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________________ संख्या ६] स्वर्ग का एक कोना ५२३ छोटी-सी पतवार से चलाकर छोटा महमदू दोनों कूलों को एक करता रहता था। ___ हम रात को लहरों में झूलते हुए खुली छत पर बैठकर तट के एकएक दीपक को पानी में अनेक बनते हुए तब तक देखते ही रह जाते थे जब तक नींदभरी पलकें बन्द होने के लिए सत्याग्रह न करने लगती थीं और फिर सवेरे तब तक कोई काम न हो तैरता हुआ खेत पाता था जब तक जल में सफेद बादलों की काली देखने लगता। उसकी गम्भीरता देखकर यही प्रतीत छाया अरुण होकर फिर सुनहरी न हो उठती थी। उस होता था कि उसने सलाम करके अपने गुरुतम फूलों के देश पर रुपहले-सुनहले रातदिन बारी बारी कर्त्तव्य का पालन कर दिया है, अब उसे सुननेवाले से पहरा देने आते जान पड़ते थे। वहाँ के असंख्य के कर्त्तव्यपालन की प्रतीक्षा है। शीत ने इन मोम फूलों में मुझे दो जङ्गली फूल मजारपोश और के पुतलों को अंगारों में पाला है और दरिद्रता ने लालापोश बहुत ही प्रिय लगे। पाषाणों में प्रायः सवेरे कुछ सुन्दर सुन्दर बालक | मज़ारपोश अधिक-से-अधिक संख्या में समाधि नंगे पैर पानी में करम का साग लाने दौड़ते दिखाई पर फूल कर अपनी नीली अधखुली पँखड़ियों से, देते थे और कुछ अपना अपना शिकारा लिये 'सलाम अस्थिपञ्जर को ढंके हुई धूलि को नन्दन बना देता जनाब पार पहुँचायेगा' पुकारते हुए। ऐसे ही कम है और लालापोश हरे लहलहाते खेतों में अपने आप अवस्थावाले बालकों को कारखानों में शाल आदि उत्पन्न होकर अपने गहरे लाल रंग के कारण हरित पर गम्भीर भाव से सुन्दर बेलबूटे बनाते देखकर हमें धरातल पर जड़े पद्मराग की स्मृति दिला जाता है। आश्चर्य हुआ। फूलों के अतिरिक्त उस स्वर्ग के बालक भी स्मरण की काश्मीरी स्त्रियाँ भी बालकों के समान ही सरल वस्तु रहेंगे। उनकी मजारपोश जैसी आँखें, जान पड़ीं। उनके मुख पर न जाने कैसी हँसी थी, लालापोश जैसे होंठ, हिम जैसा वर्ण और धूलि जैसा जो क्षण भर में आँखों में झलक जाती थी और मलिन वस्त्र उन्हें ठीक प्रकृति का एक अंग बनाये क्षण भर में होंठों में । वे एड़ी चूमता हुआ कुर्ता और रखते हैं। अपनी सारी मलिनता में कैसे प्रिय लगते उसके नीचे पायजामा पहनकर एक छोटी-सी ओढ़नी हैं वे ! मार्ग में चलते चलते न जाने किस कोने से को कभी कभी बीच से तह करके तिकोना बनाकर कोई भोला बालक निकल आता और 'सलाम जनाब और कभी कभी वैसे ही सिर पर डाले रहती हैं। पासा' कहकर विश्वासभरी आँखों से हमारी ओर प्रायः मुसलमान स्त्रियाँ ओढ़नी के नीचे मोती www.umaragyanbhandar.com, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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