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________________ सरस्वती तट की सभ्यता संख्या १ ] पर्वत पर पहुँचे, जहाँ सरस्वती का उद्गम था । इस प्रकार सरस्वती शिवालिक पर्वत माला से निकल कर कुरुक्षेत्र के पास से बहती हुई उत्तरी-पश्चिमी राजपूताना, रनकच्छ और सुराष्ट्र को पार करती हुई खम्भात की खाड़ी में समुद्र से मिल जाती थी । यह स्थान 'सरस्वती - सागर - संगम' कहलाता था। पुराणों में प्रभास (सुराष्ट्र) के निकट सरस्वती - सागर संगम का उल्लेख भी है । परन्तु वास्तव में यह स्थान यहाँ से कुछ हटकर खम्भात के निकट था । सरस्वती के तट-प्रदेश में ताम्र-युग की उत्पत्ति प्राचीन काल में राजपूताना में ताँबा प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता था। अब भी अनेक स्थानों में यहाँ ताँबा निकलता है । सरस्वती इस प्रदेश में से होकर बहती थी, अतः उसका तट प्रदेश ताँबे का प्राप्ति-स्थान था । उत्तर सेकर जब आर्य लोग सप्त सिन्धु में बसे तब सरस्वती का तट प्रदेश ही उनकी सभ्यता का केन्द्र रहा । यहाँ कृषि और गृह कार्य के उपयुक्त हथियार - श्रौज़ार बनाने के लिए पत्थर के स्थान में उनको ताँबा प्राप्त हुआ । यह धातु नरम होती है, अत: सरलता के साथ इसमें से मनचाहे कार की वस्तुएँ बनाई जा सकती हैं । इस प्रकार सरस्वती तट पर सर्वप्रथम मनुष्य जाति पत्थर - युग से ताम्र- युग में आई । ' चान्हूडेरो' तथा 'विजनोत' नामक स्थानों की खुदाई में ताम्र-युग की इस शुद्ध सभ्यता के अवशेष मिल चुके हैं। ये स्थान सरस्वती के शुष्क प्रवाहमार्ग पर ही पाये गये हैं । यह ताम्र-सभ्यता सरस्वती के प्रवाह के दोनों ओर प्राच्य तथा उदीच्य प्रदेशों में फैल गई थी । संयुक्त प्रान्त में बिठूर, फ़तेहगढ़, बिहार और उड़ीसा में राँची, पाचम्बा, हज़ारीबाग़, मध्य - प्रान्त में बालाघाट, गँगेरिया तथा बंगाल में सिलदा नामक स्थानों में इस ताम्र-सभ्यता की वस्तुएँ मिल चुकी हैं। दूसरी ओर सिन्धु, पश्चिमोत्तर - सीमाप्रान्त, बिलोचिस्तान, सीस्तान, फ़ारस, इलाम तथा मेसोपोटामिया में फुरात के तट तक इस सभ्यता के चिह्न प्राप्त हुए हैं। मेसोपोटामिया तथा इलाम में यही सभ्यता 'प्रोटोइला - माइट-सभ्यता' के नाम से प्रसिद्ध हुई, जिसको संसार की सबसे प्राचीन सभ्यता कहते हैं । सुमेरु-जाति प्रोटो- इलामाइट जाति के पश्चात् मेसोपोटामिया में आकर बसी थी। सुमेरु- सभ्यता के पश्चात् मिस्र में सभ्यता का उदय हुआ था । ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat २१ संसार की सर्वप्राचीन प्रोटो- इलामाइटसभ्यता और प्रलय इस प्रकार आर्यावर्त्त में सरस्वती के तट - प्रदेश पर मानव-जाति ने सर्वप्रथम पत्थर-युग से धातु-युग में पदार्पण किया। डाक्टर डी० टेरा नामक अमेरिकन विद्वान् के मतानुसार भी सिन्ध- प्रदेश ही वह भूमि है जो मनुष्य को पत्थर और धातु-युग से मिलाती है । मिस्र, मेसोपोटामिया, लघु- एशिया, क्रीट, मध्य- एशिया, ईरान आदि संसार के प्रति प्राचीन कहे जानेवाले देशों के प्राचीनतम नगरों की अन्तिम तह की खुदाई में पाषाण युग की सभ्यता के अवशेषों पर काँसे की सभ्यता के ही अवशेष प्राप्त हुए हैं। पाषाण और काँसे की सभ्यता की मध्यवर्ती ताम्र-सभ्यता के चिह्न कहीं नहीं प्राप्त हुए । इससे विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला कि काँसे की सभ्यतावाली ये सुमेरु, खत्ती (हिटाइट), क्रीटन, मिस्री आदि जातियों की सभ्यतायें किसी अन्य अज्ञात देश में ताँबे की सभ्यता में से विकसित हुई थीं । इन सभ्यताओं की श्रादि-भूमि कौनसा देश था, यह अब तक ज्ञात नहीं हुआ है । जहाँ पाषाण, ताम्र और काँसा इन तीनों प्रकार की सभ्यताओं के अवशेष एक-दूसरे पर क्रमबद्ध पाये जायँ, वहीं इन सभ्यताओं की उत्पत्ति की सम्भावना दिखाई दे सकती है। मेसोपोटामिया के. उर, फरा, किश तथा इलाम ( ईरान का दक्षिण-पश्चिमी भाग) के सुसा और तपा-मुस्यान आदि स्थानों की खुदाई में काँसे की सभ्यता के नीचे ताम्र-सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं और इसके नीचे पाषाण-सभ्यता के भी चिह्न मिले हैं । मेसोपोटामिया में जहाँ जहाँ इस प्रोटो- इलामाइट कही जानेवाली ताम्र-सभ्यता के अवशेष मिले हैं, उसके और सुमेरु-जाति की काँसे की सभ्यता के स्तरों के बीच में किसी बहुत बड़ी बाढ़ के पानी द्वारा जमी हुई चिकनी मिट्टी का अनेक फ़ुट (३ से ८) मोटा स्तर प्राप्त हुआ है । योरपीय पुरातत्त्ववेत्ताओं का मत है कि यह मिट्टी का स्तर उस बड़ी बाढ़ द्वारा बना था जिसको प्राचीन ग्रन्थों में नूह का प्रलय कहा है । ताम्र-युग की प्रोटोइलामाइट - सभ्यता के अवशेष इस प्रलय के स्तर के नीचे प्राप्त हुए हैं, अतः सिद्ध होता है कि प्रोटो- इलामाइटसभ्यता का अस्तित्व प्रलय से भी पहले था । इस सभ्यता के अवशेषों के नीचे कुछ स्थानों में निम्न श्रेणी की पाषाण www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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