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________________ संख्या ४] भारतीय ज्वायंट स्टाक बैंक हमारे यहाँ थोड़े से अधिक पूँजीवाले बड़े बड़े बैंक स्थापित किये जायँ और देश में बैंकिंग के प्रचार के लिए उनकी ही शाखायें जगह जगह स्थापित की जायँ या हर एक स्थान में छोटे छोटे स्वतन्त्र बैंक खोले जायँ ? दोनों में से कौन-सी प्रणाली बैंकिंग की उन्नति के लिए अधिक लाभदायक होगी, इस विषय में भी अभी मतभेद है । जो लोग पहली विधि के पक्ष में हैं उनका कहना है कि जनता में ाधुनिक बैंकिंग की व्यवस्था के प्रति विश्वास पैदा करने के लिए आवश्यक है कि कुछ बैंक बड़े पैमाने पर खोले जायँ जिससे किसी को उनके असफल होने का संदेह तक न रहे | परन्तु इसके खिलाफ़ लोगों का यह कहना है कि जैसा प्रायः देखने में गाया है, बड़े बड़े बैंक अपनी शाखाओं द्वारा गाँवों में से रुपया एकत्र करके शहरों में मँगा लेते हैं और वहाँ की जनता की माँग को उन रुपयों से पूरी करते हैं। जिनका रुपया है वे लोग किसी प्रकार का लाभ नहीं उठा सकते । छोटे छोटे स्वतंत्र बैंकों के विषय में उनका कहना है कि ये बैंक गाँवों के धनिक महाजन तथा अन्य धन-सम्पन्न लोगों की सहानुभूति पा सकेंगे, क्योंकि इनके कार्य संचालन में उन लोगों को भाग दिया जा सकता है और इस कारण बड़े बैंकों की शाखाओं की तरह जिनमें उनका किसी प्रकार का अधिकार नहीं हो सकता, वे इनका विरोध नहीं करेंगे, बरन अपने अनुभव से उनको हर प्रकार की सहायता देंगे। श्री मनु सूबेदार का कहना है कि संसार के अन्य देशों में भी शुरू शुरू में बैंकिंग का प्रचार छोटे छोटे स्वतन्त्र बैंकों की स्थापना करने से ही हुआ है, जो बाद में प्रतिद्वन्द्विता अधिक बढ़ जाने से आपस में मिलकर बड़े बड़े बैंकों के रूप में स्थापित हो गये । भारतीय बैंकिंग के लिए भी इसी मार्ग का अनुसरण करना उचित होगा । वर्तमान बड़े बड़े बैंकों को इस कार्य में यथेष्ट सहायता देनी चाहिए जो छोटे छोटे बैंकों से सम्बन्ध स्थापित करके अपने कार्यक्षेत्र की भी वृद्धि कर सकते हैं । इस प्रश्न पर भी जाँच करने के वास्ते यदि कुछ विशेषज्ञों की एक कमिटी नियुक्त कर दी जाय तो बहुत अच्छा हो । यह कार्य रिज़र्व बैंक का है। फा. ६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat इई (३) खर्च - हमारे यहाँ के कुछ बैंकों का खर्च विदेशी बैंकों के मुक़ाबिले का है । इम्पीरियल बैंक ने इस दिशा में जो परिमाण स्थापित किया है वह हमारे देश के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता । इस वास्ते ज्वायंट स्टॉक बैंकों को चाहिए कि वे अपना कार्य भविष्य में अधिक कम खर्च में चलावें और एक ऐसे वास्तविक भारतीय परिमाण की स्थापना करें जो हमारी परिस्थिति के सर्वथा अनुकूल हो । (४) नकद रुपये की मात्रा - हमारे ज्वायंट स्टॉक बैंकों को नक़द रक्षित कोष का महत्त्व भले प्रकार समझ लेना चाहिए। पिछले वर्षों में कई बैंकों की सफलता का एक कारण उनके पास काफ़ी मात्रा में नकद रक्षित कोष का प्रभाव ही था । इस विषय में ऐसी कोई सीमा निश्चित नहीं की जा सकती जो हर एक बैंक के लिए हर परिस्थिति में संतोषजनक सिद्ध हो। इसके लिए तो बैंकों को अपने कर्मचारियों की व्यापारिक सूझ पर ही निर्भर रहना होगा । ज्वायंट स्टॉक बैंकिंग और उन्नति के उपाय — ब हमको यह देखना है कि ज्वायंट स्टॉक बैंकिंग की उन्नति के लिए किन किन बातों की आवश्यकता है । (१) ज्वायंट स्टॉक बैंक और सरकार की नीतिआज हमारे देश की बैंकिंग व्यवस्था में जो वातावरण उपस्थित है वह ज्वायंट स्टॉक बैंकिंग की उन्नति के लिए सर्वथा प्रतिकूल है । इस प्रतिकूल वातावरण का पहला कारण जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, हमारी सरकार की सहानुभूति का पूर्ण अभाव है । इस वास्ते बैंकिंग के प्रचार के लिए सबसे आवश्यक बात है सरकार का इस नीति को तिलांजलि देकर ऐसी नीति का अनुसरण करना जिससे बैंकिंग की उन्नति में हर प्रकार से सहायता मिले । हमारे सहकारिता आन्दोलन के प्रति जैसा सरकार का व्यवहार रहा है, ठीक वही व्यवहार ज्वायंट स्टॉक बैंकों के प्रति होना अत्यन्त आवश्यक है। सरकार सहकारिताआन्दोलन को सफल बनाने के वास्ते उसे जिस प्रकार अनेक सुविधायें देना आवश्यक समझती है, ठीक उसी प्रकार बैंकिंग की उन्नति के लिए भी सरकार को उचित है कि www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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