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संख्या ५]
धन की शोभा
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देवकी ने विस्मित होकर कहा-"क्यों, आपने उन्हें चंपालाल ने शीघ्रता से कहा-"दो हजार ।" कभी परोपकार से पश्चात्पद होते हुए देखा है ?" किशनचंद ने पूछा-"आप कितने समय में ___ चंपालाल ने इतस्ततः करते हुए कहा-“मैं चुका देंगे ?" यह बात नहीं कहता । परमात्मा ने उन्हें हृदय अवश्य चंपालाल ने उत्तर दिया-“दो वर्ष में कुल दिया है, और वह उनके लिए भूपणीय है। पर वे रुपया चुका दूंगा।" धुन के पक्के हैं । जो जी में आया, कर बैठते हैं।" ठेकेदार साहब ने मुस्कराकर कहा-"दूर तक
देवकी ने आश्वस्त स्वर से कहा-"कर बैठते हैं, सोच लीजिए। आगे की बात कौन जानता है ? यदि पर मेरे स्नेह-बन्धन को तो एकदम तोड़ नहीं सकते। समय पर आप रुपयों का प्रबंध न कर सके तो ?" ऐसा दुस्साहस उन्होंने कभी नहीं किया।"
चंपालाल ने दृढ़ता से कहा-"तब दूकान ___ चंपालाल हंसकर बोले-“नब तुम्हीं क्यों न आपकी हो जायगी। मैं आपका मन भरने के लिए इसका बीड़ा उठाओ? तुम्हें किस बात का संकोच है?" पक्की लिखा-पढ़ी कर दूंगा।"
देवकी ने नीचा सिर करके उत्तर दिया- ठेकेदार साहब ने उपदेश के रूप में कहा"संकोच तो नहीं है। पर आप जाते तो और ही "देखिए, फिर भी आपसे कहता हूँ कि इस झगड़े में बात होती। वे अपना मन भी भर लेते। समझे ?" न पड़ें। मेरी तो यही राय है कि आप अपनी वही
चंपालाल ने कुछ सोचकर कहा-"अच्छा, छोटी-सी दूकान चलाये चले। थोड़ी-बहुत सहायता ऐसा ही करूँगा।"
जो मुझसे बन पड़ेगी, समय समय पर करता रहूँगा। देवकी की कल्पना के चित्र-पट पर आशादेवी चंपालाल ने शान्त भाव से कहा-"आप चिन्ता की धुंधली मूर्ति दिख गई।
न करें मैं मब बातें पहले से ही सोचकर यहाँ
आया हूँ।" किशनचंद बैठकखाने में बैठे हुए थे।
किशनचंद ने उच्च स्वर से कहा- "इसके लिए __ चंपालाल ने जाकर अन्य पुरुष के रूप में देवकी मैं आपसे नकाज़ा नहीं करूंगा।" की प्रार्थना उन्हें सुना दी। वे सुनकर चुप हो गये। चंपालाल ने मस्तक हिलाकर कहा-"आपका चंपालाल को कुछ और कहने का साहस न हुआ। कहना ठीक है । मैं समझ गया।" मुनीम-गुमाश्ते भी मौनावलम्बनपूर्वक उनके मुख से किशनचंद बोले-"तब आपकी इच्छा। मुनीम निकलनेवाले चुने हुए शब्दों की प्रतीक्षा करने लगे। जी, इन्हें रुपये देकर लिखा-पढ़ी करा लीजिए।" ।
थोड़ी देर में निस्तब्धता को भंग करते हुए किशनचंद ने कहा-"आप जानते ही हैं कि रुपया- लोग कहते हैं कि लक्ष्मी के पास लक्ष्मी आती पैसा मन में मैल डाल देता है। उससे चिरकाल के है। पर मुझे उनका यह कथन ठीक नहीं जंचता। अर्जित स्नेह और संकोच की मर्यादा क्षण भर में लक्ष्मी उद्योग की दासी है, सम्पत्ति की नहीं। ऐसा टूट जाती है।"
ही होता तो सम्पत्तिमानों को कभी दरिद्रता का सामना चंपालाल ने उत्तर दिया-"भगवान की दया ही न करना पड़ता । सौभाग्य उद्योग का ही प्रतिफल से यह नौबत न आने पायेगी।"
___ है। जन्मान्तरवाद से भी यही बात सिद्ध होती है। किशनचंद अँगड़ाई लेकर गम्भीर स्वर से चंपालाल प्रतिष्ठा और प्रभुत्व के इच्छुक थे । वे बोले-"इसका कोई निश्चय नहीं । अच्छा, आपको चाहते थे कि नौकरों से काम लें और आप तकिया कितना रुपया चाहिए ?"
लगा कर बैठे । सुख किसे बुरा लगता है ! मेहनत
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