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संख्या ६]
सम्पादकीय नोट
योरपीय तथा भारतीय पत्रों ने भी काफ़ी प्रशंसा की। विदेशी पत्रों में कुमारी अमला की नृत्यप्रतिभा का उस अवसर पर नृत्य-कलाविशेषज्ञ श्रीयुत उदयशंकर भी समाचार पढ़कर रवीन्द्रनाथ ठाकुर महाशय ने कलकत्ते के अपनी माता तथा भगिनी के साथ उपस्थित थे। ये अक्षय सर्वप्रधान रङ्गमञ्च एम्पायर थियेटर हाल में स्वयं अपने बाबू के मित्र हैं । अतएव कुमारी नन्दी ने इनके साथ अभिनय के साथ इनके नृत्य का प्रदर्शन किया। तभी भ्रमण करके जर्मनी, बेल्जियम, हालेंड, डेन्मार्क, नावें, से स्वदेश में भी अमला की नृत्यप्रतिभा की प्रसिद्धि स्वीडन, फ़िनलैंड, लिथुआनिया, पोलंड, ज़ेकोस्लोवाकिया, हो गई । इनके नृत्य में भगवान् की आराधना का जो भाव आस्ट्रिया, हंगरी, इटली, स्विटज़लैंड तथा योरप के कई उदित होता है उसे देखकर कितने ही भगवद्भक्त अाँसुत्रों अन्य देशों में अपने नृत्यों का प्रदर्शन किया, साथ ही की धारा बहाते देखे गये हैं । इनके सभी नृत्य पूर्ण रूप से योरप के विभिन्न प्रकार के नृत्यों तथा गीतों की शैलियों देशी भावों से प्रोत-प्रोत होते हैं तथा उनमें अनेक स्वयं का अध्ययन भी किया है, जिससे इन्हें बड़ा लाभ हुआ। अमला की कल्पना की उपज हैं ।
कुमारी अमला की प्रतिभा केवल नृत्यकला तक ही परिमित नहीं है। बँगला के साहित्य-क्षेत्र में भी इन्होंने ख्याति प्राप्त की है। बँगला के भिन्न-भिन्न मासिक पत्रों में इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं। अमला के पिता श्रीयुत अक्षयकुमार नन्दी मातृमंदिर नामक एक मासिक पत्रिका गत सात वर्ष से निकाल रहे हैं । शिक्षा के सम्बन्ध में अमला ने अपने पिता को एक सुयोग्य पुत्री के रूप में परिचय दिया है। __ जिन व्यक्तियों ने भारत से बाहर भारत के गौरव की घोषणा की है, कुमारी अमला उनमें एक हैं। इनका एक बड़ा चित्र 'सरस्वती' के पिछले अंक में भी हम प्रकाशित कर चुके हैं।
[कुमारी अमला नन्दी]
स्वर्गीय प्रोफ़ेसर सिलवेन लेवी
फ्रांस के प्रसिद्ध प्राच्य-विद्याविद प्रफेसर सिलवेन अमला नन्दी की अवस्था अभी कुल तेरह वर्ष की लेवी का स्वर्गवास हो गया । वे भारतीय संस्कृति के हे और ये अपने पिता के साथ १० चौरंगी रोड, कलकत्ता, विशेषज्ञ थ। उन्हान आज
विशेषज्ञ थे। उन्होंने आजीवन भारतीय प्राचीन साहित्य में रहती हैं । कुमारी अमला नन्दी ग्यारह वर्ष की अवस्था का अध्ययन किया और उसके सम्बन्ध में सैकड़ों लेख में अपने माता-पिता के माथ तीर्थ-यात्रा के सिलसिले में लिखे। यही नहीं, उन्होंने कतिपय भारतीय विद्वानों को वृन्दावन में होली का नृत्य तथा दक्षिण में देवदासी-नत्य भारतीय संस्कृति का वैज्ञानिक ढंग से अनुशीलन करने देखकर इस कला की ओर आकर्षित हुई थीं। बाद को पेरिस का मार्ग बताया। उनके ऐसे ही गहन पाण्डित्य के की उक्त प्रदशिनी में तथा योरप के भिन्न भिन्न नगरों में लिए भारतीय विद्वान् उनका बड़ा आदर करते थे और उदयशंकर के माथ अपनी कला का प्रदर्शन करके अच्छी इसी से सर्वभारतीय प्राच्य-सम्मेलन के दूसरे अधिवेशन कीर्ति अर्जित की । एकमात्र जर्मनी के ही सौ से अधिक का सभापति बनाकर उन्होंने उनका सम्मान किया मुख्य नगरों में इनकी कला का प्रदर्शन हुआ था। था। कलकत्ता-विश्वविद्यालय ने उन्हें डाक्टर की पदवी
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