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सरस्वती-तट की सभ्यता
लेखक, श्रीयुत पंडित अमृत वसंत
इस लेख के लेखक पंडित अमृत वसन्त पुरातत्त्व के मार्मिक विद्वान हैं। उन्होंने अपने इस लेख में अपने विषय के विशिष्ट ज्ञान का ही नहीं परिचय दिया है, किन्तु नर्मदा-सभ्यता के सिद्धान्त का खण्डन करते हुए यह बात भले प्रकार सिद्ध कर दी है कि सरस्वती-तट की सभ्यता ही संसार की सबसे प्राचीन आर्य-सभ्यता है। उन्होंने अपने सिद्धान्त के समर्थन में जो विचारकोटि
उपस्थित की है वह अकाट्य ही नहीं, हृदयग्राही और मनोरञ्जक भी है।
तिहास के प्रसिद्ध विद्वान् श्री करन्दीकर ने एक भी कोई वस्तु अब तक नर्मदा-घाटी में नहीं मिली। इस २ विलक्षण ऐतिहासिक सिद्धान्त की सृष्टि की है। अन्वेषण के विषय में पत्रों में जो समाचार और लेख इस सिद्धान्त का नाम है 'नर्मदा-घाटी की सभ्यता' । श्रीयुत प्रकाशित हुए हैं उनसे यही ज्ञात होता है कि वहाँ मौर्यकरन्दीकर के इस सिद्धान्त का आशय यह है कि भारत काल के पश्चात् की ही अधिकांश ऐतिहासिक सामग्री में प्रलय से भी पूर्व नर्मदा-घाटी में एक उच्च प्रकार की प्राप्त हुई है। हाँ, कुछ प्राचीन स्थानों का अवश्य पता सभ्यता थी, और यही भारत की आदिम सभ्यता थी, जिसकी लगा है। परन्तु न तो वे सिन्धु-सभ्यता के समय के हैं नींव राजा पृथु वैन्य ने डाली थी। वैवस्वत मनु के समय और न उनके द्वारा उन सिद्धातों की पुष्टि ही होती है में (ई० पू० ४२०० में) सारे उत्तर भारत में प्रलय श्राया, जिनका श्री करन्दीकर ने नर्मदा-सभ्यता की प्राचीनता तथा जिससे भारत की सारी सभ्यता नष्ट हो गई। पुराणों में महत्त्व के समर्थन में पेश किया है। श्रीकरन्दीकर की कहा गया है कि नर्मदा-प्रदेश प्रलय में नहीं डूबा था, इस असफलता का मूल कारण यह कि उन्होंने पुराणों में अतः इसकी सभ्यता उस प्रलय से भी पूर्व की होनी वर्णित घटनाओं को आँखें मूंदकर सत्य मान लिया है चाहिए। श्रीयुत करन्दीकर ने इस विषय पर बड़ोदा में और फिर अपने सिद्धान्तों की सृष्टि कर डाली है । प्रस्तुत सातवीं ओरियन्टल कान्फरेन्स के समक्ष एक भाषण किया लेख में पुरातत्त्व के प्रमाणों-द्वारा इस बात का दिग्दर्शन था और नर्मदा-घाटी में अन्वेषण करवाने के लिए अपील कराया जायगा कि प्रलय के पूर्व भारत में एक और ही की थी। इसके परिणाम-स्वरूप कान्फरेन्स ने 'नर्मदा- सभ्यता थी, जिसकी उत्पत्ति सरस्वती-नदी के तटवर्ती घाटी-अन्वेषण-मंडल' नामक एक मंडल की नियुक्ति प्रदेश में हुई थी। वास्तव में यही भारत की प्रारम्भिक करके यह कार्य उसको सौंप दिया। तब से नर्मदा-घाटी सभ्यता थी और सिन्धु-सभ्यता इसी का विकसित रूप थी। की सभ्यता का सिद्धान्त ऐतिहासिकों का बहुत कुछ ध्यान मैंने इस सभ्यता को 'सरस्वती-सभ्यता' का नाम दिया है। अपनी ओर खींच रहा है। उक्त मंडल अाज दो वर्ष से केवल भारत ही नहीं, बरन सारे संसार की सबसे प्राचीन नर्मदा-घाटी में अन्वेषणं कर रहा है, परन्तु उसको इस सभ्यता यही 'सरस्वती-सभ्यता' थी। सभ्यता तथा इसकी प्राचीनता की पुष्टि में एक भी महत्त्व
पाषाण-युग पूर्ण प्रमाण नहीं मिला और उसे निराश होना पड़ा। भूगर्भ-शास्त्र तथा पुरातत्त्व के अन्वेषणों-द्वारा ज्ञात उसे न तो प्रलय के पूर्व की कोई वस्तु प्राप्त हुई, न उसके हुअा है कि आदि में मानव-जाति जीवन-निर्वाह के कार्य बाद की। श्रीयुत करन्दीकर का कहना है कि नर्मदा- में पत्थरों के टुकड़ों को हथियार-औज़ार के तौर सभ्यता वह सभ्यता थी जो सिन्धु-सभ्यता से भी पूर्व वहाँ पर व्यवहार करती थी। उस समय वह नर-वानर के प्रचलित थी तथा उसी सभ्यता में से भारतीय और रूप में थी। इसके पश्चात् शारीरिक विकास-द्वारा ज्योंमेसोपोटामिया की सुमेरु-सभ्यता का जन्म हवा. था। ज्यों वह अधिकाधिक मानवता की ओर अग्रसर होने परन्तु सिन्धु-सभ्यता से पूर्व की क्या, उसके पश्चात् की लगी, त्यों-त्यों उसके इन पत्थरों के हथियार-औज़ारों में
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