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________________ १४४ सरस्वती [भाग ३६ मुझे यहाँ दिखलाई देती थी वह और कहीं नहीं । सामने में ब्राह्मणों की ओर भक्ति होती है। दूसरे वे परदेशी बढ़ी हुई गंगा, उस पार के हरे-भरे पेड़ तथा रंग-बिरंगे ब्राह्मण थे। इसलिए दया करके हम लोगों ने पंडित जी बरसाती बादलों को देखते देखते घंटों बीत जाते थे, पर को अपने घर में टिका लिया। बाबू जी, हमारे घर में तबीअत न थकती थी। हमारे मित्र प्रसिद्ध साहित्यिक थे सब प्राणी कमाते हैं, इसलिए अन्न की कमी नहीं है। और उनके मुख से घंटों धारा-प्रवाह कवि और कविता- पर पंडित जी ने हमारा अन्न ग्रहण करना कबूल नहीं सम्बन्धी बातें सुनते रहने पर भी मेरा मन कभी नहीं किया। आप खुद खरीद कर खाते थे और दिन-रात पूजा घबराता था। किया करते थे। धीरे धीरे उनकी शोहरत महल्ले भर में हो आज कुछ बूंदा-बाँदी थी। मैंने सोचा, चलो गंगा गई और लोग अपने बच्चों को उनसे झाड़-फूंक करवाने को का आनन्द लें । मित्र के घर पर पहुँचते ही पता लगा लाने लगे। पंडित जी कुछ मंत्र पढ़कर उनकी झाड़-फूंक कि ऊपर बैठक में बैठे हैं । ऊपर जाते ही उन्होंने स्वागत कर देते और भभूत लगा देते । अक्सर बच्चों को इससे किया। उनके हाथ में सचित्र 'टाइम्स आफ इंडिया' लाभ पहुँचता । होते होते पंडित जी के इन कारनामों से था। मेरे पूछने पर कि वे कौन-सा लेख पढ़ रहे हैं, महल्ले की प्रायः सब स्त्रियाँ अवगत हो गई और दिन उन्होंने बतलाया कि लेख अफ्रीकन जादू के सम्बन्ध में भर मेरे घर पर उनकी भीड़ लगी रहने लगी। पंडित जी ने है। फिर क्या था ? जादू के बारे में बहस छिड़ गई। झाड़-फूंक कर या मार मार कर बहुतों का भूत भगा मैंने पंडित जी की बातें सुनाई और उनकी धूर्तता के बारे दिया और अब वे महल्ले में ईश्वर गिने जाने लगे । में कहा । यह बात सुनते ही उन्होंने चौंक कर कहा-हाँ, ज़रा-सी बात होते ही लोग पंडित जी के पास दौड़ आपने उनका क्या पता बतलाया ? जाते । धीरे धीरे लोगों पर पंडित जी की यह बात भी खुली ___ मैंने कहा-क्यों? मुझसे तो वह हनुमान-फाटक कि वे देवी का अावाहन भी करते हैं। फिर क्या था ? पर मिला था। कुंड की कुंड स्त्रियाँ और पुरुष देवी जी के स्थान पर एकत्र मेरे मित्र ने कहा – ठीक है । वही होगा। होते और पंडित जी देवी बुलाते। आप समझ ही इस 'वही' का मतलब मैं समझ न पाया और मैंने सकते हैं कि इन बातों से हमारे घर की स्त्रियों पर क्या पूछा- वाह जनाब ! आपने तो मुझे अजीब चक्कर में असर पड़ा होगा। वे तो उनको देवदूत या फ़रिश्ता डाल दिया । क्या आप उसे जानते हैं ? समझने लगीं। बीमारी में भी मेरे घर दवा-दारू का __ मित्र ने कहा-नहीं। मैं अोझा-पंडितों के फेर में आना बन्द हो गया, क्योंकि पंडित जी के रहते दवा की नहीं पड़ता। पर मेरे यहाँ बुद्धू नाम का एक कहार क्या आवश्यकता ? खैर, इसी बीच में ग्रहण पाया। खिदमतगार है । वह हनुमान-फाटक पर रहता है। उसी पंडित जी रात भर अपनी कोठरी में बैठे रहे। भीतर के द्वारा आप पंडित जी का हाल सुन लीजिए। केवल एक टिमटिमाता दीप जल रहा था। और पंडित बुद्धू कहीं बाहर गया था और जब तक वह वापस जी मिट्टी की एक मूर्ति पर कुछ पुष्प इत्यादि चढ़ाकर नहीं आया तब तक उसका हाल सुनने को मेरा दिल न जाने क्या पढ़ रहे थे। उनकी सख्त ताकीद थी कि बेचैन हो रहा था । आते ही वह ऊपर बुलाया गया और कोई घर के अन्दर न घुसने पावे और न कोई उनकी पूजा जो कुछ उसने कहा उसका सारांश यह है- में विघ्न करे। इस क्रिया का प्रभाव औरतों पर इतना पड़ा __ "चार-पाँच महीने हुए कि घूमते-घामते एक पंडित जी कि मैं कह नहीं सकता। दूसरे दिन पंडित जी से बहुत हमारे महल्ले में आये। बेचारे थके-माँदे थे और कहीं भारत के साथ पूछने पर पता चला कि उन्होंने ऐसा उनको ठहरने का ठिकाना नहीं मिलता था। अपना घर मंत्र सिद्ध किया है कि कोई भूत-प्रेत-पिशाच या जिन उन्होंने बलिया-ज़िला बतलाया था । साधारणतः हिन्दुओं उनके सामने टिक नहीं सकता। कुछ दिनों के बाद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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