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________________ १६२ सरस्वती [भाग ३६ जाय । वास्तव में इसकी रचना 'विश्वकोष' के ढंग पर ४-चारुचरितावली-संपादक पण्डित वेंकटेश की गई है और इसमें सन्देह नहीं कि इस उपयोगी ग्रन्थ नारायण तिवारी, प्रकाशक, लीडर प्रेस, प्रयाग हैं । पृष्ठके बनाने में इसके विद्वान् लेखकों ने बड़ा परिश्रम किया संख्या १६२, मूल्य १) है। है । इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ का यह पहला खण्ड है और प्रस्तुत पुस्तक में चुने हुए १६ चरित्र-चित्रणों का इसमें केवल अकारादि शब्दों का ही संकलन हो पाया है। उत्कृष्ट संग्रह है। महात्मा गांधी, महामना मालवीय जी, इस खण्ड में १०,२५० शब्दों का संकलन किया गया है। श्रीमान नेहरूद्वय, कर्मठ पटेल बन्धु श्रादि १७ उच्चतम इससे जान पड़ता है कि यह ग्रन्थ कई खण्डों में भारतीय विभूतियों के तथा दो विदेशीय किन्तु भारत-हितप्रकाशित होगा। इस सम्बन्ध में खेद की बात इतनी ही साधक महान् अात्माओं के चरित्र-चित्रणों का इस पुस्तक है कि यह महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ उतने सुन्दर रूप में नहीं में समावेश किया गया है । ये सब चित्रण समय समय पर प्रकाशित हो रहा है जैसा कि यह है । छपाई और काग़ज़ 'भारत' में निकल चुके हैं। और तभी लोगों को खूब की बात अलग रही, यह अशुद्ध भी छपा है, जिसके लिए पसन्द आये थे। इनको इस चरितावली' के रूप में पुस्तकान्त में ११ पृष्ठ का शुद्धि-पत्र छापना पड़ा है। निकाल कर तिवारी जी ने एक उपयोगी कार्य किया है। तो भी इसके प्रकाशक बरालोकपुर, इटावा, के वैद्यराज इसकी भूमिका में उन्होंने लिखा है कि देश के कल्याण पण्डित विश्वेश्वरदयालु जी प्रशंसा के ही पात्र हैं, जो इस के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि अापस का मनमुटाव भारी ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए उत्साहित हुए हैं। किसी तरह से मिट जाय । इसका सबसे आसान तरीका चिकित्सकों तथा चिकित्सा शास्त्र के प्रेमियों को इसका यही है कि लोगों में विभिन्न दलों के प्रमुख महारथियों के संग्रह कर प्रकाशक को प्रोत्साहन देना चाहिए। पुस्तक व्यक्तित्व के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो. जिससे विचारों में: का मूल्य नहीं दिया गया है। शायद वैद्यराज जी को भेद होते हुए भी व्यक्तिगत मनोमालिन्य और खींचातानी इटावे के पते पर लिखने से मिलती है। का अन्त हो जाय । दृष्टिकोण में मत-भेद होते हुए भी (२) रूप-निघंटु- यह भी एक आयुर्वेदीय कोप है हम एक दूसरे का आदर कर सकते हैं।" इसी उद्देश से और इसकी रचना श्रीयुत रूपलाल वैश्य ने की है । इसका विभिन्न दलों के प्रमुख महारथियों के खास खास उत्कृष्ट प्रकाशन काशी की नागरी-प्रचारिणी सभा कर रही है। गुणों तथा तज्जन्य प्रभावों का विशिष्ट चित्रण जनता के यह अपने विषय का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है और यह भी - सामने इस पुस्तक-द्वारा रक्खा गया है। 'चारुचरितावली' कई संख्याओं में निकलेगा। इसकी पहली संख्या में १,६३६ के पारायण से एक अलौकिक स्फूर्ति, कर्त्तव्य-परायणता, शब्द हैं और इसका मूल्य १॥ है। इसमें अोषधियों करमिट या मरमिट की सुदृढ़ भावना अनायास उदित के चित्र भी दिये गये हैं। इससे इसकी उपयोगिता हो जाती है। हारे हुओं को सान्त्वना और प्रोत्साहन और भी बढ़ गई है। परन्तु चित्र उतने स्पष्ट नहीं हैं। मिलता है और आगे बढ़नेवालों के दिल दूने हो श्रोषधियों के सम्बन्ध में आवश्यकतानुसार यूनानी तथा जाते हैं । डाक्टरी मतों का भी उल्लेख किया गया है एवं भिन्न भिन्न 'चारुचरितावली' में संगृहीत 'चरित' कई विश्रुत रोगों के सम्बन्ध में उनके उपयोगी प्रयोग भी बताये गये विद्वानों की लेखनियों से प्रसूत हुए हैं। प्रत्येक की भाषा हैं। इसका प्रकाशन भी विशेष सावधानी से किया परिमार्जित और ओजपूर्ण तथा प्रभावोत्पादक है । शैलियाँ जा रहा है। चिकित्सकों तथा चिकित्सा शास्त्र के कुछ भिन्न होते हुए भी अाकर्षक तथा प्रवाहयुक्त एवं विषय प्रेमियों को इसके ग्राहक होकर इससे लाभ उठाना के सर्वथा अनुरूप हैं। एक बात और है। इसका प्रत्येक चाहिए। चित्रण विशेष अवसर पर पड़े हुए गुण-कर्म विशेष के -- 'रामनिधि' प्रभाव को स्पष्ट रूप से व्यंजित करनेवाला है । निस्सन्देह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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