SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संख्या १] कोयटे का प्रलयकारी भूकम्प जिसमें डाक्टर, नर्स, और रेडक्रास सोसायटी के कार्यकर्ता थे। रास्ते में हमें रोहरी और सिब्बी में दो स्पेशल गाड़ियाँ मिलीं, जिनमें वे भाग्यवान् भरे हुए थे जो इस प्रलय में भी बच गये थे। सिब्बी में फोज का कड़ा पहरा था ताकि कोई फालतू मनुष्य कोयटा न जा सके। गाड़ी की तलाशी पहले सिब्बी में होती थी और फिर कोयटा-स्टेशन से तीन मील इधर । यहाँ रेल की लाइन के दोनों ओर सिपाही खड़े रहते थे जो चलती गाड़ी में चढ़कर मुसाफिरों की अच्छी तरह जाँच पड़ताल करते थे। कोयटा-स्टेशन पर भी कड़ा फौजी पहरा था। [कायटा और मुस्तङ्ग के बीच में चुङ्गी की चौकी। जिस दिन हम कोयटा पहुँचे, स्टेशन पर पीड़ितों ईरान और बलोचिस्तान को व्यापार का मार्ग यहीं से है।] का एक बड़ा जमघट मौजूद था। ये सब लोग व्यापार । हमें ऐसे आदमी मिले जो भूकम्प के पहले बाहर भेजे जाने की प्रतीक्षा में थे। लखपती थे और बाद को एक मामूली हैसियत के जिमखाना-रेसकोर्स के इर्द-गिर्द भी कड़ा पहरा भी न रहे। था। उसके एक नुक्कड़ पर भोजनालय खुला हुआ था। भूकम्प के करीब दो घण्टे के बाद फौज ने सारे यहाँ सब फ़ौजी प्रबन्ध था। भोजनालय के आस-पास शहर पर कब्जा कर लिया और सफ़रमैना (Sappers भूखे मनुष्यों का टकटकी लगाये खड़े रहना एक and miners) के आदमियों ने मलवे की खुदाई शुरू अत्यन्त हृदयस्पर्शी दृश्य था। अमीर-गरीब, ऊँचकर दी। विशेषकर दो दिन दो रात तो फौज ने नीच, नरनारी, सबको फौजी न्याय के अनुसार दो लगातार काम किया और करीब ५,००० आदमी चपातियाँ और प्याला दाल प्रत्येक बार मिलती थी। निकाले, जिनमें से आधे से अधिक जीवित थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि फौज की इस फुर्ती के कारण बहुत-सी जान बच गई। मरे हुओं की लाशें सड़कों पर ही जला दी गई। बहुत-से आदमियों ने स्वयं अपने सम्बन्धियों का दाह-संस्कार किया और राख अपने साथ रख ली। तीसरे दिन जीवित और घायल सब 'जिमखाना रेसकोर्स' के मैदान में एकत्र किये गये और उनके रहने का प्रबन्ध तम्बुओं में किया गया। सारे शहर के इर्द-गिर्द फौज का पहरा लगा दिया गया। कोई भी अन्दर नहीं जाने पाता था। अधिक घायल अस्पताल में भेजे गये। इसी दिन हमारी स्पेशल गाड़ी कोयटा पहुँची, [मुस्तङ्ग का मुख्य बाज़ार
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy