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________________ १० सरस्वती करो, अगर कर सकते हो" । जिसे जन्म भर किसी से सहायता न मिली हो उसे सहायता पर कैसे विश्वास होता ? कोई भी अपने अवगुणों पर निगाह नहीं डालता है यह ख़याल किया करता है कि वह सहायता और दया के योग्य है और जो कुछ गल्ती है वह दया और सहायता न करनेवाले की है। अँगरेज़ी में एक कहावत है कि 'पहले योग्य बनो तब इच्छा करो'। एक दूसरा कहता है कि 'योग्य बनो परन्तु इच्छा न करो । 1 टेवेल (फ्रैंसिस) १४८३-१५५ ३ - ये अपने समय के बहुत बड़े विद्वान् थे । ग्रीक, हेब्रु, अरबी, लेटिन और फ्रेंच आदि भाषायें अच्छी तरह जानते थे । स्वतंत्र विचारों के आदमी थे । कभी साधुत्रों के किसी सम्प्रदाय में सम्मिलित हो जाते थे और कभी उसे छोड़ देते थे और वहाँ से चलते बनते थे । सबसे बड़े पादरी से इनकी मित्रता थी और इस वजह से इनको अगम्य कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ा था । इनका चिकित्सा शास्त्र का भी अच्छा ज्ञान था और चिकित्सक का भी काम किया था। ये अच्छे व्यंग्यलेखक थे । बहुत-सी पुस्तकें लिखी हैं। इनकी लिखी एक पुस्तक से रोमन कैथलिक और प्रोटेस्टेंट दोनों इतना नाख़ुश हुए कि किताब की बिक्री रोक देने और लेखक का जला देने का शोर मचाया था । हास्य के लिखते समय सभ्यता को उठाकर ताख पर रख देते थे । उसमें ग्रामीणता श्रा जाती थी । यदि यह दोष न होता तो इनकी कविता उच्च कोटि की गिनी जाती। इनकी मृत्यु के पश्चात् इनकी जो पुस्तक प्रकाशित हुई उसमें भी उपर्युक्त दोष था । इनकी विद्वत्ता के जितने लोग प्रशंसक थे, उतने ही या उससे अधिक निन्दक थे । इन्होंने मरने के समय कहा था-“परदा गिरने दो ! (जीवनरूपी) प्रहसन समाप्त हो गया । " बहुत अच्छा भाव बहुत अच्छे शब्दों में प्रकट हुआ है । स्काट (सर वाल्टर) १७७१-१८३२ - अँगरेज़ीसाहित्य में इनका बहुत नाम है । ये एक प्रसिद्ध सैनिक घराने के थे, पर इन्होंने साहित्य क्षेत्र में नाम कमाया । साहित्यिक विशेषताओं के अतिरिक्त इनमें दो शारीरिक विशेषतायें भी थीं । ये चलने में लँगड़ाते थे और इनका मुँह अधिक चौड़ा था | बचपन में बीमार पड़ गये थे । जान तो बच गई, परन्तु न मालूम किस कारण से पैर में ढबक श्र गई। मुँह चौड़ा होने के सम्बन्ध में कहा जाता है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३८ इनके छः पुश्त पहले के वाल्टर स्काट का पुत्र विलियम बहुत खूबसूरत था, और एक दफ़ा जब उसने सर गिडन मरे की ज़मीन पर धावा किया तब पकड़ लिया गया। सर गिडन ने यह शर्त की कि या तो प्राणदण्ड स्वीकार करो या उसकी तीन लड़कियों में से जो सबसे अधिक कुरूप है उससे शादी करो । विलियम ने शादी करना स्वीकार किया और वह कुरूप कन्या एक आदर्श पत्नी निकली। तब से इस वंश के सब लोगों के मुँह चौड़े होते आते थे । ये ग़ज़ब की मेहनत करने वाले थे । जब काम करने लगते तब न खाने का ख़याल रहता, न आराम का । निर्भीक भी बहुत थे । एक क़िस्सा स्वयं कहा करते थे । एक दफ़ा ये एक सराय में पहुँचे। उसके मालिक से कहा कि सोने के लिए एक कमरे में प्रबन्ध कर दीजिए । मालिक ने खेद प्रकट किया और कहा कि कोई कमरा ख़ाली नहीं है सिवा उस कमरे के जिसमें एक पलंग पर लाश पड़ी हुई है और दूसरा पलंग ख़ाली है। उन्होंने पूछा कि क्या वह ग्रादमी किसी संक्रामक रोग से मरा था। मालिक ने कहा, नहीं। तब इन्होंने कहा कि उसी कमरे के दूसरे पलंग पर मेरे सोने का इन्तिज़ाम कर दो। ये कहा करते थे कि उस रात से अधिक अच्छी तरह मैं कभी नहीं सोया । इनकी पुस्तकों की बड़ी धूम थी, हाथों-हाथ चिकती थीं। कहा जाता है कि इन्होंने पुस्तकें लिखकर १,४०,००० पौंड कमाया था, परन्तु जिस ढाट-बाट से ये रहते थे उसके लिए यह ग्रामदनी काफ़ी नहीं थी । इनके मकान की प्रशंसा में एक ने कहा था कि वह पत्थर में कविता थी । ये केवल लेखक ही नहीं थे, बहुत बड़े कवि भी थे । अन्त में ऋणी हो गये । पक्षाघात हो गया था । प्राणान्त के समय इन्होंने कहा था- "तुम सबका ईश्वर भला करे । अब मैं फिर अपने को जानता हूँ ।" यही वह जब लोग अपनी वास्तविकता पहचानते हैं । शेडन (रिचर्ड ब्रिस्ली) १७५१ - १८१६ - इनमें वाणी - बल बहुत था। इनका वह भाषण व भी श्रादर की दृष्टि से देखा जाता है जो इन्होंने वारेन हेस्टिंग्ज़ पर अभियोग लगाये जाने के समर्थन में दिया था। कहा जाता है कि अँगरेज़ी भाषा में इसके जोड़ की स्पीच नहीं है । इसको सुनकर लोग मुग्ध हो गये थे । इसकी प्रशंसा में पिट ने कहा था कि यह मालूम होता था कि जैसे 'कामन्स समय www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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