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विजय के
पथ पर
लेखक, श्रीयुत ऋद्धिकरण लखोटिया
अब भारतीय खिलाड़ी भी संसार के विभिन्न भागों में विविध खेलों में विजय प्राप्त करके भारत का मस्तक ऊँचा कर रहे हैं। भारत की हाकी टीम दो बार विश्वविजयी हो चुकी है। क्रिकेट, फुटबाल, टेनिस, पोलो आदि खेलों में भी भारत आश्चर्य-जनक उन्नति कर रहा है। लेखक महोदय ने इस लेख में भारतीय युवकों की इस प्रवृत्ति का बड़े सुन्दर ढङ्ग से परिचय दिया है।
नारी भारतीय टीम की शानदार अोलिम्पिक गेम्स में सम्मिलित होनेवाले पाश्चात्य राष्ट्रों
विजय की खबरों से बहुत को यह पता न था कि सभ्यता की दौड़ में पिछड़ा हुत्रा दिलचस्पी रही है। वास्तव में भारत अपने प्रथम प्रयास में ही ऐसा अद्भुत कौशल यह विलक्षण सफलता है कि दिखाने की क्षमता रखता होगा। प्रोलिम्पिक गेम्स का पाँच महीने के- प्रवास में इतिहास बहुत प्राचीन है। ढाई हज़ार वर्ष पूर्व ग्रीक लोगों भारतीय टीम ने संसार की सर्वो- ने अपने देश के शक्तिशाली युवकों की शक्ति-परीक्षा के
त्तम टीमों का मुक़ाबिला किया निमित्त इनका प्रारम्भ किया था। ईसा के ७६६ वर्ष पहले और एक बार भी पराजित नहीं हुई।
प्रथम बार श्रोलिम्पिक गेम्स शुरू हुए थे और तब से हर एक __-बम्बई के गवर्नर चौथे वर्ष ये गेम्स वहाँ होते रहे हैं। विश्वविजयी भारतीय हाकी-टीम लास एंजिल्स के इस भारतीय टीम ने लास एंजिल्स के उक्त खेलों में अोलिम्पिक गेम्स में दूसरी बार संसार-विजयी होने की पदवी जापान को ११ गोल से हरा कर फ़ाइनल में अमेरिका को प्राप्त कर बंबई आ रही है । बंबई इन विजयी वीरों के स्वागत २४ गोल से हराया। इसके बाद भारतीय टीम ने योरप में मस्त है। १६२८ में जब भारत की हाकी-टीम ने सुदूर के प्रसिद्ध प्रसिद्ध स्थानों का भ्रमण किया और वहाँ कितने अम्सटर्डम में हालेंड को फाइनल में ३ गोल से हरा कर ही मैच खेले । प्रथम श्रेणी की ३६ टीमों से उसके मैच संसार-विजयी का पद प्राप्त किया था उस समय तक हुए और इनमें भारतीय टीम ने कुल ३३४ गोल किये
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