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________________ संख्या १] “वह मेरी मँगेतर" ९१ वर्षा नहीं होती। मई और सितम्बर दो ही महीने हैं, जिनमें इधर की पहाड़ियों का अानन्द लिया जा सकता है। सूरज में तनिक गरमी आ जाती है और उसकी सुनहरी धूप से पतझड़ की सिकुड़ी हुई पहाड़ियाँ खिल उठती हैं । इन दिनों में काम नहीं किया करता था। खेती-बारी का काम अपने बड़े भाई पर छोड़कर स्वयं ढोर डाँगरों को लेकर निकल जाता, सारा सारा दिन गायें स्वतन्त्र व्यक्ति हूँ। चराता। सन्ध्या को दूध दुहता और सँजौली जाकर हमारी थोड़ी-सी भूमि उसे बेच आता। मुझे केवल प्रातः और सन्ध्या दूध थी, उसको जोतना-बोना मैंने शीघ्र ही दुहने और बेचने का ही काम करना पड़ता था। सीख लिया। लाहौर में मैं तुच्छ समझा अन्यथा मैं सर्वथा स्वतन्त्र अपने ढोरों को चराता फिरता। जाता था, यहाँ मैं मरुस्थल का एरण्ड था। जिधर से थक जाता तो वृक्ष के नीचे बैठकर बाँसुरी की तान गुज़र जाता, सबकी नज़रें मुझ पर उठ जातीं। सब मुझे छेड़ देता। श्रद्धा की निगाह से देखते । जब मैं गाँव में आया इन्हीं दिनों मूर्त से मेरी भेट हुई । सन्ध्या का समय तब घर घर मेरी चर्चा हुई। कई युवतियों की नज़रें था। मुझे कुछ देर हो गई थी। इसलिए शीघ्र शीघ्र भी मुझसे चार हुई। मुझे इन निगाहों में प्रेम के सन्देश कदम बढ़ाता हुआ सँजौली का जा रहा था कि मुझे किसी भी मिले । पर मेरा मन कहीं नहीं अटका । मैं अपनी ने आवाज़ दी–भैया, तनिक ठहरना।" खेती-बारी में मग्न और बाँसुरी के गानों में मस्त रहा। मैंने पीछे मुड़कर देखा । पास के गाँव से आनेवाली ठंडा शीत बीता और प्राणों को गरमी पहुँचानेवाली पगडंडी से एक युवती, कन्धे पर दूध का डिब्बा लटकाये, बहार भा गई । मई का महीना था। इन दिनों शिमले में शपाशप बढ़ी चली आ रही थी। गले में धारीदार गबरून Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-mara. Surat
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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