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________________ ३६२ सरस्वती [भाग ३६ "क्यों आज लिखने में क्या हुआ ?" देखते देखते सभी कमरों और बरामदों में रोशनी हो "अभी तक मेरा हाथ ठीक नहीं हुआ, लिखते समय गई। मैं एक बड़े कमरे में ले जाया गया। मैनेजर और काँपता है। इस समय यदि मैं लिख भी दूं तो लोग इंस्पेक्टर ने मुझसे पूछा- मेरे ऊपर किसी प्रकार का सन्देह कर सकते हैं ।" यह देखो, कह कर मैंने कलम- अत्याचार किया गया है या नहीं। मैं अादि से अन्त तक दावात ले ली और काग़ज़ पर कई पंक्तियाँ लिखीं। सारी कथा कह गया। लिखावट टेढ़ी-मेढ़ी थी। जिसके साथ वनलता के विवाह वंशी हालदार तथा उसके सभी अनुचर गिरफ्तार हो की बात थी, शायद वही उन लोगों में पण्डित था । मेरा गये थे। खानातलाशी लेने पर सारी चीजें मिल गई। लिखना उठाकर उसने देखा और कहने लगा--इससे काम बहुत-से पर, शरीर को कष्ट देने के कई प्रकार के यन्त्र, न चलेगा, बल्कि झंझट हो सकता है। कल रात को चमड़े में छेद करके दवा डालने की पिचकारी आदि सभी ज़रा अधिक दबाव डाला गया था। हाथ की लिखावट चीजें निकल आई। इंस्पेक्टर ने हाथ मलते हुए कहास्वाभाविक होनी चाहिए। हालदार महाशय, इतने दिनों के बाद श्राप मिले हैं। वंशी हालदार ने कहा-कहीं बदमाशी के मारे तो सात वर्ष के लिए तो अब बड़े घर में जा ही रहे हैं, वहाँ 'बिगाड़कर नहीं लिखा है ? से लौटने पर भी अब आप हम लोगों से छुटकारा न पा मैंने कहा-तुम्हारे सामने ही तो लिखा है । मेरा हाथ सकेंगे। एक एक करके आपके सभी विषैले दाँत तोड़ इस समय भी काँपता है। दिये जायँगे। ___"अच्छा, तो अभी रहने दो, कल सवेरे ठीक से लिख मैंने एक और आदमी को दिखलाकर कहा--इनको देना।" पहचानते हैं ? ये ही वनलता के भावी पति हैं। हालआज रात को मेरे कमरे में कोई नहीं रहा। वंशी दार बाबू इस विवाह के अग्रकर्ता होंगे। हालदार को विश्वास हो गया कि यातना न सह सकने के "अच्छा !" कह कर इंस्पेक्टर ने उस युवक को बूट से कारण मैंने उसकी आज्ञा का पालन करना स्वीकार कर ऐसे ज़ोर की एक ठोकर मारी कि वह लटपटा कर गिर पड़ा। लिया है, अब किसी प्रकार की आपत्ति नं करूँगा। उस समय मेरे हाथ में भी खुजलाहट मालूम पड़ने रात को दस बजे आकाश निर्मल हो गया। मेरे लगी। मैंने कहा-ज़रा हालदार बाबू का बन्धन खोल शरीर में उस समय भी क्लान्ति थी। मैं सो गया। दीजिए। मुझे इनसे कुछ हिसाब-किताब समझना है। ____ गम्भीर रात्रि में मेरे कमरे के दरवाज़े में बड़े ज़ोर से एक कान्स्टेबिल ने वंशी हालदार के हाथ का बन्धन धक्का लगा, कब्ज़ा टूट गया, इससे दरवाज़ा खुल गया। खोल दिया। मैंने कहा-मेरे हाथ में न तो पिचकारी है, मैं चौंक पड़ा और उतावली के साथ उठ कर चारपाई पर न दवा है, न पर है और न काई दूसरी ही चीज़ है । मैं बैठ गया। एक टार्च की रोशनी मेरे मुँह पर पड़ी। किसी तुम्हारा रक्तपात न करूंगा, नाक-दाँत भी न तोडूंगा, ने कहा-कहिए गौर बाबू, इन लोगों ने आपको अधिक किन्तु वंशीवदन, गौरमोहन का ज़रा-सा और परिचय क्लेश तो नहीं दिया। देना आवश्यक है। ___ मेरा नाम गौरमोहन दत्त है। मैंने कहा-अभी बतलाता घुसा मारने की कला मैंने सीखी थी। दोनों हाथों हूँ। सब लोग गिरफ़्तार हो गये हैं न ? कौन कौन आये हैं ? की आस्तीने सिकोड़कर मैंने वंशी हालदार के पञ्जर में "सभी गिरफ़्तार हो गये हैं। मैनेजर साहब आये हैं, तान कर एक चूसा मारा। वह काँखकर बैठ गया। पुलिस के इंस्पेक्टर हैं, बीस लठैत हैं और दस कान्स्टेबिल जूते से ठोकर मारकर मैंने उसे उठाया। मुँह छोड़हैं। फाटक पर जो श्रादमी बन्दूक लिये खड़ा रहा करता कर उसके शरीर के स्थान स्थान पर मैंने कई चूंसे मारे। है वह पकड़ लिया गया है। वह पृथिवी पर गिरकर आर्तनाद करने लगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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