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________________ ४१८ सरस्वती [भाग ३६ में अपनी हड्डियों के पहुँच जाने की हर एक बौद्ध के हृदय में बड़ी लालसा होती है, उस समय उनको भी इसी प्रकार का कुछ अनुभव हुआ था। उन्होंने साफ़ तो नहीं कहा, किन्तु एक बार लोटा-पानी का ज़िक्र आने पर जब मैंने कहा कि अब चौका-चूल्हा बहुत ढीला हो गया है तब उन्होंने आश्चर्य और प्रसन्नता प्रकट की [ एक क्रीडा-उपवन ( शोजो शिन्-इन् )] थी। खयाल कीजिए, विहार ने अपने भिक्षुओं की शिक्षा के लिए एक हाई जब भारत से कोई विद्वान् अावे तब तो उसका जापान स्कूल और एक कालेज (या विश्वविद्यालय) स्थापित किया के तोक्यो, क्योतो, कोयासान् तथा दूसरे स्थानों में बौद्धहै। हाई स्कूल के ४०० विद्यार्थियों में ३०० भिक्षु हैं। शिक्षित समुदाय विशेष प्रकार से स्वागत तथा अभ्यर्थना कालेज के २६० लड़कों में ५-७ ही बाहरी हैं, बाकी करें, किन्तु जब कोई बाहर से संभ्रान्त बौद्ध विद्वान् या सभी भिक्षु हैं । हाई स्कूल पास करने में ग्यारह वर्ष लगते नेता भारत जाय तब न गया में, न बनारस में उसका मान हैं, और कालेज पास करने में ५ वर्ष । कालेज को डिग्री या स्वागत हो । क्या इसी पर हिन्दू चाहते हैं, सारे भारत में देने का सरकार से चार्टर प्राप्त है, इसलिए इसे यूनिवर्सिटी धर्मियों का बन्धुत्व और सहानुभूति प्राप्त करना ? तोक्यो, भी कहते हैं। कालेज की पढ़ाई में बौद्ध-धर्म और दर्शन क्योतो आदि की तरह यहाँ के अध्यापकों ने भी अाज के अतिरिक्त संस्कृत भी सम्मिलित है। संस्कृत के प्रधान शाम को 'राहुल सांकृत्यायन' के स्वागतोपलक्ष में चायपार्टी अध्यापक प्रोफ़ेसर फुजिदा जर्मनी के पी० एच-डी हैं। की, और उसकी कृतज्ञता में अपने देशवासियों से यहाँ ये | वे भारत में भी तीर्थाटन कर चुके हैं। हम भारतीयों को दो शब्द कह देना ज़रूरी समझा । गर्व तो होता है कि दूर दूर से लोग हमारी मातृ-भूमि कालेज के पुस्तकालय में सत्तर हज़ार पुस्तकें हैं। की वंदना करने पहुंचते हैं, किन्तु हमारा खयाल इस ओर इमारत तिमहला और चौमहला है। इस पर तीन चार नहीं जाता कि इन प्रतिष्ठित मेहमानों के साथ हमारा बर्ताव लाख से कम खर्च न हश्रा होगा। कैसा होता है। संसार-प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् जब डाक्टर दोपहर के भोजनोपरान्त एक बजे हम फिर दर्शनार्थ तकाकुसू भारत तीर्थाटन करने गये थे, उस समय प्यास निकले। पहले कोङ्-गो-बुजी गये । यह शिङ्गोन्लगने पर उन्हें म्लेच्छ समझकर रास्ते में किसी ने पानी देने संप्रदाय का केन्द्रीय विहार है। सम्प्रदाय के प्रधान या खन्चो से इनकार कर दिया था। एक दूसरे वृद्ध बौद्ध नकाजीमा यहीं रहते हैं । प्रधान देवालय २१० फुट लम्बा और कितने ही वर्षों तक संयम और ब्रह्मचर्य रखकर अपनी पूज्य १८० फुट चौड़ा है। इस सारे विहार को दसवीं शताब्दी माता की अस्थियाँ लेकर बोध-गया गये थे (धर्म-भूमि भारत से लेकर बीसवीं शताब्दी तक के अनेक चोटी के चित्रकारों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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