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________________ संख्या २] सामयिक साहित्य १८३ गया और मूसलाधार वर्षा होने लगी। इसके कारणं जो अँगरेज़ सिविलियन विलायत से इस मुकदमे में गवाही लोग मेरे शरीर के साथ थे, उन्होंने भागकर एक छायादार देने आये थे । स्थान में शरण ली । उस समय श्मशान के निकट अदालत को जिन विषयों पर अपना निर्णय देना है उदासी साधुत्रों का एक दल ठहरा हुआ था। साधुओं ने उनमें से कुछ नीचे दिये जाते हैं'हरिबोल' की आवाज़ केवल एक ही बार सुनी। इस (१) संन्यासी का कहना है कि उसका शरीर रात को कारण उन्हें सन्देह हुआ और वे उस स्थान पर गये, जहाँ श्मशानघाट ले जाया गया और तूफ़ान आ जाने के पर मेरा शरीर एक स्खटिया में बँधा हुया लाश की भाँति कारण जलाया नहीं जा सका। रानी विभावती की ओर । रक्खा हुआ था। वर्षा का पानी शरीर पर लगातार पड़ने से कहा गया है कि मेरे पति की लाश सवेरे श्मशान ले के कारण मेरे अन्दर चेतना का संचार हो रहा था । साधुनों जाई गई थी और वहाँ जला डाली गई थी। को खटिया के ऊपर हल चल नज़र आई। उन्होंने रस्सियों (२) वादी की ओर से यह सिद्ध किया जा रहा है कि को खोलकर मुझे बाहर निकाला । इसके बाद उन्होंने भोवाल के द्वितीय राजकुमार को संखिया का विष दिया मेरी चिकित्सा की । मैं साधुओं के इस दल के साथ १६ गया था। प्रतिवादी का कहना है कि कुमार संखिया से वर्ष तक बङ्गाल से काश्मीर तक घूमता रहा । संखिया के नहीं, बल्कि हैज़े से मरे थे। विष के कारण मेरा मस्तिष्क खराब हो गया था और मुझे (३) प्रतिवादियों (रानी विभावती और कोर्ट श्राफ़ अपने पूर्व इतिहास और घर-द्वार का स्मरण न था। सन् वाड्स का कहना है कि वादी (संन्यासी) की आँखें भूरी १९२३ में साधुनों की चिकित्सा के फलस्वरूप मेरी मानसिक और छोटी, चेहरा गोल, शरीर का रंग गेहुँा तथा नाक अवस्था ठीक हो गई और मैं याद करके अपने घर भोवाल चपटी और छोटी है, जब कि द्वितीय कुमार की आँखें पहुँचा । पहुँचते ही मुझे मेरी वृद्धा दादी रानी सत्यभामा नीली, चेहरा लम्बा, अँगरेज़ों का-सा रंग तथा नाक देवी, बहनों और भानजों ने पहचान लिया। भोवाल- लम्बी और पतली थी। संन्यासी अँगरेज़ी नहीं जानता, रियासत के ६६ प्रतिशत निवासियों ने भी मुझे पहचान जब कि द्वितीय कुमार अँगरेज़ी-भाषा में पटु थे। जिस, लिया है। रानी विभावती यह स्वीकार नहीं करती कि मैं ही समय संन्यासी ने आकर अपने आपको द्वितीय कुमार उसका पति और भोवाल का द्वितीय कुमार हैं, क्योंकि घोषित किया था, उस समय वह बँगला में नहीं, बल्कि वह व्यभिचारिणी है और उसी ने मेरी हत्या के लिए हिन्दी में बातें करता था। संन्यासी ने कुमार के पूर्व-इतिषडयन्त्र किया था । कोर्ट अाफ़ वार्डस के प्रबन्धक भी यह हास के बारे में यह बतलाया है कि वे भारतीय वेष-भूषा नहीं चाहते कि भोवाल ऐसी बड़ी रियासत उनके कब्जे में रहते थे और भारतीय ढङ्ग से भोजन करते थे, जब से निकल जाय। इसलिए वे भी मेरा विरोध कर रहे हैं कि द्वितीय कुमार ज़्यादातर अँगरेज़ी पोशाक पहना करते . और कह रहे हैं कि मैं भोवाल का द्वितीय कुमार नहीं, थे और अँगरेज़ी खाना भी खाते थे। बल्कि एक जाली व्यक्ति हूँ। अब अदालत मुझे भोवाल रानी विभावती ने अपने बयान में कहा है कि वादी का द्वितीय कुमार घोषित कर दे और मुझे मेरी रियासत (संन्यासी) हर्गिज़ मेरा पति नहीं है । यह कोई जाली दिलवाई जाय । व्यक्ति है। मेरे पति की मृत्यु १६०७ में ही दार्जिलिंग में ___ इस सनसनीखेज़ मुकद्दमे में विभिन्न प्रकार और श्रेणी हो चुकी है। मेरी सास तथा ननदों ने दुश्मनी के कारण के सैकड़ों व्यक्तियों की गवाहियाँ हुई हैं । हस्ताक्षर, फोटो, किसी जाली व्यक्ति को मेरे खिलाफ़ खड़ा कर दिया है। चिकित्सा, शरीर-विज्ञान आदि विषयों के बड़े बड़े विशे- उपर्युक्त मुकद्दमे में उदासी साधु की भी गवाही हुई षज्ञों ने इंग्लैंड से ढाका अाकर अपने बयान संन्यासी के है, जिसने कहा है कि उदासियों के जिस दल ने १९०७ पक्ष अथवा विपक्ष में दिये हैं। अनेक पेन्शनयाफ्ता में श्मशान घाट में ढाका के द्वितीय कुमार का उद्धार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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