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________________ संख्या २ २] साहब जी महाराज और उनका दयालबाग [प्रेम विद्यालय की छात्रायें और अध्यापिकायें] दयालबाग है; और यह साहब जी महाराज की कल्पना, संगठन- योग्यता और अथक परिश्रम का फल है । साहब जी महाराज सूर्योदय से बहुत पहले सत्संग के चबूतरे पर आ जाते हैं । उस समय वहाँ 'संतों' के 'शब्द' गाये जाते हैं । फिर ८ र ९ बजे के बीच वे सत्संग-हाल के एक हिस्से में चिट्ठी-पत्री और दूसरे कामों को निपटाने के लिए दो-ढाई घंटे बैठते हैं । दोपहर के भोजन और कुछ आराम करने के बाद मॉडल इंडस्ट्रीज़ और कारखानों का काम देखते हैं और फिर शाम को सत्संग के चबूतरे पर ग्राकर सत्संगियों को अपने सत्संग का अवसर देते हैं । इस समय जैसा कि सुबह के सत्संग और कॉरेस्पॉन्डेन्स में होता है, दूसरे दूसरे लोग भी आया करते हैं और अक्सर धार्मिक या अन्य विषयों पर साहब जी महाराज से तर्क-वितर्क करते हैं । सत्संग का चबूतरा बहुत ही बड़ा है। उस पर पाँच हज़ार से ज्यादा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १११ आदमी एक साथ बैठ सकते हैं। आवाज़ को बुलंद करने वाले लाउड स्पीकर-यंत्र के भोंपू कई जगहों पर लगे हैं, जिससे साहब जी महाराज के वचन सभी के कानों तक पहुँच जाते हैं । सत्संग के अवसर पर अक्सर जो बहसें छिड़ जाती हैं वे सुनने के लायक होती हैं। साहब जी महाराज कठिन से कठिन बात को भी सीधे-सादे शब्दों में इस तरह समझाते हैं कि वह ग्रासान मालूम होती है । यह तो हुई साहब जी महाराज की मामूली दिनचर्या । इसके अलावा श्रागन्तुकों से मिलना, दयालबाग और ग्रागरे में होनेवाली सभा सुसाइटियों में अक्सर शरीक होना, व्याख्यान देना, सभापति बनना, पुस्तकें पढ़ना, पुस्तकें लिखना इत्यादि भी साहब जी महाराज के हर रोज़ के काम है । बीच-बीच में वे देश-भ्रमण के लिए या दूसरे शहरों में सार्वजनिक कामों के लिए जाया करते हैं। तब दयालबाग सूना हो जाता है । www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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