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________________ संख्या १] . गंगा तट या काशी में बाल बनवाने का नियम कर लिया था, इसलिए उनके दाढ़ी -बाल दो-दो, चार-चार महीनों तक नहीं बन पाते थे । पुजारी यद्यपि धार्मिक और श्रद्धालु श्रादमी थे, तो भी उनकी श्रद्धा अंधश्रद्धा न थी । यही कारण था, जहाँ गाँव के लोग सभी लम्बी दाढ़ी, भारी जटा, छोटी लँगोटी और सफ़ेद भभूत को साष्टांग दंडवत् करना अपना धर्म समझते थे, वहाँ पुजारी बिना गुण की परख पाये ऐसे साधुत्रों की श्राव-भगत से दूर रहते थे। हाँ, उनके गाँव से कुछ दूर एक निर्जन स्थान में एक वृद्ध परमहंस रहा करते थे, जिनकी आयु के बारे में बूढ़े-बूढ़े लोग भी क़सम खाने के लिए तैयार थे कि उन्होंने जब से होश सँभाला तत्र से परमहंस बाबा का ऐसे ही देखा है । यह भी कहा जाता था कि परमहंस बाबा अपनी जन्मभूमि (पोखरा) नेपाल से विद्या पढ़ने के लिए बनारस आये थे, वहीं पीछे विरक्त हो राजघाट के पास एक कुटिया में रहते थे । जब राजघाट में रेल आई और उसकी गड़गड़ाहट से उनके ध्यान में विघ्न पड़ने लगा तब मुफ़्त में मुक्ति देनेवाली काशी को छोड़कर वे अपने एक भक्त के साथ पुजारी के आस-पासवाले प्रदेश में चले गये । पुजारी परमहंस जी के प्रति बड़ी श्रद्धा रखते थे । हर चौथे-पाँचवें वे दर्शनार्थ वहाँ पहुँचते थे । बंदोबस्त के मुक़दमों से छुट्टी पाने पर तो उन्हें और भी सत्संग का मौक़ा मिलने लगा । I पुजारी ( ४ ) पुजारी के सुखमय जीवन की दशा का अत्र अन्त हो रहा था । इतने समय में उनकी आर्थिक अवस्था ही अच्छी नहीं हो गई थी, बल्कि उनके एक कन्या और चार पुत्र भी हो चुके थे । पिता की मृत्यु के बाद घर में किसी की मृत्यु से उन्हें अपनी आँखें भिगोनी नहीं पड़ी थीं। एक तरह वे भूल ही गये थे कि संसार में मृत्यु भी कोई चीज़ है । इसी समय पुजारी की धर्मपत्नी बीमार पड़ीं। पुजारी के उस झारखंड के गाँव में वैद्य पहुँचते ही कहाँ थे ? श्रोमा - सयाने ही सुलभ थे, किन्तु पुजारी उन्हें फूटी आँख से भी देखना नहीं चाहते थे। उनकी मा ने एकआध बार चुपके से जाकर अपने पड़ोसी ओझा से पूछा फा. ८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५७ और सहृदया ने बताया कि घर के पास की बाँसवाली चुड़ैल का फ़िसाद है, किन्तु पुजारी के मारे उसकी शांति पूजा हो तब तो ! पुजारी इस समय स्वयं रसराज - महोदधि के पन्ने उलट रहे थे । उन्हें यह मालूम हो गया कि स्त्री को पांडु-रोग है । कुछ अपनी और कुछ दूसरे यमराज-सहोदर वैद्यों की दवा भी की और भी जो उपचार बन पड़ा, किया । किन्तु कुछ महीनों की बीमारी के बाद स्त्री चल बसी । बाहर प्रकटं न करने पर भी पुजारी को मर्मान्तक दुःख हुआ । इस समय पुजारी पूरे तीस वर्ष के भी न हो पाये थे। खाते-पीते व्यक्ति का ब्याह करने के लिए सभी लोग तैयार रहते हैं । स्त्री की वर्षी भी न पाई थी कि ब्याह करनेवाले मँडराने लगे। लेकिन पुजारी ने साफ़ कह दिया - मेरे पाँच बच्चे हैं । ब्याह का फल मुझे मिल गया है । मुझे शादी नहीं करनी है । पुजारी के इस दुःख को कम करने की कुछ बातें थीं । सबसे पहले तो उनके अपने मन की दृढ़ता थी । बच्चों का प्रेम भी उसका सहायक था। उनका भाई बहुत ही आज्ञाकारी था - इतना आज्ञाकारी कि कभी कभी इसके लिए उसे अपनी स्त्री का ताना सुनना पड़ा था । पुत्रों के सयाने होने पर पुजारी को और अच्छे दिनों की आशा थी । ( ५ ) पुजारी धार्मिक विचार के आदमी थे, और उनमें उदारता, दया आदि कितने ही गुण भी थे । वे क्या थे, इसके लिए उनके जीवन की कुछ घटनायें दे देना ज़रूरी है । एक समय की बात है । पुजारी उस समय २०-२१ वर्ष से अधिक के न रहे होंगे। एक जगह चुपचाप उदास बैठे थे । साधारण उदास नहीं, बहुत ही उदास, यहाँ तक कि कभी कभी श्रात्महत्या कर डालने का ख़याल तक उनके में उठ श्राता था । कारण यह था । पुजारी के पूर्वज छः-सात पीढ़ी पहले सरयूपार से आकर इधर बस गये थे । अब भी लोग कम से कम अपनी कन्याओं को सरयूपार (गोरखपुर - जिले में ) ही ब्याहना पसंद करते थे । अपनी मन www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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