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________________ सरस्वती [ भाग ३६ आदमी भी कुछ ही घंटों में उन सब बातों को समझ एकत्र किये गये हैं जो देखने से जान पड़ते हैं कि सकता है जिन्हें विद्वानों ने कई पीढ़ियों के अनुभव अभी अभी जीवित मनुष्यों के शरीर से अलग किये और प्रयोग से जाना है। सर्वसाधारण के लिए ज्ञान गये हैं। उनमें गति और जीवन का वैसा ही परिका मार्ग इतना सुलभ हो गया है कि वहाँ अब शिक्षित चय मिलता है जैसा कि जीवित मनुष्य के शरीर में और मूर्ख का भेद ही नहीं रहा । सभी मनुष्यों को प्रत्येक मिल सकता है। कोई अजनबी इस विशाल भवन विषय का कुछ न कुछ ज्ञान रहता ही है। और में पहुँचे और नर-कंकालों के भिन्न भिन्न अवयवों विद्यार्थी तथा विशेषज्ञ तो अपने जीवन का यह उद्देश को हिलते-डुलते और उन्हें अपना कार्य करते ही समझते हैं कि जो कुछ नवीन ज्ञान वे प्राप्त करें देखे तो उसे वह भूतों का डेरा ही समझेगा उसे जनसाधारण में वितरित कर दें। और आश्चर्य करेगा। पर अमरीका में यह . यहाँ हम संक्षेप में अमरीका के एक ऐसे ही आश्चर्य नहीं, एक दैनिक घटना है और सार्वप्रयत्न का वर्णन करेंगे। मनुष्य के लिए सबसे प्रिय जनिक शिक्षा के एक आवश्यक अङ्ग के रूप में उस वस्तु उसका शरीर है। शरीर की शक्ति और संस्था का स्वागत हो रहा है। प्रतिदिन सैकड़ों स्त्रीस्वास्थ्य पर ही उसके सारे कार्य और आनन्द पुरुष उसे देखने जाते हैं और वर्षों की पढ़ाई घंटों में अवलम्बित हैं। इसलिए पाश्चात्य देशों में उस ज्ञान समाप्त करके नवीन ज्ञान से ओतप्रोत होकर बाहर की प्राप्ति के लिए विशेष प्रयत्न और अन्वेषण हुआ निकलते हैं। है जिस पर शरीर का स्वास्थ्य और दीर्घ-जीवन यह संस्था अमरीका के बझालो म्यूजियम अवलम्बित है। आफ़ साइन्स, न्यूयार्क, के अन्तर्गत है और अपने स्वास्थ्य-विज्ञान-विशारदों का कहना है कि ढङ्ग की संसार में पहली है। यहाँ जाने पर प्रकाश किसी मनुष्य या मनुष्यों के किसी समूह की स्वास्थ्य- और बिजली की सहायता से आप उस यंत्र को देख रक्षा के लिए यही काफी नहीं है कि उनके पहुँच में और समझ सकेंगे जो इस संसार में मनुष्य के नाम कोई न कोई डाक्टर अवश्य हो जो उन्हें हर वक्त से विख्यात है। दवा पिलाता रहे । किसी राष्ट्र के स्वास्थ्य की वास्तव अच्छा थोड़ी देर के लिए अपनी कल्पना के में तभी रक्षा हो सकती है जब उसका प्रत्येक व्यक्ति सहारे इस म्यूजियम के अन्दर आइए, एक बटन स्वास्थ्य-रक्षा के नियमों से परिचित हो और उनका दाबिए ! यह लीजिए बटन दाबते ही एक इंजन जीवन में उपयोग भी करता हो। पाश्चात्य देशों के धकधकाने लगा। यह क्या ? एक खोपड़ी हिलने स्कूलों में इस विषय की शिक्षा अनिवार्य कर दी लगी, कलाई की हड्डी अपने जोड़ पर घूम गई । गई है। एक उँगली जिसमें हड्डी ही शेष है, मुड़ती है और अभी तक विद्यार्थियों को चित्रों और मूर्तियों के कुछ इशारा करती है। एक नर-कङ्काल आपको द्वारा शरीर-रचना और उसकी कार्य-प्रणाली सम- अपने पास बुला रहा है और कह रहा है-आइए ! झाई जाती थी। इस सम्बन्ध में अमरीका ने अब मेरी परीक्षा कीजिए। एक कदम और आगे बढ़ाया है। बझालो (न्यूयार्क) एक दूसरा बटन दाबिए। दूसरी ओर खड़े में हाल में ही 'हाल आफ मैन' नाम का एक संग्रहालय एक दूसरे मानव-शरीर में एक छोटी-सी दीप-शिखा स्थापित हुआ है । 'हाल आफ मैन' नाम कदाचित जल उठी। यह दीपक बाई ओर उस यंत्र में जल इसलिए रक्खा गया है कि एक विशाल भवन में उठा है जिसे हृदय कहते हैं । अरे ! वह दीप-शिखा मनुष्य के शरीर के सब अवयव अलग अलग चलने लगी। हृदय के बाई ओर से चल कर तमाम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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