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________________ संख्या ३] जिस मेज़ पर उक्त आदर्श वाक्य लगा रहता था उसी के सामने बैठ कर उनकी पत्नी बड़े चाव से लोगों को चिट्ठियों का उत्तर दिया करती थी और अपने पति के हस्तलिखित ग्रन्थों को टाइप करने के बाद छपने के लिए प्रेस को भेजा करती थी । स्वयं गाल्ज़वर्दी को इन कष्टों का कभी सामना नहीं करना पड़ा । वे उन विरल लेखकों में से थे जिनको ऐसी स्त्री मिली थी, जो अपने पति के सुख-दुःख की साथिन थी । अपनी पत्नी के कारण भी उनकी साहित्य की ओर रुचि बढ़ी थी । यदि वह उनको प्रोत्साहन न देती और उनके काम में उनकी सहायता न करती तो संभव है कि वे एक साहित्यकार न होकर कोई बड़े वकील होते और शायद पार्लियामेंट के मन्त्रि मण्डल के सभासद् के पद तक पहुँच जाते । गाजवर्दी और सामाजिक क्रांति काम करने का ढंग उनका काम करने का ढंग बड़ा निराला था । जब कभी विशेष घटना को देखते या ऐसे व्यक्ति से मिलते जो व्यंग्य से भरपूर होता तब उसको कहानी के रूप में वे तुरन्त लिख डालते । छोटी छोटी बातों को वे इस तरह ग्रहण करते कि वे उनके दिल में धँस जातीं और वहाँ से नया रूप लेकर निकलतीं । उनकी कल्पना एक पुरुष या एक घटना तक ही परिमित नहीं रहती थी, किन्तु वह बड़ा विस्तृत रूप धारण करती थी। वे अपनी कहानियों, नाटकों या उपन्यासों का ढाँचा पहले से नहीं तैयार करते थे । जब भावों का समुद्र उमड़ आता, उमंगें भरने लगतीं, तब वे लिखना आरम्भ कर देते । और तब उनकी कलम नहीं रुकती थी। रात को जाग कर, सैर करते समय, यहाँ तक कि बाल बनवाते समय भी अपनी विचारधारा में वे डूबते रहते। एक और बात बड़ी विचित्र है कि वे लिखने का काम प्रायः सुबह के समय ही करते थे । उनका यह विचार था कि कल्पना-शक्ति उस सुहावने समय में बड़ी गरम हो उठती है । चाय पीने के बाद वे अपना लिखा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat २३१ दुहराया करते थे । भोजन के बाद उन्होंने कभी काम नहीं किया । गाजवर्दी ने लंदन में एक वकील के यहाँ १८६७ में जन्म लिया था । उस समय उनका देश साँप की तरह पुरानी केंचुल उतारकर नया रूप धारण कर रहा था । विज्ञान की उन्नति ने धर्म के सिद्धान्तों पर पानी फेरना आरम्भ कर दिया था । समाज में नये भावों की नींव पड़ने लगी थी । उस भावुक क्रांति के युग में शा और गाल्जवर्दी ने साहित्य के क्षेत्र में आकर एक नये संसार का निर्माण किया । अपने पिता की तरह वकालत की डिगरी उन्होंने हासिल तो की, पर उस काम को रूक्षता के कारण छोड़ दिया । उनमें साहित्य के लिए एक अपूर्व तड़फ पैदा हुई । वे कहानियाँ लिखने लगे, यहाँ तक कि उनका ताँता बाँध दिया । उनकी इन प्रारम्भिक रचनाओं में सौन्दर्य और कला का निदर्शन तो हुआ ही है, साथ ही समाज की खोखली संस्थाओं का भी खासा भंडाफोड़ हुआ है। सागा कुछ कहानियाँ लिख चुकने के बाद उनको लिखने का काफी अभ्यास हो गया । और उन्होंने एक उपन्यास लिखना आरम्भ किया। कौन जानता था कि यही रचना विस्तृत होकर 'सागा' का रूप धारण कर लेगी और उनको नोबेल पुरस्कार का अधिकारी बना देगी। स्वयं उनको भी इसका ज्ञान नहीं था कि उनके उपन्यास का नायक 'सोम' हैमलेट की तरह संसार में एक अमर चरित्र बन जायगा । नाटककार कई समालोचकों का विचार है कि गाल्जवर्दी के उपन्यासों और नाटकों में बड़ा मेल है। उन्होंने कहानियों से अपने साहित्य-जीवन को आरम्भ किया, बीच में नाटक लिखे और अन्त में नावेलों को अपनाया । इसमें कोई संदेह नहीं कि उनके नावेलों में अनेक नाटकीय घटनायें हैं । उनकी www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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