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________________ संख्या ३] की जाँच करना, मृदुता से शरीर को काट कर रक्त चूसना आदि बातों पर विचार करने से कहना पड़ता है कि प्राणि- संसार में वह अद्वितीय है और प्रकृति ने इस मायावी निशाचर को गढ़ने में कमाल किया है। निशा - प्रेमी जीव-जन्तु 1 साही सूर्यास्त होने पर अपने धंधे में लगती है । उसी समय खरगोश और गिलहरी जंगली मार्गों में पूरी चंचलता से कूदते - फाँदते दृष्टिगोचर होते हैं । उनके जागने के बाद लोमड़ी, विज्जू और ऊदबिलाव अँगड़ाई लेते हुए अपनी अपनी माँद से बाहर निक ते हैं और दिन भर के व्रत का पारण करते हैं मेंढक तो दिन के प्रकाश में दलदल में उछलते-कूदते नज़र आते हैं, पर उनके बड़े भाई भेक या दादुर को रात से अनुराग है । नाना रंग, वर्ण और आकार - प्रकार के पतिंगे भी हजारों की संख्या में रात्रि के समय ही रजनी के पुष्पों के सौरभपूर्ण रसधार का पान करने के हेतु अपने गुप्त स्थानों से जो प्राणिशास्त्रियों को भी अज्ञात हैं, निकलते हैं। घोंघे भी रात्रि के समय अपने विशाल भवन को गतिमान करते हैं। इसी समय कोटि कोटि छोटे-बड़े कीड़े भी पौधों के पुष्प-पत्र पर अधिकार जमाते हैं सूर्योदय होते तक उनका रंग-रूप विकृत करके अन्तर्धान हो जाते हैं । सूर्यास्त के बाद ही जुगुनू गाने दे, स्मृति को गाने दे । विगत निशा के सुख- स्वप्नों को फिर से जग जाने दे । गाने दे, स्मृति को गाने दे ॥ यदि तम का आमन्त्रण पाकर, पुलकित हो सखि, सौख्य-सुधाकर - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat अपना जलता हुआ लम्प लेकर अपने प्रियतम की ढूँढ़ने तथा उदर भरण करने के लिए घर छोड़ बाहर निकलती है। सच तो यह है कि कीट - संसार का आधे से अधिक कार्य रात्रि में ही सम्पादित हो जाता है । T गीत लेखक, श्रीयुत बालकृष्ण राव सर रोनाल्ड रास ने मलेरिया ज्वर का कारण जानने के लिए कई जाति के मच्छड़ों की परीक्षा की, परन्तु दिन के समय दिखनेवाले मच्छड़ों में उस रोग के सम्बन्ध का कोई लक्षण लक्षित नहीं हुआ । अन्त में उन्हें मच्छड़ की एक जाति जिसका पहले उन्हें पता नहीं था, रात्रि के समय दिखाई दी । जब उन्होंने उसकी परीक्षा की तब ज्ञात हुआ कि उसके कारण ही मनुष्य मलेरिया वर से पीड़ित होता है । एक शताब्दी में जितने मनुष्य युद्ध में समाप्त होते हैं, लगभग उतने ही मलेरिया के कारण एक वर्ष में मरते हैं । अतः यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि मनुष्यों में मलेरिया का बीज बोने वाला मच्छड़ जो संक्रामक रोग फैलानेवाली निशाचरी सेना का एक दल है, युद्ध से भी भयंकर होता है । २२९ निस्सन्देह रजनीचरों का समाज अनन्त है और उसको पूर्णतः जान सकना मनुष्य की शक्ति के बाहर की बात है । off मिलने जाता है, जाने दे । गाने दे, स्मृति को गाने दे || कविको कविता के कानन में, छवि को अपने मृदु श्रानन में, सजनि, शान्ति पाने दे । गाने दे, स्मृति को गाने दे || www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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