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________________ संख्या २] - साहब जी महाराज और उनका दयालबाग़ १०९ सिर्फ भजन-ध्यान में ही लगे रहते होंगे, पर मैंने पहले ही कारण है-भौतिक जीवन का आध्यात्मिक जीवन से दिन, और कुछ ही घंटों के अन्दर, जो कुछ देखा उससे बिलकुल अलग न समझना । पता चला कि वहाँ के रहनेवाले सांसारिक वस्तुओं को सुना था कि दयालबाग के कारखाने बहुत अच्छे हैं, आध्यात्मिक बातों से अलग नहीं बल्कि उनका एक अंग, खासकर वहाँ की डेयरी (दूध का कारखाना) बहुत मशहूर स्थूल अंग, मानते हैं और जो कुछ भी वे करते हैं उसे है। जिन दिनों दूसरी बार जाकर मैं वहाँ ठहरा हुआ था, सुन्दर और हर पहलू से दुरुस्त बनाने की कोशिश एक दिन साहब जी महाराज की चिट्ठी-पत्री लिखाने की करते हैं। बैठक में गया। यह बैठक वहाँ 'कॉरेसपॉन्डेन्स' के नाम . मैंने दयालबाग़ में जगह-जगह छोटे-छोटे बोर्ड लगे से प्रसिद्ध है। इसमें हर रोज़ बहुत-से सत्संगी भाई जाकर देखे, जिन पर लिखा था- 'कड़ ा मत बोलो'। मैंने अाज़- बैठते हैं, और वे लोग भी जाते हैं जिन्हें साहब जी महाराज माना चाहा कि लोग इस आदेश का पालन भी करते हैं से कुछ काम-काज रहता है। मैं साहब जी महाराज से यह या यह वैसे ही लिखा हुआ है। मैंने जिस किसी से इधर- कहने गया था कि आप कृपाकर एक स्काउट-रैली का उधर की पूछ-ताछ करनी शुरू कर दी। किसी से वहाँ के सभापतित्व स्वीकार करें। उन्होंने मेरी प्रार्थना मान ली, कारखानों के बारे में पूछा, किसी से साहब जी महाराज पर साथ ही साथ स्काउटिंग पर बातें करते-करते और की दैनिक चर्या का हाल जानना चाहा और किसी से विषयों पर बात-चीत करने लगे। मैंने उत्साह के साथ राधास्वामी मत के सिद्धान्तों पर प्रश्न किया। मुझे यह दयालबाग़ के अच्छे प्रबन्ध की प्रशंसा की, जिस पर देखकर खुशी हुई कि सबों ने शान्ति और प्रसन्नता के साहब जी महाराज ने पूछा-"आपने यहाँ की डेयरी देखी साथ मेरे प्रश्नों का उत्तर दिया। वहाँ की यह ट्रेनिंग है?" मैंने कहा-“जी नहीं।' साहब जी महाराज ने पूछासचमुच ग़ज़ब की है। संसार में अक्सर इतनी शुष्कता, “क्यों, क्या आपको डेयरी से दिलचस्पी नहीं है ?” मैंने उदासीनता और कटुता देखने में आती है कि इन लोगों उत्तर दिया-"है, लेकिन डेयरी से ज़्यादा डेयरी की बनी का ऐसा व्यवहार मुझे बहुत ही भला मालूम हुआ। कुछ चीज़ों से दूध, मलाई, घी-से दिलचस्पी है । मैं जब से महीनों के बाद जब मैं दूसरी बार दयालबाग़ गया तब मैंने यहाँ आया हूँ दिन में दो बार सिर्फ एक-एक बोतल दूध देखा कि 'कड़ या मत बोलो' के बदले 'मीठा बोलना पीता हूँ और शाम को अपना स्काउटिंग का काम ख़त्म हमारा धर्म है' लिखा हुआ है। इस परिवर्तन से मैं अच्छी कर पूरा खाना खाता हूँ।” साहब जी महाराज इसे सुनकर तरह जान गया कि एक बड़े शिक्षक की शिक्षा प्रणाली में मुस्कराये और फिर दूसरी बातें करने लगे। जब रहकर वहाँ के लोग मामूली मामूली बातों में भी पूर्णता सभा ख़त्म हुई और मैं वहाँ से उठा तब एक उत्साही लाना सीख रहे हैं। इसी शिक्षा के कारण सफ़ाई, सिल- सत्संगी मेरे पास आ धमके और बोले--"क्यों साहब, 'सिले का ख़याल और सुव्यवस्था वहाँ की सभी बातों में आप यहाँ दो बार आ चुके और अभी तक डेयरी नहीं पाई जाती है। दो-चार आदमी अगर एक साथ चलते हैं देखी ? डेयरी तो यहाँ की बहुत मशहूर है ।” मैंने हँसते तो उनके कदम मिलते हैं, चाय-पार्टी होती है तो बैठने, हँसते कहा-“यहाँ के आदमियों को देखने से अगर फुर्सत खाने का प्रबन्ध त्रुटि-हीन रहता है, किसी सभा का आयो- मिले तो डेयरी देखने जाऊँ।” मेरे सत्संगी मित्र मेरा जन होता है तो कार्यवाही को अच्छी तरह चलाने की सभी प्राशय नहीं समझे और ज़ोर देकर कहने लगे कि मुझे सुविधायें सोच ली जाती हैं और कोई जलसा होता है तो जल्दी से जल्दी डेयरी देख लेनी चाहिए। खेद है कि उसका दिलचस्प बनाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी डेयरी देखने की फुर्सत मुझे आज तक नहीं मिली। वह जाती। स्कूल-कालेज में, फ़ैक्टरी-डेयरी में, जलसे-दावतों दयालबाग़ की असल बस्ती से कुछ दूर पर है । दयालबाग़ में, सत्संग और भजन में, सभी में विचारशीलता और के और कारख़ानों को, जो बस्ती में हैं या पास हैं, मैंने व्यवस्था पाई जाती है। दयालबाग़ की यही विशेषता है, देखा है और वहाँ के कल-पुर्जी और बनी हुई चीज़ों को और मेरी राय में, जैसा कि मैंने पहले कहा है, इसका असल सराहा है । जूतों के कारखाने को भी, जो कुछ दूर पर है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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