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________________ लाला देवराज जी ग्यक, श्रीगुत मन्तगम, वी: एक लाला देवगन ने पंजाब में स्त्री-शिना और दिन्दी का प्रचार उन समय ग्राम्य किया था जब वहां के लेाग त्रा-शिक्षा के विरोधी थे और हिन्दी का नाम भी न जानते थे। खेद है कि गत वैशाव में ७५ वप की यायु में उनका स्वर्गवास हो गया पर जालन्धर के कन्या-महाविद्यालय के रूप में उनका सबने बड़ा स्मारक हमारे सामने है। श्रीयुत मन्तगम जी उन्हें व्यनिगत रूप से भी जानते थे और इस लेग्य में अापने उनका मंनिर पर सुन्दर परिचय दिया है। स्वर्गीय लाला देवरान जी। गदवि यात इतिहामशास्त्री आज में पचास वप पीछे जाना पड़ेगा। उस समय SAGAR श्रीयुत एचः जाः वल्म भारत में. विशेषत: पंजाब में. स्त्री-शिना का नामक मतानुसार किसी व्यक्ति निशान न था। उस समय नन महावीरों न, लोककी महत्ता के परखने की मन के. जोर विरोध के रहने भी. स्त्री-शिक्षा का कसोटी यह है --"क्या पंजाब में प्रकार किया उनमें श्रीमान दवराज जी वह विमित होने के सवप्रधान थे। उनके द्वारा संन्यापित जालन्धर लिए छोड़ गया है ? क्या का कन्या-महा वद्यालय ही शायद पंजाब में स्त्रीउसके प्रयत्न में लोग नवीन जोनी पर तो जोर के शिक्षा की सबसे पहली संस्था है। इसमें कंवल पंजाब माथ सोचने लग है कि उसके मरने के बाद भी से ही नहीं. वरन सदर काठियावाड़. गुजरान. उनकी वह विचार-मरणी बंद नहीं बढ़ ?" म कच्छ, मंयक्त नान्न. मध्यप्रदेश और बिहार से भी कसोटी के अनुसार भी श्रीमान दवराज जी एक कन्याय शिना प्राम करने आनी थीं। विद्यालय का महापुरुप थे। उनकी महत्ता को समझने के लिए वार्षिकोत्सव स्त्रियों और स्त्री-शिक्षा के प्रेमियों के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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