्ञान की कामना रखनेवाले सदैव वहाँ आते सकते। हैं और सन्तुष्ट होकर जाते हैं । "नहीं कर सकते ?" "तुम आदर्शवादी हो, स्वप्न-लोक के निवासी हो । "कदापि नहीं। कम से कम मेरी राय तो यही है। विवाद-ग्रस्त बातें कहने में तुम्हें मज़ा आता है। अगर मैं मूक फ़िल्मों के ज़माने में एक बार मैंने 'ए टेल अाफ़ टू यह कहूँ कि यदि साहित्य को अपने क्षेत्र का विस्तार सटीज़' देखा था। डिकेंस की उस महान् रचना की जो करना है तो उसे व्यवसाय की सहायता अवश्य लेनी होगी दुर्गति की गई थी उसे देखकर मुझे तो बड़ा दुःख तो इसके जवाब में कोई न कोई टेढ़ी-सीधी बात तुरन्त कह हुअा था।" दोगे। खैर, यह सब रहने दो। मतलब की बात करो। "लेकिन जानकारों का विचार तो यह है कि फ़िल्म- कहो, 'डेविड कापरफ़ील्ड' देखने चलोगे ?" निर्माण-कला आज-कल उन्नति के उच्चतम शिखर पर रमेश हँस पड़ा। पहुँच गई है।" "बोलो?" "यह उन्नति का युग है । प्रत्येक दिशा में उन्नति की नहीं चल सकता, प्रिये ।" दौड जोरों पर है। अन्य कलात्रों की भांति फ़िल्म-निर्माण- "क्यों।" कला भी बहत काफ़ी उन्नति कर गई है। किन्तु "यह लेख मुझे इसी समय समाप्त करना है। 'ट्रम्पेट' मेरा तो यह दृढ विचार है कि फ़िल्म-निर्माताओं को को अपने अगले साप्ताहिक के लिए इसकी जरूरत है। चार्ल्स डिकेंस जैसे महान् लेखकों के पीछे न पड़ना चाहिए कल ही इसे रवाना कर देना होगा, ताकि देर न हो और कहानियों के लिए अपने ही कहानी-लेखकों पर निर्भर जाय।" रहना चाहिए।" "सिनेमा से लौटने के बाद इसे आसानी से समाप्त __"तुम्हारी इस राय से मैं सहमत नहीं हूँ। किसी कर सकते हो।" मामूली कहानी के आधार पर बनी हुई सुन्दर फ़िल्म की "लिखने की मनःस्थिति इस समय मौजूद है और अपेक्षा मैं उस मामूली फ़िल्म को अधिक पसंद करूँगी जो इसे भागने का मौका न देना चाहिए। रात को यह न किसी सुन्दर कहानी के आधार पर बनी हो। और कुछ न लौटी तो क्या करूँगा ? इस खतरे में न पड़ें गा। मुझे २७६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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