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________________ ५६८ सरस्वती जायगा । इस व्यवस्था के लिए फ़िलीपाइन- निवासी तथा अमरीकावाले दोनों वास्तव में बधाई के पात्र हैं । कांग्रेस की फूट कहाँ होना यह चाहिए था कि देश की सबसे बड़ी राजनैतिक संस्था कांग्रेस एकमत होकर नये शासनविधान के पक्ष या विपक्ष में अपनी कोई स्पष्ट नीति घोषित करती और उसे कार्य में परिणत करने के लिए राष्ट्र का नेतृत्व करती, कहाँ संसार को यह बताया जा रहा है कि कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता इस समय केवल श्रापस में लड़-भिड़ रहे हैं। संयुक्त प्रान्त कांग्रेसियों में यह लड़ाई तो यहाँ तक बढ़ गई थी कि उसका लखनऊ में वार्षिक अधिवेशन तक होना खटाई में पड़ गया था । अभी तक इस आपसी लड़ाई के लिए बंगाल ही बदनाम था, परन्तु इस मामले में संयुक्त प्रान्त बंगाल से भी आगे बढ़ गया है। इनके सिवा मध्य प्रदेश का भी रंग-ढंग अच्छा नहीं दिखाई दे रहा है । और आश्चर्य तो यह है कि इस आपसी लड़ाई की छूत बढ़ती ही जा रही है । और यदि यही क्रम जारी रहा तो एक दिन कांग्रेस का सारा का सारा संगठन ध्वस्त हो जायगा । ऐसी दशा में आवश्यक यह है कि कांग्रेस के प्रधान प्रधान व्यक्ति अपनी निरपेक्ष मनोवृत्ति को अलग कर आगे यावें और कांग्रेस के इन सारे आपसी झगड़ों को दूर कर उसके अस्त-व्यस्त संगठन को दृढ़ता प्रदान करें, अन्यथा गत २० वर्ष का सारा परिश्रम धूल में मिल जायगा और कांग्रेस देश के अन्य दलों की राजनैतिक संस्थाओं की श्रेणी के अन्तर्भुक्त हो जायगी, जिससे राष्ट्र का निस्सन्देह अधःपतन हो जायगा । मौरावाँ का पुस्तकालय - सम्मेलन मौरावाँ उन्नाव जिले की देहात का एक बड़ा क़स्बा है । यह यहाँ के खत्री तालुक़दारों का केन्द्र भी है । ये लोग शिक्षा-प्रचार एवं लोक-सेवा के सदैव प्रेमी रहे हैं । परन्तु स्वर्गीय लाला केदारनाथ ने जब से यहाँ अँगरेज़ी का एक हाई स्कूल, एक संस्कृत पाठशाला तथा एक दातव्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३६ रहा है। अभी हाल औषधालय खोला है तब से यहाँ के शिक्षा प्रचार एव लोक-सेवा के कार्यों ने और भी अधिक व्यवस्थित रूप धारण कर लिया है। उनके उपर्युक्त आदर्श कार्यों का यहाँ के उनके अन्य तालुकदार बन्धुत्रों पर भी काफ़ी प्रभाव पड़ा है, जिसके फल स्वरूप यहाँ अब कन्याओं की भी शिक्षा की व्यवस्था हो गई है तथा स्त्रियों की अँगरेज़ी ढंग की चिकित्सा का भी प्रबन्ध में वहाँ उन्नाव जिले का 'पुस्तकालय सम्मेलन' हुआ था । इस सिलसिले में हमें भी वहाँ जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । हम मौरावाँ कोई २५ वर्ष बाद गये थे और वहाँ के अँगरेज़ी स्कूल के आस-पास कई एक छात्रावासों एवं अस्पताल की इमारतों को देखकर अवाक् हो गये । पहले जहाँ एक छोटा-सा अस्पताल, एक स्कूल और एक छात्रावास था, वहाँ श्राज अनेक भव्य इमारतों का एक बड़ा भारी समूह अस्तित्व में आ गया है। वास्तव में इन २५ वर्षों में मौरावाँ की बड़ी उन्नति हो गई है और अब यह इस बड़ी देहात का विद्यापीठ हो गया है । इस सबके लिए यहाँ के खत्री रईस सर्वथा प्रशंसा पात्र हैं । जिस पुस्तकालय - सम्मेलन के सिलसिले में हम मौरावाँ गये थे वह भी इन्हीं रईसों की उदारता का एक प्रसाद था । यहाँ का यह पुस्तकालय यद्यपि यहाँ के प्रसिद्ध वकील बाबू जयनारायण कपूर के गत १७ वर्ष के विशेष हिन्दी - प्रेम का फल है, तथापि उसकी वर्तमान संबर्द्धना में यहाँ के रईसों का भी पूरा हाथ रहा है। इस बार इसका वार्षिक अधिवेशन जिस धूमधाम से हुआ वह सर्वथा मौरावाँ के उक्त रईसों के अनुरूप ही हुआ । ऐसे सफल साहित्यिक समारोह प्रायः बड़े बड़े नगरों में ही देखने को मिलते हैं । मौरावाँ का यह साहित्यिक समारोह दो दिन तक विशेष व्यवस्था के साथ होता रहा । पहले दिन पुस्तकालयप्रदर्शिनी का उद्घाटन हुआ। इस अवसर पर स्वागत - भाषण स्वर्गीय लाला केदारनाथ के पुत्र राय बहादुर लाला प्रयागनारायण जी ने किया और सभापति डाक्टर वली मोहम्मद ने अपने सभापति के भाषण में साहित्य - प्रदर्शिनी का महत्त्व बताया। प्रदर्शिनी अपने ढंग की www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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