SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 614
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६० सरस्वती भाग ३६ पुरुष भी स्वतन्त्र है । इस प्रकार भील स्त्री-पुरुष स्वतन्त्र भीलों का सर्वस्व गया, गुलामी की जंजीरों में जकड़े जीवन व्यतीत करते हैं। गये । इसका मुख्य कारण निरक्षरता ही है । भीलों की कमाई विवाह की प्रथा हिन्दुत्रों-जैसी है। विवाह में वेदी से अाज शिक्षितवर्ग आमोद-प्रमोद, भोग-विलासितामय का रवाज नहीं था, परन्तु अब अाश्रम के प्रचार से यह जीवन व्यतीत कर रहा है। इस शिक्षा के ज़माने में भी प्रथा बदलती जा रही है। पहले वेदी से लग्न कराने पर भी जंगल में रहनेवाले भील अक्षरज्ञानशून्य हैं। कहीं कहीं ब्राह्म णविधि नहीं कराते थे। ग्राम के मुखिया लोग ही सरकारी स्कूल या मिशन की ओर से चलते स्कूलों लग्न कराते थे। विवाह का दिन याद रखने के लिए एक में बिरले ही भीलों के लड़के दो-तीन चौपड़ी पढ़ें, परन्तु रस्से में बहुत-सी गाँठे मारते हैं और प्रतिदिन एक एक घर आकर यह भी सब भूल जाते हैं । भीलों की निरक्षरता गाँठ खोलते जाते हैं । जब गाँठ शेष रहे तब वर-पक्ष बरात के कारण ही शिक्षितवर्ग भीलों को ठग लेता है और ले कन्या के घर पहुँचता है। खास कर विवाह प्रातःकाल भील ठगाये जाते हैं। ही होता है। कन्या-पक्ष के आदमी वर को कन्धे पर उठा लेते हैं और वर-पक्ष के श्रादमी कन्या को कन्धे पर उठा भारत के भिन्न भिन्न प्रान्तों में पिछड़ी क़ौमों लेते हैं। कन्या वर पर तथा वर कन्या पर चावल फेंकता __ की जन-संख्या है। अब भी वर विवाह के समय हाथ में हाल तथा गोंड (मध्यप्रांत, मध्यहिन्द, बिहार, उड़ीसा) २६,०२,५६२ तलवार रखता है। इस प्रकार नाच-गान के साथ विवाह संथाल (मध्यहिन्द, बिहार, उड़ीसा, मदरास) २२,६५,२६५ होता है। परन्तु अब वैदिक धर्म के प्रचार से इसमें भील (बंबई-प्रान्त, मध्यप्रांत । परिवर्तन होता जा रहा है। '। बड़ोदा, राजपूताना) १७,६५,८०८ ___ भीलों का मानसिक स्वभाव बालकों-जैसा होता है। घड़ी कांबी (कुर्ग, मदरास, मैसूर, हैदराबाद) ८,५५,२७६ भर में भावना से खुश और घड़ी भर में नाखुश । बालक ओरांत्रो (बिहार, उड़ीसा, आसाम, मध्यप्रांत) ७,६५,६८० जिस प्रकार अपने सामान की बेदरकारी रखते हैं, इसी वणझारा । । बंबई-प्रान्त, मध्य-प्रांत, ।, प्रकार भीलों का अपनी वस्तुओं के भूल जाने का "। पंजाब, हैदराबाद, मैसूर)। ६,५१,६७२ स्वभाव होता है। अनेक बार ठगे जाने पर भील बार बार मुंडा (बिहार, उड़ीसा, बंगाल, आसाम) ५,६३,८३६ ठगा जायगा। थोड़ा-सा आदर दीजिए कि सब वैर भूल शवर (बिहार, उड़ीसा, मदरास, मध्यहिन्द) ४,७५,८६८ जायगा । मांसाहार के कारण स्वभाव तेज़ चिड़चिड़ा होता हो (बिहार, उड़ीसा) ४,४०,१७४ है। थोड़ी थोड़ी बात में गरम हो जाते हैं। दूसरों को नाग (आसाम) २,२०,६१६ नुकसान करने की आदत नहीं । भूखा भले ही कपास तथा कचारी २,०७,२६६ अनाज आदि की चोरी कर ले, परन्तु किसी का घरबार कुल १,११,७३,२७४ लूट किसी को पायमाल करना नहीं चाहता । देनदारी नायक, गामीत, बावचा, बावला, थोड़ी भी यदि हो तो बहुत दुखी रहता है। देनदारी । चोधरा, राठवा, राठोडीश्रा, तलावीया, को ही भय या दुःख मानता है। अन्य किसी भी बात से । डरता नहीं। सिर्फ़ क़र्ज़ और साहूकार से ही डरता है। दुबला, धाणका, किरात, कुकण, बगेरे सब लगभग विवाह आदि प्रसंग पर थोड़ी-सी रकम उधार ले उसके ५०,००,००० अदा करने के लिए आजीवन गुलामी करते हैं । भीलों कुल १,६१,७३,२७४ को इस प्रकार के भयंकर महादुःखसागर से पार करने की हर एक का पवित्र फ़र्ज़ है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy