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________________ पक्षियों का अद्भुत सहज ज्ञान संख्या ५ ] रहते थे। हर बार जब मा बच्चों के लिए कोई कीड़ा लाती थी तब घोंसले से जाते समय वह कुछ न कुछ साथ ले जाती थी । परन्तु वहाँ कोई बीट या में तो गिरा नहीं होता था । इसलिए वह घोंसले एक टहनी ही निकाल कर ले जाती थी। उसका यह काम —- कुछ न कुछ लाना और कुछ न कुछ ले जाना - एक यंत्र की तरह होता था । कुछ ही काल में उसने सारे घोंसले को नष्ट कर दिया ।" अफ्रीका में एक प्रकार का बया होता है । वह अपना घोंसला बनाने के लिए कोमल टहनियों को बड़ी जटिल गाँठे देकर बाँधता है । एक समय ऐसा मान लिया गया था कि यह बया टहनियों को इस प्रकार बुनने की विद्या अपने बड़े बूढ़ों से सीखता है, और इसमें बहुत उच्च कोटि की बुद्धि होती है । तब इसका एक अंडा चिड़िया घर में लाया गया और कृत्रिम रीति से उसे सेकर बच्चा निकाला गया । इस बच्चे ने अपनी जाति का दूसरा पक्षी कभी देखा ही न था । परन्तु उचित आयु को पहुँच कर यह उसी प्रकार टहनियों में जटिल गाँठे लगा कर उनको बाँधने लग गया । इतना ही नहीं कि पक्षियों को प्रकृति देवी ने सहज ज्ञान का दान देते समय बहुत उदारता से काम लिया है, बरन जितना उनकी इन्द्रियाँ तीक्ष्ण होती हैं, उतना दूसरे किसी भी जीव की नहीं होतीं । उनकी श्रवण-शक्ति के सर्वोत्तम होने के उदाहरण तो अनेक हैं । समस्त भूमण्डल की जङ्गली जातियाँ अपनी झोप - ड़ियों की रक्षा के लिए बत्तनें या दूसरे मुर्ग पालती हैं। शत्रु भी बहुत दूर ही होता है कि ये पक्षी सबसे पहले उसके आने की आवाज सुन लेते हैं। बत्तखों के बोलने की आवाज सुनकर कुत्ते भी ऊंघ से जाग कर भोंकने लगते हैं । गत योरपीय महायुद्ध में फ्रांसीसी क़िलों में और ईफ़ल टावर में तोते रक्खे गये थे । वे हवाई जहाज़ों के दिखाई देने के बहुत पहले ही उनके आने की सूचना दे देते थे । यह बात एक ऐतिहासिक सत्य है कि सन् १९१५ में डोगर बैंक फा. २ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ३९३ की समुद्री लड़ाई में तीतरों और दूसरे छोटे पक्षियों ने २१६ मील की दूरी से तोपों के चलने की आवाज़ सुन ली थी। दूसरे पास बैठे हुए लोगों को तो कुछ सुनाई नहीं देता था, परन्तु ये पक्षी भय से चिल्ला रहे थे । सुनने की शक्ति के समान ही पक्षियों में देखने की शक्ति भी असाधारण होती है । उनकी आँखें सिर के दोनों ओर होती हैं और एक केन्द्र पर इकट्ठी नहीं होतीं, इसलिए उनकी दृष्टि के दो क्षेत्र होते हैंजब एक काम करता है तब दूसरा दबा रहता है । परन्तु इससे भी बढ़कर महत्त्व की बात यह है कि इनकी आँखें बदलकर अपने को अवस्था के अनु कूल बना सकती हैं। विलियम बीब नामक विद्वान् का कथन है कि पक्षी की आँख “एक क्षरण में बदल कर अपने को दूरदर्शक से सूक्ष्मदर्शक बना सकती है।" मुर्गी एक तरफ तो आकाश में दूर पर उड़ती हुई चील को देख लेती है और दूसरे ही क्षरण धूल पड़े कीड़ों के महीन अंडों को चुगने लगती है । अबाबील ६० मील प्रतिघण्टा के वेग से उड़ती हुई सुई के नाक के बराबर छोटे कीटों को पकड़ लेती है । में एक देश को छोड़कर दूसरे देश में चले जाना पक्षियों की एक बड़ी ही आश्चर्य जनक बात है । उनके इस कर्म से लोगों में अनन्त कल्पनायें उठती हैं। पर वैज्ञानिकों का मत है कि जब पक्षियों के देशान्तर - गमन की ऋतु आती है तब खुद उनमें कुछ रासायनिक संक्षोभ पैदा हो जाते हैं- पिंजरे में बन्द पक्षी भी उस काल में अशान्त और असन्तुष्ट दीखने लगता है । देशान्तर - गमन के समय पक्षियों के उड़ने के. वेगों की मनोरञ्जक सूचियाँ तैयार की गई हैं। डॉरल नाम की चिड़िया बम्ब के गोले की तरह योरप को पार करती है । वह सवेरे की बियारी उत्तरी अफ्रीका में कर दूसरे दिन कलेवा स्कण्डीनेविया में जाकर करती है । मटियाले गालोंवाली थूश www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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