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________________ ३५८ सरस्वती - [भाग ३६ मैंने भी अवज्ञा के साथ साथ उत्तर दिया-इतना मैंने संक्षेप में उत्तर दिया-जानता हूँ। तो मैं भी समझ पाता हूँ। परन्तु जानते हो, मैं कौन हूँ? वंशी ने कर्कश स्वर से कहा-बिना जाने-समझे मैं ___ “परिचय मिले बिना कैसे जान पाऊँगा । परन्तु यह तुम्हें यहाँ नहीं पकड़ ले आया हूँ। इस समय सम्पत्ति बात तो तुम्हारे चेहरे से ही मालूम होती है कि तुम काई की अधिकारिणी एक अविवाहित कन्या है। उसका नाम बड़े आदमी हो।" वनलता है। वह सुन्दर है, पन्द्रह-सोलह वर्ष की अवस्था ___मेरी बात का गम्भीर अर्थ समझ कर वह क्रुद्ध हो है, स्कूल में पढ़ती है। तुम उसके संरक्षक हो । उस कन्या उठा। जेब से पिस्तौल निकाल कर उसने मेरी ओर सीधा के लिए मैंने एक वर ठीक किया है। जाति एक है, कर लिया और कहने लगा-यदि चाहूँ तो तुम्हें इसी गोत्र भिन्न है, अवस्था भी थोड़ी है । उसके विरुद्ध कोई समय मार डालूँ या अंग-भंग कर दूं। परन्तु ऐसा ऐसी बात नहीं कही जा सकती। परन्तु वह मेरे दल का करने से मेरा कोई काम नहीं बनेगा। तुम्हें यह स्मरण आदमी है, शायद तुम लोग उसे पसन्द न कर सकोगे । रखना चाहिए कि मैं किससे बातें कर रहा हूँ। मैं हूँ वंशी परन्तु उसके साथ वनलता का विवाह करना होगा। हालदार। उस आदमी की स्पर्धा देखकर मैं दंग रह गया। नाम सुनकर मैं काँप उठा। मन का भाव छिपाने का अपना क्रोध न संवरण कर सकने के कारण मैंने कहाप्रयत्न करने पर भी मेरा चेहरा उतर गया। वंशी हाल- इतने दिनों तक तुम अपने आपको बड़ा बहादुर दार का नाम किसने नहीं सुना। इतना उद्दण्ड, इतना थे, परन्तु इस बार तुम्हारी बहादुरी का अन्त होगा । क्या दुरात्मा, इतना अपराधी देश में और कोई था ही नहीं। तुम्हें इसका भी पता है कि मिस्टर राय के यहाँ कितने उसका नाम सुनकर सभी काँपते थे, लेकिन पुलिस को लठैत हैं ? अपना दल लेकर उनका मुकाबिला कर न लो उसके विरुद्ध अभी तक कोई पक्का प्रमाण नहीं मिल किसी दिन । सका। लोगों की धारणा थी कि देखने पर वह पूरा दैत्य- वंशी हालदार हँस पड़ा। उसकी वह हँसी निष्ठुर थी, सा जान पड़ता है। किन्तु क्या यही नाटा-सा आदमी श्लेषमय थी । हँसते हँसते उसने कहा-यदि यही करना वंशी हालदार है ? यदि उसके हाथ में पिस्तौल न होती होता तो तुम्हारी क्या आवश्यकता थी ? लाठी-डंडे की तो तो मैं उसे गला दाब कर मार डालता। कोई बात है नहीं, यहाँ तो बात है रिश्तेदारी की। तुम ___मैंने कुछ कहा नहीं, चुप रह गया । वंशी हालदार हो उस घर के सर्वेसर्वा । तुम यदि विवाह कर दोगे तो कहने लगा-तुमसे मेरा एक काम निकल सकता है, और बोलनेवाला कौन है ? इसी लिए तुम्हें यहाँ ले आया हूँ। मैं जो कुछ पूछ उसका मैं कुछ क्षण तक उसके मुँह की ओर ताकता रहा। ठीक ठीक उत्तर देते जाओ। इसी में तुम्हारा कल्याण है, उसकी सारी चाल मेरी समझ में आगई। मैंने यह जान नहीं तो अपना कुशल मत समझना । लिया कि मुझे भय दिखा कर या कष्ट देकर यह राय इस बात पर भी मैं कुछ नहीं बोला, चुपचाप सुन बाबू की सारी सम्पत्ति अपने अधिकार में करने का प्रयत्न लिया। करेगा। यह अपने दल के एक आदमी के साथ वनलता "दक्षिणपाड़ा के राय-परिवार को जानते हो ?" का विवाह करेगा। इस साहस का भी कोई ठिकाना है ? दक्षिणपाड़ा के राय-परिवार को कौन नहीं जानता ? वनलता जब तक बालिग़ न हो जायगी तब तक उसका उनकी इतनी बड़ी सम्पत्ति है, उसका सारा भार मेरे हाथ स्वामी उसकी सम्पत्ति में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न कर में है, मैं ही सारा प्रबन्ध करता हूँ । इस बात को सभी सकेगा, यह बात मैंने छिपा ली। लोग जानते हैं। इसके अतिरिक्त छिपाने की कोई मैंने कहा-तो क्या तुम समधी बनोगे या बराती आवश्यकता भी नहीं थी। होकर वहाँ जाओगे ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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