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________________ ५५० सरस्वती भाषा सरल है । पुस्तक का गेट-अप अच्छा है, पर मूल्य यदि प्रचार की दृष्टि से कुछ कम होता तो अधिक उचित होता । १३ – महिलासमाज – लेखक, श्रीयुत श्रोंकारनाथ 'दिनकर', प्रकाशक, परिवर्तन-प्रकाशक विभाग अजमेर हैं । मूल्य 1) है । इस छोटी-सी पुस्तक में लेखक ने 'हमारा न्याय' शिक्षा, परदा तथा अधिकार नामक शीर्षकों पर अपने विचार व्यक्त किये हैं । स्त्रियों के प्रति पुरुषों द्वारा किये ये अन्याय तथा अधिकारापहरण का जोशीले शब्दों में विरोध करते हुए लेखक ने महिलाओं की शिक्षा के प्रभाव से होनेवाली हानियों को दिखलाया है तथा परदे की प्रथा को दूर करने के लिए भी उचित कारण बतलाये हैं । पुस्तक में कोई नवीन विचार नहीं हैं, हाँ महिलाओं के पक्ष - समर्थन में लेखक ने उन स्मृतिकारों तथा भक्तों की कटु आलोचना अवश्य की है जिन्होंने स्त्रियों की निन्दा की है । परन्तु यह निन्दा विरक्ति-मार्ग में जिस प्रकार, कामिनी- काञ्चन के परित्याग के लिए 'कामिनीरूप' नारी की की गई है, उसी प्रकार उस पथ की पथिक नारियों के लिए पुरुषों को हेय बतलाया है । इस दृष्टिकोण को सामने न रखने के कारण लेखक की युक्तियाँ एकाङ्गी तथा एक पक्ष की हो गई हैं । प्रत्येक अध्याय के प्रारम्भ के अँगरेज़ी वाक्यों के उद्धरण देकर प्रारम्भ करना, विशेषतया उन स्थानों पर जहाँ वे स्मृति के श्लोकों अथवा वेदमंत्रों के अनुवादमात्र हैं, अवाञ्छनीय है । पुस्तक में अनेक सामयिक बातों पर भी प्रकाश डाला गया है । इस दृष्टि से पुस्तक उपादेय कही जा सकती है । १४ - अनुवाद - चन्द्रिका - लेखक, कविरत्न पण्डित चक्रधर नौटियाल, एम० ए०, शास्त्री, हिन्दी प्रभाकर हैं । पता - मोतीलाल बनारसीदास, पंजाब संस्कृत पुस्तकालय, लाहौर | मूल्य १) 1 यह पुस्तक हाई स्कूल तथा इन्टरमीडियेट के परीक्षार्थियों का लक्ष्य में रखकर लिखी गई है । संस्कृत अनुवाद पर अन्य भी अनेक लेखकों ने पुस्तकें लिखी हैं, परन्तु जैसी सरल पद्धति तथा क्रम से अनुवाद के लिए आवश्यक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३६ विषयों का विवेचन इस पुस्तक में हुआ है, वैसा बहुत थोड़ी प्रचलित पुस्तकों में दृष्टिगोचर होता है । संस्कृत-व्याकरण तथा अनुवाद दोनों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध | इस बात का विचार रख कर ही शास्त्री जी ने इस पुस्तक को लिखा है । पुस्तक के अन्त में अशुद्धि-संशोधन, लोकोक्तिसंग्रह, पंजाब तथा संयुक्त प्रान्त की प्राश तथा हाई स्कूल परीक्षाओं के प्रश्न-पत्र तथा शब्द-सूची नामक प्रकरणों से ग्रन्थ की उपयोगिता और भी बढ़ गई है । पुस्तक परिश्रम से लिखी गई है और हाई स्कूल की श्रेणियों के लिए विशेष उपयोगी है । १५ - विद्यार्थी जैनधर्मशिक्षा - लेखक, श्रीयुत ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद जी, प्रकाशक, दि० जैन पुस्तकालय, सूरत हैं । मूल्य १ || ) है । स्कूल तथा कालेज के जैन विद्यार्थियों को जैन-धर्म के तत्त्वों तथा शिक्षाओं से परिचित कराने के उद्देश से लेखक इस पुस्तक को लिखा है । सम्पूर्ण पुस्तक शिष्य तथा शिक्षक के प्रश्नोत्तरों के रूप में सरल, शुद्ध तथा प्रतिपाद्य विषय के अनुरूप भाषा में लिखी गई है। जैन धर्म की सम्पूर्ण रूपरेखा तथा उसके तत्त्व इस एक पुस्तक के पढ़ने से पर्याप्त रूप से समझ में आ सकते हैं । पुस्तक परिश्रम से लिखी गई है । आशा है, जैन छात्र इससे उचित लाभ उठावेंगे । जैन जिज्ञासु भी जैन-धर्म की अनेक ज्ञातव्य बातों को इस एक पुस्तक से जान सकेंगे। लेखक ने पुस्तक के अन्त में जैनेतर धर्मों तथा जैन धर्म की समानता तथा असमानताओं का भी संक्षिप्त परिचय दे दिया है जिससे पुस्तक की उपयोगिता और भी बढ़ गई है । सम्पूर्ण ग्रन्थ में अन्य धर्मों के विवेचन में लेखक ने शिष्टभाषा का प्रयोग किया है। जैन तथा जैन दोनों को इससे लाभ उठाना चाहिए । १६ - प्रसंगोचित पद्यमालिका - (संस्कृतग्रन्थ) संग्रहकर्ता श्रीयुत फूलचन्द्र मुनि, पृष्ठ संख्या १६३. मूल्य II) है । पता - श्री जोतिमल मूलामल जैन (भावड़ा), मातीबाज़ार, पो० मालेरकोटला स्टेट (पंजाब) । उपदेश देने अथवा धर्म-प्रचार करने के समय व्याख्यान को प्रभावशाली एवं रोचक बनाने के लिए काम में www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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