SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादक यनाट भारत की राजनीति अपने अपने दल का संगठन कर रहे हैं। ऐसी दशा में ये शासन-विधान के कानन को यह प्रश्न उठना स्वभाविक ही है कि आखिर राष्ट्रीय महा I पार्लियामेंट की दोनों सभात्रों सभा का आगे क्या प्रोग्राम होगा। al ने पास कर दिया है। अब यह तो प्रत्यक्ष ही है कि राष्ट्रीय महासभा नये शासन. उस पर सम्राट के हस्ताक्षर विधान के अगले चुनाव में अपनी पूरी शक्ति के साथ होना भर बाकी है। कहने लड़ेगी और यह भी जानी हुई बात है कि उसकी कदाचित का मतलब यह है कि अगले एक-दो प्रान्तों को छोड़ कर सभी जगह जीत भी होगी। वर्ष से भारत का शासन- परन्तु इस जीत से यदि देश का लाभ न हुअा, अर्थात् अपनी प्रबन्ध नये शासन-विधान के अनुसार होने लगेगा। ऐसी अडंगे की नीति के कारण राष्ट्रीय महासभावालों ने सरदशा में राष्ट्रीय महासभा का क्या कर्तव्य होगा, इस पर कारी पदों का नहीं ग्रहण किया तो अवस्था विषम हो देश के सजग नेता अभी से विचार करने लगे हैं । राष्ट्रीय जायगी । इसी से कुछ लोग कह रहे हैं कि राष्ट्रीय महासभा महासभा की कार्य-समिति की जो बैठक वर्धा में होने जा अन्य प्रगतिशील दलों को भी अपने साथ लेकर चुनाव रही है उसमें इस विषय पर भी विचार होगा। में लड़े और तब देखे कि वह अपने बहुमत से देश के इतना तो स्पष्ट ही है कि नये शासन-विधान में शासन प्रबन्ध में कोई महत्त्व का परिवर्तन करा सकती है पहले की अपेक्षा कहीं अधिक लोगों को वोट देने का या नहीं । केवल अपने बल के भरोसे दूसरे राष्ट्रीय विचारअधिकार होगा। इसके सिवा प्रान्तीय शासन पूर्ण रूप वाले दलों की उपेक्षा करने की उसकी नीति कारगर नहीं से भारतीय मंत्रियों के हाथ में श्रा जायगा । इस प्रकार साबित हुई है । अतएव यह आवश्यक हो गया है कि शासन-प्रणाली में महत्त्व का परिवर्तन होगा, जिसका वह अन्य प्रगतिशील दलों का सहयोग प्राप्त करने का उपयोग यदि पिछली बार की भाँति राष्ट्रीय महासभा के अवश्य प्रयत्न करे। ऐसा करके वह अपने बल की ही नेता इस बार भी नहीं करेंगे तो इस बार भी देश का वृद्धि करेगी। अाखिर नया शासन विधान देश में जारी ही शासन-प्रबन्ध उन्हीं के जैसे लोगों के हाथ में चला होगा और मुसलमान एवं रईस तथा महाजन उससे सहजायगा जिनकी नीति का कटु अनुभव उन्हें पिछले योग करेंगे ही, और राष्ट्रीय महासभावाले भी चुनाव लड़ेंगे आन्दोलन में भले प्रकार हो चुका है। ही । तब यदि वह यह कार्य अन्य राजनैतिक दलों से सह. राष्ट्रीय विचार के लोगों की अनुपस्थिति में सन् योग करके करें तो इससे उनकी प्रतिपत्ति और अधिक बढ़ १६१८ के शासन-सुधारों से जिन व्यक्तियों ने जायगी और तब सम्प्रदायवादी एवं सत्ताधारी लोग भी सहयोग किया था उनमें से कई-एक व्यक्तियों ने अपनी अल्प संख्या के कारण राष्ट्र का किसी तरह का काफ़ी प्रतिपत्ति अपने अपने क्षेत्रों में कायम कर ली अहित न कर सकेंगे । परन्तु यह सब तभी सम्भव हो है और वे अगला चुनाव लड़ने के लिए अभी से सकेगा जब राष्ट्रीय महासभा के कार्यकर्ता अधिक विस्तृत तैयार होने लगे हैं । इस सिलसिले में मुसलमान सरकार दृष्टिकोण से इस विकट प्रश्न पर धीरता के साथ विचार की दी हुई सुविधाओं से पूर्ण लाभ उठाने की तैयारी कर करेंगे, साथ ही भले प्रकार निश्चय कर चुनाव में भी पूर्ण रहे हैं। उनके सिवा बड़े बड़े रईस तथा महाजन भी सहयोग के साथ भाग लेंगे। १८९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy