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________________ संख्या २] जात महिलायें दूसरा उपदेश । “ अपने पति की खुशामद करो । आदमी खुशामद को बहुत पसन्द करते हैं ।" परन्तु यहाँ यह समझना भूल है कि खुशामद को आदमी ही पसन्द करता है - स्त्रियाँ नहीं । यह मनुष्य मात्र की स्वाभाविक दुर्बलता है। घुड़की की अपेक्षा खुशामद अधिक लाभदायक होती है। अधिकांश पत्नियाँ इस प्रारम्भिक तत्त्व को भूल जाती हैं। उन्हें जहाँ हँसना चाहिए, वहाँ वे चिढ़ जाती हैं । जहाँ उन्हें मृदु स्वर में बोलना चाहिए, वहाँ वे कर्कश बन बैठती हैं। स्त्रियाँ भी चाटुकार बन सकती हैं, पर वे समझे बैठी हैं कि चाटुकारिता पुरुषों का ही काम है । वे समझती हैं कि हम प्रशंसा कराने के लिए ही पैदा हुई हैं- प्रशंसा करने के लिए नहीं । यदि तुमको पति से कोई काम कराना है तो पहले उसका ढंग देखो । यदि वह अनुकूल है तो उसे इधर-उधर की बातों में लगाकर लुभाओ, इस तरह जब वह पूर्णरूप से तुम्हारी ओर आकर्षित हो जाय तो धीमे स्वर में अपनी बात कहो। तुम्हें ९८ सैकड़ा सफलता होगी। इसके विपरीत यदि उतावलेपन में या ताना मार कर कोई काम कराना चाहो तो वह काम तो कभी पूरा होगा नहीं, हाँ, उसकी जगह कलह और क्लेश बिना मांगे अवश्य मिल जायेंगे । तीसरा उपदेश " पाक-कला की प्रवीणता और पति को प्रेमपूर्वक खिलाना पति को अपना बना लेता है । यह उसे आकर्षित करने का सर्वोत्तम उपाय है ।" कुशल पत्नियाँ भोजन तैयार करने में बहुत दिलचस्पी लेती हैं । सब कुछ नौकर पर छोड़ देना भूल है । मैंने देखा है कि धनी हिन्दू घरानों की स्त्रियों रसोई के काम को बहुत चाव से करती हैं। वे कम-से-कम एक चीज़ अपने हाथ से अवश्य बनाती हैं और परिणाम यह होता है कि उनका अपने पति पर काफी अधिकार होता है । जब घरवालियाँ भोजन बनाना अपमान समझने लगती हैं और रसोई का सारा काम का नौकर की इच्छा पर छोड़ देती हैं तब भोजन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १६७ स्वादिष्ट नहीं बनता । आदमी का मन उकता जाता है। धीरे धीरे उसे बाहर खाने की आदत पड़ जाती है । और इस तरह गार्हस्थ्य सुख के नाश का श्री गणेश हो जाता है । भोजन परोसते समय पत्नी का समीप होना परमावश्यक है । चौथा उपदेश “प्रधान बनने की चिन्ता छोड़ दो, क्योंकि वह दर्जा पति का है । वह स्वभाव से ही अपने को घर का प्रधान व्यक्ति समझता है ।" इसलिए स्त्रियों को यह बात कभी न भूलनी चाहिए कि पति गृहस्वामी है । घर का धुआं उसी के कारण निकलता है । स्त्रियों को पति को अपनी उँगली पर नचाने की चेष्टा करना भारी भूल है और यह भूल कलह का मूल है। माना कि ऐसे दव्यू भी आदमी होते हैं जो चूंचरा किये बिना पत्नी के आदेश का नम्रतापूर्वक पालन करते हैं । वे पत्नी की हाँ में हाँ मिलाना और न में न मिलाना ही अपने लिए श्रेयस्कर और सुखकर समझते हैं। पर यह आदर्श नहीं है । सभी पति आत्मसम्मान के कारण ऐसा नहीं कर सकते । माना कि पति कहीं जान-बूझ कर व जाय, पर यह आशा मत करो कि वह हर जगह और हर बार ऐसा ही करेगा । पाँचवाँ उपदेश "अपना रहन-सहन वैसा ही सरल और सादा रक्खो जैसा कि विवाह से पहले था ।" यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात है, और प्रायः बहुत ही कम स्त्रियाँ इस सारे उपदेश का पूर्णरूप से त्रानुसरण करती हैं । पर यह भी याद रखना चाहिए कि आदमी को आकर्षित करने का पहला कारगर साधन शृंगार ही है । जहाँ सुन्दरता कम हुई नहीं कि आदमी का मन उचाट हुआ। वह तब सुन्दरता की खोज में इधर-उधर भटकने लगता है। यदि स्वास्थ्य का उचित ध्यान रक्खा जाय तो इस चिन्ता का कोई कारण नहीं रहता । इसका यह अर्थ नहीं कि स्त्रियों को अपनी सुन्दरता बढ़ाने के लिए पाउडर आदि चीजों का खूब प्रयोग करना चाहिए और न मैं यह कहती हूँ कि उन्हें www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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