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सरस्वती
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भीषण आन्दोलन के प्रति तटस्थ की नीति ग्रहण - सा किये हुए है । निस्सन्देह, पंजाब का यह ग्रान्दोलन अपने ढङ्ग का एक विकट आन्दोलन है और इसका परिणाम देश की शान्ति और व्यवस्था के लिए अन्त में उसी प्रकार घातक सिद्ध होगा जैसा कि ऐसे ग्रान्दोलन यहाँ सिद्ध हो चुके हैं । अतएव हिन्दू-मुसलमान – दोनों जातियों के नेताओं को इसकी ओर समुचित रूप से ध्यान देना चाहिए ।
बुनकरों के उन्नति की योजना
ग्राम-सुधार के सम्बन्ध में भारत सरकार ने जो व्यवस्था की है उसके अनुसार प्रान्तीय सरकारें अपने अपने प्रान्त में कार्य करने लग गई हैं। संयुक्त प्रान्त में इस सिलसिले में जो योजना कार्य में परिणत की जा रही है उसमें हाथ के बने कपड़े को प्रोत्साहन देने का भी प्रबन्ध किया गया है। इस कार्य के लिए प्रान्तीय सरकार ने गत अप्रेल में १५ निरीक्षक यह बात जाँच करने के लिए नियुक्त किये थे कि कहाँ कहाँ कितना कपड़ा बुना जाता है तथा - कितने बुनकर हैं एवं उनके तैयार किये हुए माल की कैसी खपत है। इन लोगों की जाँच का काम समाप्त हो गया है और अब उनकी रिपोर्ट शीघ्र ही प्रकाशित होगी। इसके बाद प्रान्तीय उद्योग-धन्धा - विभाग उन पर विचार कर कपड़े की बुनाई के धन्धे का समुन्नत करने के विचार से अपने निश्चयों को कार्य में परिणत करेगा ।
उपर्युक्त जाँच से पता लगा है कि बुनकरों को सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि वे अपना बनाया माल बेच नहीं पाते । यह भी मालूम हुआ है कि प्रान्त के पश्चिमी ज़िलों की अपेक्षा पूर्वी जिलों में बुनकरों की दशा संतोषजनक है। पश्चिमी जिलों के बुनकरों की जहाँ ६-७ रुपया मासिक औसत प्राय है, वहाँ पूर्वी जिलों के बुनकरों की औसत आय १६ से २० रुपया मासिक तक है। प्रान्तीय सरकार की इस सम्बन्ध की कार्यवाही का यहाँ के बुनकरों पर अच्छा प्रभाव पड़ा है और उन्हें श्राशा हुई है कि सरकार उनके तैयार किये हुए माल की बिक्री का समु
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चित प्रबन्ध करके उनके धन्धे को समुन्नत करेगी। उनके लिए प्रान्तीय सरकार लखनऊ में एक ऐसी बड़ी दूकान खोलने का प्रयत्न कर रही है जहाँ वह भिन्न भिन्न केन्द्रों के बुने हुए कपड़ों के नमूने तथा विक्रयार्थ कपड़े रखकर उनके प्रचार का प्रबन्ध तथा लोक- रुचि का परिचय प्राप्त करना चाहती है । इस दूकान के साथ सरकार १२ कनवेसर भी नियुक्त करेगी जो सारे प्रान्त में घूमकर बुने हुए कपड़े की बिक्री की व्यवस्था करेंगे। सरकार यह भी प्रबन्ध करने का प्रयत्न करना चाहती है कि वह बुनकरों
उनका सारा माल खरीद कर लिया करे । प्रारम्भ में वह केवल सहयोग समितियों से सम्बन्धित बुनकरों का ही माल खरीद करेगी। आशा है, इस व्यवस्था से इन प्रान्तों के बुनकरों का धन्धा अधिक उन्नत हो जायगा ।
शर्मा जी का सत्याग्रह
जयपुर के पण्डित रामचन्द्र शर्मा देवी मन्दिरों में पशुबलि के विरुद्ध दो-चार जगह अनशन व्रत करके उसे रोकने का उपक्रम कर चुके हैं । कहते हैं कि उन्हें अपने इस प्रयत्न में सफलता भी मिली है। फलतः उन्होंने इस बार कलकत्ते के प्रसिद्ध काली मन्दिर में होनेवाली पशुबलि को रोकने के लिए आमरण अनशन व्रत प्रारम्भ किया । परन्तु कलकत्ते में उनके इस प्रयत्न का वहाँ के बंगाली शाक्तों ने विरोध किया, जिसके फलस्वरूप वहाँ के अधि कारियों ने उन पर तथा उनके अनुयायियों पर ऐसे प्रतिबन्ध लगा दिये कि शर्मा जी को काली मन्दिर से काफ़ी दूर रह कर अपना भीषण प्रदर्शन करना पड़ा। वे वहाँ ३२ दिन तक निरन्न पड़े रहे। इस बीच में उनके पक्ष में काफ़ी आन्दोलन होता रहा अन्त में महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय जी के बीच में पड़ने पर उन्होंने अपना सत्याग्रह एक वर्ष के लिए स्थगित कर दिया । कुछ लोगों ने उन्हें यह लिखकर वचन दिया है कि बलि प्रथा रोकने के लिए उन्हें प्रचारार्थ एक वर्ष का समय दिया जाय । इस प्रकार शर्मा जी ने अपना अनशन भंग किया जो सचमुच बड़े सन्तोष की बात है ।
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इस प्रसंग पर कुछ लोगों ने ऐसा भाव प्रकट किया है।
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