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________________ - - - DID E .. बमारे जात्रा वियानों में पानी हमारे प्रान्त के विश्वविद्यालयों में पाली भाषा का अध्ययन लेखक, बाबा राघवदास पाली किसी समय में भारतवर्ष की राष्ट्र-भाषा थी। आज भी चीन, जापान, तिब्बत आदि बौद्ध देशों पर उसका प्रभाव है । उसके अध्ययन से हिन्दू, बौद्ध और बौद्ध धर्म का पारस्परिक सम्बन्ध ही नहीं प्राचीन भारतीय संस्कृति का भी ज्ञान प्राप्त होता है । इस लेख में इसी बात का उल्लेख कर यह माँग,पेश की गई है कि अन्य विश्वविद्यालयों की भाँति यू०पी० के विश्वविद्यालयों में भी पाली के अध्ययन की व्यवस्था होनी चाहिए । - भा जरत में संयुक्त-प्रान्त प्राचीन इस प्रकार बौद्धधर्म का इस प्रान्त सं बहुत काल सं अपना एक खास घनिष्ठ सम्बन्ध है। इतना होने पर भी यह बड़े दुख स्थान रखता है। भारतीय का विषय है कि पाली-साहित्य के अध्ययन-अध्यापन संस्कृति का अधिकांश का कोई प्रबन्ध इस प्रान्त के शिक्षा-विभाग की ओर निर्माणकार्य इसी प्रान्त में से या विश्वविद्यालयों की ओर से नहीं हुआ है। TRAC हुआ है। गंगा-यमुना का दूरस्थ कलकत्ता, बम्बई तथा मदरास के विश्वZM AGN यह प्रान्त भारतीयों के विद्यालयों में तो पाली भाषा के अध्ययन-अध्यापन लिए आदर तथा गौरव का स्थान है। काशी, प्रयाग, का प्रबन्ध हो, पर इस प्रान्त के प्रयाग, लखनऊ, अयोध्या, हरिद्वार, मथुरा, वृन्दावन, बदरीनाथ, काशी, अलीगढ़ तथा आगरा, काँगड़ी के विश्वकेदारनाथ, गंगोत्तरी, यमुनोत्तरी आदि तीर्थ-स्थान विद्यालयों में इस विषय की शिक्षा के सम्बन्ध में अध्यात्म-विद्या, ऐश्वर्य तथा पावित्र्य के लिए चुप्पी साधे देखकर किसको हार्दिक दुख हुए बिना भारत में सदैव आदरणीय रहे हैं। यह तो है न रहेगा। ही। संसार के एक महान धर्म-बौद्धधर्म का आज भी पाली भाषा संसार के लगभग ४० करोड़ क्रीड़ास्थल होने के कारण भी यह प्रान्त संसार के भाई-बहनों की धर्म-भाषा है। इस भाषा में लिखा विभिन्न देशों के यात्रियों के लिए तीर्थस्थान हो हुआ साहित्य भारतीय. संस्कृति से ओतप्रोत भरा गया है। भगवान बुद्धदेव का जन्म स्थान (गोरख- हुआ है। भारतीय संस्कृति का अमर सन्देश संसार के पुर-जिले के नौतनवा स्टेशन से ८ मील दूर नेपाल- कोने कोने तक पहुँचाने में इस भाषा ने बड़ी सहायता राज्य में) लुम्बिनी, प्रथमोपदेश-स्थान काशी से ४ की है और आज भी कर रही है। जापान, चीन, मील दूर सारनाथ तथा महापारिनिर्वाण-स्थान ब्रह्मदेश, सिंहलद्वीप, तिब्बत आदि देशों के साहित्य गोरखपुर जिले में कुशीनगर (कसया) है। इसके तथा वहाँ की भाषाओं पर पाली भाषा का खास अतिरिक्त बलरामपुर आदि बौद्धों के प्रसिद्ध प्रभाव आज भी विद्यमान है। यह भारतीय संस्कृति ऐतिहासिक स्थान भा हैं। बौद्धधर्म के पाली भाषा के की विजय-पताका है। साहित्य-निर्माण में इस प्रान्त का भी हाथ रहा है। ऐसी भारतीय भाषा का स्वागत कौन न करेगा! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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