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________________ ४६० सरस्वती [भाग ३६ है कि समय के परिवर्तन के साथ भक्त-हृदय परिवर्तित ४-कल्याण-भावना-लेखक, श्रीयुत ताराचन्द्र नहीं हुआ करता और अब भी वह अपने को उसी प्रकार पाँड्या, प्रकाशक, गीता-प्रेस, गोरखपुर हैं । पृष्ठ-संख्या व्यक्त करता है जिस प्रकार उसने आज से चार सौ वर्ष १४ और मूल्य ।। है । पूर्व किया था। कृष्ण-भक्तों और व्रज-भाषा-प्रेमियों के यह एक पद्य-पुस्तिका है। इसमें दो रचनायें हैं खिए यह पुस्तक संग्रहणीय है। एक संस्कृत वृत्त में ईश्वर की प्रार्थना है और दूसरी का ३-दुबलियाँ की याद में-लेखक, श्रीयुत शीर्षक 'सच्चा वीर' है, जिसमें सच्चे वीर के लक्षण विश्वनाथसिंह, एल० बी० पी० हैं। पता - सरस्वती-साहित्य- बताये गये हैं। सदन, भोजूबीर, बनारस कैंट है। पृष्ठ-संख्या ४० और ५–मनप्रबोधमाला--रचयिता श्री सीतारामीर मूल्य ६ आने हैं। श्री मथुरादास जी महाराज, प्रकाशक श्री अवधकिशोर ___ दुबवलियाँ एक उजड़े हुए गाँव का नाम है। यह दास 'श्रीवैष्णव' अयोध्या हैं। मूल्य ।। पृष्ठ-संख्या काव्य-पुस्तक इसी गाँव की स्मृति में लिखी गई है। १६ है। पुस्तक-रचयिता ने लिखा हैअँगरेज़ी के प्रसिद्ध कवि गोल्डस्मिथ की लिखी हुई, डिज़र्टेड "कविता के गुण-दोष कछु, नहिं जानौ मतिमंद, विलेज' नामक कविता प्रसिद्ध है। इसका अनुवाद कविवर उस प्रेरक की प्रेरणा (ते) प्रगट भये ये छन्द ।" श्रीधर पाठक ने 'ऊजड़ ग्राम' के नाम से किया है। 'उस प्रेरक की प्रेरणा' से लिखे गये नीति, वैराग्य, प्रस्तुत पुस्तक के लेखक ने एक मौलिक ऊजड़ ग्राम ईश्वर-भक्ति-सम्बन्धी दोहों का यह एक संग्रह है। साधु. लिखने का प्रयत्न किया है। अपने प्रयत्न में कवि को सन्तों के काम का है। पर्याप्त सफलता मिली है। उजड़ी दुबवलियाँ को देखकर ६- श्रीनैमिषारण्य-रचयिता और प्रकाशक उसकी पुरानी स्मृतियाँ जाग पड़ती हैं । जो कुछ शेप श्री कृष्णदत्त त्रिवेदी, बरम्हौली, सीतापुर हैं । पृष्ठ-संख्या बचा हुआ है, वह कितनी वेदना, कितनी विवशता, कितनी १४ है। मूल्य नहीं दिया है । असमर्थता व्यक्त करता है, देखिए त्रिवेदी जी ने अपने इस 'प्रथम प्रयास' में सीतापुर"बेलपत्र का वृक्ष पुराना, कुछ मिहदी की डार, स्थित नैमिषारण्य तीर्थ का गुण-गान किया है। तीर्थसूखी एक तलैया जिसके उर में अमित दरारें। यात्री पुस्तक से लाभान्वित होंगे। छोटे छोटे उजड़े घर की हैं दो-चार कतारें, ७-पद्य-पुष्प-लेखक, कुमार उदयरत्नसिंह, प्रकाबाकी एक पेड़ पीपल का है उस ताल किनारे ।" शक, बाबू रामानुग्रहनारायणसिंह, मीरगञ्ज, गया हैं। दुबवलियाँ की वर्तमान दशा का वर्णन कर कवि मूल्य - और पृष्ठ-संख्या ३२ है । उसके अतीत का दृश्य दिखाता है और क्षण-मात्र में यह एक कविता-पुस्तक है। आरंभ में श्री माहनलाल ऐसा मालूम होता है कि उजड़ी दुबव लियाँ फिर बम गई। जी महतो वियोगी ने कवि की बाल-सुलभ प्रतिभा, उत्साह प्रातः संध्या के कार्य-क्रम, गाँव के विशेष व्यक्तियों, अलाव, और लगन की ओर संकेत किया है। हमें भी इसमें संदेह अखाड़ा, कोल्हू, बरात इत्यादि का बड़ा सजीव वर्णन है। नहीं। कवि के हृदय में भावना के अंकुर हैं। उन्हें शब्दों - गाँव की एक विधवा की दशा का वर्णन करते हुए में व्यक्त करने के लिए अध्ययन और अभ्यास का प्राव भारत की विधवा-समस्या को उठाना और अंत की प्राध्या- श्यकता है। मित्कता हमें रुचिकर नहीं प्रतीत हुई। कहीं कहीं भाषा- ८-प्रकृति-पूजा (काव्य)-लेखक पंडित बालक सम्बन्धी त्रुटियाँ भी हैं। यदि विश्वनाथसिंह जी प्रयत्न राम शास्त्री 'बालक', प्रकाशक हिन्दी-प्रचारिणी सभा, करेंगे तो आशा है, ग्रामों के सम्बन्ध में आगे वे इससे बलिया हैं । पृष्ठ-संख्या ३६, मूल्य ।) है। अच्छी रचना कर सकेंगे। शास्त्री जी ने इस पुस्तक में पड़ऋतुओं, प्रभात और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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