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________________ सरस्वती [भाग ३६ . पर रख दिया ताकि ऊपर से अगर छत गिरे तो उसकी दूर की दूकानों से आग भड़क उठी। सेंक आने लगा। कुछ रक्षा हो जाय । अपनी धर्मपत्नी को "सँभल बच्चे और धर्मपत्नी को उठाकर अब आर्यसमाज के जाओ!" कहने को था कि पैरों से दीवार निकल गई। मैदान में पहुँचे।" बेहोश-सा हो गया। कुछ हौसला किया। बच्चे को कोयटा में भूचाल आया है, इसकी खबर बाहर कैसे छाती से दबाते हुए सिर की तरफ़ ज़ोर से उछ- गई, यह भी एक दिलचस्प कहानी है । कोयटा में डाकलने की कोशिश की। उसी ओर भूचाल का झटका भी खाना और तारघर गिर चुके थे, रेल की लाइन जा रहा था। हमारे ऊपर गिरी हुई साबूत दीवार हटकर उखड़ चुकी थी। अब बाहर को दुनिया को कैसे सूचित दूसरी तरफ़ जा गिरी। साथ ही मैं भी निकल गया। किया जाय ? एक फ़ौजी अफ़सर ने साहस किया। शहर मेरी धर्मपत्नी छः मास की लड़की सहित नीचे दब गई। से सोलह मील की दूरी पर स्पेजद नाम का क़स्बा है। ___"मुझे फ़िक हुई कि धर्मपत्नी और लड़की को भी वहाँ पर बेतार के तार (वायरलेस) का स्टेशन है। वह निकालूँ । पर पता न लगता था कि मेरा मकान कौन-सा अफ़सर भागकर वहाँ पहुँचा और वायरलेस के द्वारा है और मकान के किस कोने में वे सोये हुए थे। बैठी पहले मरी-पर्वत और फिर शिमला तथा लाहौर को सूचित हुई छतें और खड़ी हुई दीवारें। मिट्टी के ज़ोर से उड़ने किया । (रिलीफ़ की गाड़ियाँ इस स्पेज़द के स्टेशन तक के कारण गर्द-गबार । हर तरफ़ से चीखों की आवाज़ । ही जाती हैं ।) क्या करता? ___कोयटा में भूचाल पहली बार ही नहीं आया है । बम्बई __ "कुछ देर के बाद एक जगह से ईंटें उठा-उठाकर की वेधशाला का कथन है कि इससे पूर्व सन् १८६२, दूसरी तरफ़ फेंकनी शुरू की और नीचे से स्व-पत्नी को १६०६ और १६३१ में भी भूकम्प आये थे। इतने भूचाल निकालने लगा। लेकिन वहाँ से एक पड़ोसी निकला। यहाँ क्यों आते हैं, इसका भी वेधशालावाले एक कारण उसने बताया कि यह तो हमारा मकान है। पहले बताते हैं। खोजक पर्वतों के साथ-साथ ज्वालामुखी तो मैंने न माना, पर उसके बहुत बार कहने पर पहाड़ हैं । जब जब इस जगह की ज़मीन के नीचे गरमसमझ गया कि सचमुच यह हमारा मकान नहीं है। गरम तरल पदार्थ और गैसें जमा हो जाती हैं और बाहर नीचे से जो आवाज़ आ रही थी वह एक अन्य की स्त्री थी निकलने की कोशिश करती हैं तब तब भूकम्प आया जो एक मकान छोड़ तीसरे में रहते थे। वह बार-बार करता है । यह इन लोगों की एक 'थियरी' ही है, इसलिए कहती थी-“भाई साहब, जल्दी निकालो; आपका भला कहा नहीं जा सकता कि इसमें सचाई कहाँ तक है । होगा!" मैं उसे अपनी पत्नी समझकर उसे अाश्वासन आज से चार बरस पूर्व जब यहाँ भूचाल आया था देता - "हौसला करो; मैं अभी निकाले देता हूँ।" पास तब बोलन का दर्रा और इर्द-गिर्द का इलाका इसके ही, चौबारे का मलवा पड़ा था। लड़के को एक ढेर प्रभाव में आये थे । मछ, अाबेगुम अादि शहर विनष्ट हो पर बिठलाकर फिर ईटें हटाने लगा। जब चौबारेका मलवा गये। इनके रेलवे स्टेशन और इमारतें गिर गई। हट गया तब लोहे की चादर के नीचे स्त्री का सिर नज़र लेकिन जान का नुकसान बहुत कम हुअा। इसका एक अाया। बड़ी मुश्किल से चादर दूर की तब वहाँ से दूसरे कारण था । पहले मामूली झटके आये, जिनसे लोग सचेत पड़ोसी की स्त्री निकली। अब हिम्मत जाती रही। फिर भी हो गये और मकानों से बाहर सोने लगे। जब बड़ा तीसरी जगह से ईंटें हटाने लगा। पत्नी की टाँगें नजर झटका आया तब मकान ही गिरे, श्रादमी बच गये। उन आई। दूसरे लोगों की मिन्नत की तब कहीं ११ बजे पत्नी दिनों मछ का जेलखाना भी गिर पड़ा, जिसमें से ४७३ को निकाल पाया । वह पीड़ा से मर रही थी। गुरुद्वारे कैदी भाग निकले। एक एक्स्ट्रा-असिस्टेंट ने अनुभव के मैदान में पहुंचे। वहाँ पर थोड़ी ही देर बैठे थे कि किया कि ये डाकू इलाके में तबाही मचा देंगे, इसलिए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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