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________________ ५५२ सरस्वती है । मन क्या है, किससे बना है, इसका क्या परिमाण है, खाद्य द्रव्यों का इस पर क्या प्रभाव पड़ता है, कैसी अद्भुत शक्तियों का यह भाण्डार है, कैसे यह चञ्चल मन वश में किया जा सकता है इत्यादि शीर्षकों के नीचे लेखक ने अनेक उपयोगी बातों का संकलन किया है। एक ही विषय पर विभिन्न मतों को रखने से तथा उनमें से एक के निर्णय का प्रयत्न न होने से प्रतिपाद्य विषय की स्पष्टता कम हो गई है । योग्य जिज्ञासु तथा इस विषय से अनुराग रखनेवाले सज्जन इससे अनेक ज्ञातव्य बातें जान सकते हैं । विषय- प्रतिपादन की शैली यदि अधिक क्रम-बद्ध होती तो पुस्तक और भी उपयोगी हो सकती थी । कैलाशचन्द्र शास्त्री, एम० ए० २२- ३० - ' गीता प्रेस' की ६ पुस्तकें गोरखपुर के 'गीता प्रेस' ने अब तक जितने काम किये उनमें लोकोपकार का भाव अधिक रहा है। हाल में उसने (१) 'ईश' (२) 'केन' (३) 'कठ' (४) 'मुण्डक' (५) 'प्रश्नोपनिषद्' -- ये पाँच उपनिषद् सानुवाद शाङ्कर भाष्य सहित नवीन छापे हैं। इनकी पृष्ठ संख्या यथाक्रम ५०, १५०, १७०, १३० और १३० हे और मूल्य ), II), II−), I) और I) है । इन सबमें एक एक रङ्गीन चित्र, विषय-सूची, मंत्रानुक्रमणिका, और शब्दार्थ एवं भावार्थबोधक शुद्ध अनुवाद है । वह मूल के बराबर बगल में लगा हुआ है । ऐसा होने से प्रत्येक वाक्य या पंक्ति का अर्थ समझने में बुद्धि स्वतः प्रविष्ट हो जाती है और उसमें छात्रों को विशेष सुविधा मिलती है । 'उपनि 'वेदों के अर्थ प्रकट करनेवाले होते हैं । और वेद, भगवान् की वाणी हैं जिनमें सम्पूर्ण शास्त्रों के सारभूत बीज भरे हुए हैं। इनके अतिरिक्त (६) 'मुमुक्षु सर्वस्व' - नामतुल्य फल देनेवाला है । इसके पाँच प्रकरण हैं। पहले में श्रात्मज्ञान, दूसरे में श्राचारदर्शन, तीसरे में विरक्ति, चौथे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat भाग ३६ में जप, ध्यान, उपासना और पाँचवें में बन्धनमोक्ष के उपाय बतलाये गये हैं । प्रत्येक विषय सोदाहरण है । इस लोक में निरामय रहने और बंधनमुक्त होकर परलोक प्राप्त करने के लिए यह ग्रन्थ मनन करने योग्य है । संपूर्ण विषय ६३, पृष्ठ चार सौ, मूल्य III), रङ्गीन चित्र १ और अशुद्धि एक भी नहीं । (७) 'प्रेमदर्शन' - है । इसे नारदभक्ति सूत्र का विस्तृत अनुवाद या भाषाभाष्य कहा जाय तो अत्युक्ति नहीं । इसमें अनुवादक महोदय ने एतद्विषयक अपनी व्यापक बुद्धि का परिचय दिया है। मनोदित भाव प्रदर्शित करने के सिवा अन्यत्र के अनेक वाक्य राय देकर इसे बहुत ही उपयोगी, हृदयग्राही एवं रुचिकारी बना दिया है । भक्तिविषयक बातों में अधिकांश व्यक्ति कम ध्यान देते हैं । किन्तु इसमें तो सामान्य मनुष्यों का मन भी श्रानन्दमग्न होकर संलग्न हो जाता है। इसके सम्पूर्ण ८४ सूत्रों का अवलोकन करने से सूचित हो सकता है कि ये सूत्र ८४ से पिंड छुड़ाने में समर्थ हैं। इसकी पृष्ठ संख्या २००, चित्र ३, प्रकरण १६ और मूल्य 1 ) हैं । (८) 'नारदभक्तिसूत्र' में प्रेमदर्शन के मूल सूत्र संस्कृत में हैं। साथ में भावार्थबोधिनी टीका है । भगवद्भक्त इसको कंठस्थ करके प्रेमदर्शन के सहारे तल्लीन होना चाहें तो बड़ी सुविधा मिलती है। इसकी पृष्ठ संख्या ३० और मूल्य ) | है । और ( ९ ) गोविन्द दामोदर माधवेति' स्तोत्र है । इसमें भगवान् की विविध लीलाओं IIT मनोविनोदात्मक एवं आत्मकल्याणकारक रूप में परिचय कराने के साथ ही प्रत्येक श्लोक में 'गोविन्द दामोदर माधवेति' उच्चारण करवा दिया है। इसके सुरीले श्लोकों की मधुर ध्वनि में मन मन हो जाता है। साथ में सुन्दर भाषानुवाद भी है । श्लोक ६८, पृष्ठ ४०, चित्र १ और मूल्य - ) | है | - हनुमान शर्मा www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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