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________________ ५०२ सरस्वती । [भाग ३६ दो लड़कियों और एक लड़के ने जात-पात तोड़कर में धाक है । मेरा अपना भी अनुभव है कि कन्याविवाह किया है। पर्दा-प्रथा पर तो वे बहुत दिन महाविद्यालय की लड़कियाँ पंजाब में हिन्दी लिखने पहले से ही कुठाराघात कर चुके थे। वे आनरेरी में सबसे अच्छी हैं। मजिस्ट्रेट थे। परन्तु सन् १९२० में, मार्शल ला के लाला जी अपने पीछे दो पुत्र, श्रीयुत गन्धर्वगज कारण असहयोग करके, उन्होंने मजिस्ट्रेटी छोड़ तथा श्रीयुत ऋषिदेव, और विधवा स्त्री श्रीमती दी थी। टहलदेवी जी को छोड़ गये हैं। उनकी पुत्री श्रीमती वे बड़े मिलनसार, निरभिमान और सहृदय गार्गीदेवी और पुत्र श्री बोधराज का देहान्त पहले थे। उनसे मिलकर सदा आनन्द प्राप्त होता था। हो चुका था। परन्तु लाला देवराज का सबसे बड़ा संगीत, वाद्य, चित्रकारी आदि ललित कलाओं का स्मारक उनका स्थापित किया हुआ कन्या-महाविद्यालय भी उनको बड़ा शौक़ था। महाराष्ट्र आदि से है। बड़े सन्तोष का विषय है कि लाला जी के बहुत अच्छे-अच्छे संगीताचार्य मॅगाकर वे विद्यालय लोकान्तरित होने पर कुमारी लज्जावती, श्री में लड़कियों को शिक्षा दिलाया करते थे। मेरा अनु- कर्मचन्द्र एडवोकेट और श्री खैरायतीराम जी मान है कि अब भी लड़कियों के लिए संगीत, वाद्य एडवोकेट आदि अनेक देवियों और सज्जनों ने और चित्रकारी का जैसा अच्छा प्रबन्ध जालन्धर- लाला जी के लगाये हुए उपयुक्त पौधे की रक्षा और महाविद्यालय में है, उतना किसी दूसरे में नहीं। सेवा का भार अपने ऊपर ले लिया है और तन, महाविद्यालय की हिन्दी-शिक्षा की तो सारे पंजाब मन, धन से उसमें लगे हुए हैं। अपरिचित से लेखक, श्रीयुत पद्मकान्त मालवीय मैंने भी देखी हैं अच्छी घड़ियाँ तुम्हें बताऊँ क्या ? सुन न सकोगे, लम्बी गाथा है, यह तुम्हें सुनाऊँ क्या ? हँसती है तो हँस ले दुनिया, ऐसा समय हमारा है। शिकवा उसका क्या जब अपनी किस्मत कसे किनारा है। भिक्षापात्र भाग्य का लेकर बैठा अलख जगाता हूँ। अपने आप कभी हँसता हूँ और कभी मैं गाता हूँ ॥ लाल सखी का कभी इधर भी कोई तो आयेगा ही। सोया है जो आज.किसी दिन आखिर वह जागेगा ही। यद्यपि भाग्य पास है ऐसा जिससे जग भय से भागे। हाथ न फैला है फैलेगा यह न किसी के भी आगे ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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