SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 575
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गंवा चुके थे। राजराजा को अल्पवयस्क देखकर पांड्य तथा चेर देश के राजाओं ने समझा कि चोल-राज्य को हड़पने के लिए यह समय अनुकूल है। उन लोगों ने कहला भेजा कि हमारी अधीनता स्वीकार करो या युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। यह समाचार पाकर राज्य के लोग भयभीत हो उठे। किन्तु अल्पवयस्क होकर भी राजराजा विचलित नहीं हुए। उनके हृदय में पूर्व-पुरुषों के गौरव की कथा स्मरण हो आई। राजा परान्तक ने देश पर देश जीत कर चोलवंश का जो गौरव बढ़ाया था, क्या वह आज नष्ट हो जायगा? नहीं, नहीं, कदापि नहीं । जीवन रहते तक मैं ऐसा न होने दूंगा। राजराजा ने सोचा कि यदि शत्र का यह अहङ्कार मैं न तोड़ सका तो चोलराज्य का ध्वंस हो जायगा। प्राण रहते क्या मैं ऐसा होने दूंगा? युवक राजा ने परामर्श के लिए राज्य के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को दरबार में बुलाया। मन्त्रीगण राजा की बात सुनकर चमत्कृत हो उठे। चोल राज्य के अतीत गौरव को सुप्रतिष्ठित करने की उन्हें भी प्रबल आकांक्षा थी। किन्तु तामिल-देश के समस्त राजाओं पर आधिपत्य करना कोई है। इस प्रकार युद्ध करने से चोलराज्य पाण्ड्य तथा चेर देशवालों आसान बात तो थी नहीं। कहाँ उसके लिए आवश्यक सेना थी और के हाथ में चला जायगा। आप किस बल पर असाध्य साधना कहाँ उतना धन था ? कोई कुशल सेनापति भी तो नहीं था! करेंगे? मन्त्रियों तथा देश के बड़े बड़े लोगों ने एक-स्वर से कहा-महा- राजा ने कहा-बहुत अच्छा। आप लोगों का परामर्श सुन राज, अर्थबल, सैन्यबल तथा रणकुशल सेनापति होने पर ही शत्रु पर लिया, अब मैं अपना कर्तव्य स्थिर करूँगा। सब लोग विस्मित होकर विजय प्राप्त करना सम्भव है, अन्यथा विजय की कोई आशा नहीं अपने अपने घर चले गये। ५२७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara. Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy