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________________ संख्या ५] मेरी श्री बदरीनाथ जी की यात्रा चढ़ाई और उतार था और रास्ते में ठहरने का भी कोई बड़े बड़े साँप निकलने लगे तब उसको बन्द कर दिया अच्छा प्रबन्ध न था, इसलिए मैंने सीधा दूर का रास्ता और चारों तरफ़ ज़मीन साफ़ करके उसे घेर दिया। यह लिया। सवारी के लिए डाँडी और असबाब ले जाने को भी अब सुरक्षित यादगार है । बदरीनारायण जी का एक कुली किये । रानीखेत में सरकारी एजंसी है । लाला काशी- मन्दिर यहाँ भी है।। प्रसाद एजेंट है । वे मब प्रबन्ध कर देते हैं - - कोई विशेष बाज़ार तो मामूली और पहाड़ी बाज़ारों की तरह है। कष्ट नहीं होता। कोई सब्ज़ी या फल नहीं मिल सका। लौटते समय मुझे मैं १-६-३५ को चला और द्वाराहाट में पहला पड़ाव द्रोणागिरि पर्वत दिखलाया गया। यह द्वाराहाट से लगा हुआ। यह एक प्राचीन स्थान मालूम होता है। यहाँ हुया है और वहाँ की देवी जी की आरती के घंटे का बहुत-से पुराने मन्दिर हैं, जिनमें कुछ तो टूट फूट गये शब्द मैं डाकबंगले से सुन सकता था। परन्तु वह पर्वत हैं और कुछ अभी अच्छी दशा में हैं। इतना ऊँचा था कि ६ या ७ मील चले बिना वहाँ पहुँ____ कहा जाता है, इस जगह को द्वारका बनाने का चना सम्भव नहीं था। यह वही पर्वत है, जहाँ से हनूविचार किया गया था और रामगंगा, कोसी और गगास- मान जी लक्ष्मण जी के बचाने के लिए अपने उड़नये तीनों नदियाँ यहाँ मिलनेवाली थीं। परन्तु कासी की खटोला पर संजीविनी श्रादि बूटियाँ ले गये थे । यह पर्वत असावधानी के कारण ऐसा न हो सका । तब उन दोनों बहुत सुन्दर और हरा-भरा है। खेद है, मैं इसको देखने नदियों ने शाप दिया कि कोसी का जल नष्ट हो जाय और नहीं जा सका। समुद्र तक न पहुँच सके। इस कारण कोसी रामनगर के द्वाराहाट से चलकर दूसरे दिन मैं गणाई पहुँचा । खेतों में फैल कर वहीं समाप्त हो जाती है। इसको चौखुटिया भी कहते हैं। यह स्थान रामगंगा के ५, बजे शाम को गाँव की सैर करने निकला। किनारे है और रमणीक है। परन्तु यहाँ गरमी बहुत थी बँगले के बाहर ही ईसाइयों के बँगले थे। उनका एक और ३ बजे तो लू चलती थी ! यहीं से कुछ यात्री सीधा अस्पताल और एक अँगरेज़ी मदरसा भी है। यहाँ रामनगर चले जाते हैं और वहाँ से प्रार० के० आर० ईसाई अच्छी तादाद में मिलते हैं। लाइन पर सवार हो जाते हैं और कुछ रानीखेत चले जाते गाँव में घुसते ही एक कतार मन्दिरों की मिली। इन हैं और वहाँ मोटर पर चढ़ काठगोदाम-स्टेशन पर पहुँच मन्दिरों में कोई मूर्ति नहीं है । पर ये मन्दिर सरकार की जाते हैं। रानीखेत जाने में यात्रियों को ३० मील कम तरफ़ से सुरक्षित हैं। उनकी देख-भाल के लिए १०) पैदल चलना पड़ता है, परन्तु गगास नदी से रानीखेत माहवार पर एक आदमी नौकर है। इसके बाद मैं 'धज' तक ५ मील की चढ़ाई थके हुए यात्री को मार डालती देखने गया । 'धज' का अर्थ २ संख रुपया है । यह धज है। गगास में घोड़े और डाँडियाँ मिल सकती हैं। एक टूटा-फूटा मन्दिर है। इस मन्दिर की कारीगरी और तीसरे दिन का पड़ाव लम्बा था। १५ मील चलकर मन्दिरों से कहीं ज्यादा अच्छी है । इसकी कुर्सी बहुत ऊँची लोहबा मिला। द्वाराहाट से गणाई तक रास्ता करीब है और दरवाज़े पर एक बेल बनी है, जिसमें इधर-उधर करीब चौरस था। ऐसा ही रास्ता ६ मील और मिला। दो शंख बने हुए हैं। यह मन्दिर मुझे हिन्दुओं का नहीं उसके बाद चढ़ाई शुरू हुई। सबसे ऊँची जगह पर मालूम हुआ। यदि इसमें एक जगह गणेश जी की मूर्ति पहुँचते ही एक कुली के कंधे से डाँडी का डंडा सरक न होती तो मैं इसका जैन-मन्दिर मानता। कहा जाता गया और डाँडी धम से गिर पड़ी। पर कोई चोट नहीं है कि सरकार को किसी तरह यह खबर लगी कि इस आई। यहाँ से उतार शुरू हुआ और एक मील नीचे मन्दिर में दो संख रुपया गड़ा हुआ है। सरकार ने मेलचौरी मिला। मन्दिर के अन्दर चार-छः हाथ खोदवाया । खोदने पर मेलचौरी ही तक बहुधा हरिद्वार या देवप्रयाग के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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