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सरस्वती
[भाग ३६
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समझाकर मैं आगे बढ़ा। कुछ दूर आगे चिर-परिचित मैंने बैठते बैठते पूछा-पंडित जी, क्या मुझ पर देवी का मन्दिर देख पड़ा। मन्दिर बिना शिखर का था। भगवती कृपा नहीं कर सकतीं ? पर खूब स्वच्छ लिपा-पुता था । एक बरगद का वृक्ष उस कान पर हाथ रखते हुए पंडित जी ने कहा-हरे पर छाया किये हुए था । मन्दिर के पुश्ते पर एक लाल राम ! हरे राम ! श्राप कैसी बातें करते हैं ? देवी का झंडी फहरा रही थी। कुछ दूर हटकर एक चबूतरा था, अागमन केवल दर्शनियों पर होता है। भला आप पर जहाँ अक्सर महल्लेवाले आकर बकवाद किया करते थे। वे कैसे आ सकती हैं ? आप उसके पात्र नहीं हैं। . श्राज मैंने इस मन्दिर में विशेष चहल-पहल देखी । लोग मैं अभी पंडित जी से कुछ और बहस करता, पर उत्सुकता-पूर्वक बाहर-भीतर आ-जा रहे थे और कुछ जनता में उत्सुकता बढ रही थी और मुझे देख-देखकर 'औरतै मन्दिर के दालान में सिर खोले हुए बैठी थीं। लोग आपस में बात-चीत करते थे। मैंने समझा, इस समय पूछने पर पता लगा कि बाहर के एक मशहूर अोझा चुप रहना ही ठीक है। आज अपने ऊपर तथा कुछ औरतों के ऊपर देवी का थोड़ी देर में कार्यारंभ हुआ। सर्वप्रथम पंडित जी ने आवाहन करनेवाले हैं। फिर क्या था ? मैं अपने और देवी की पुष्प-धूप-दीप नैवेद्य-द्वारा पूजा की। देवी के सब कामों को भूलकर झट मन्दिर में घुस गया और सामने एक घड़ा धार* से भरा हुअा रक्खा था। भक्तगण देवी को नमस्कार करके ज्योंही बग़लवाले दालान में अपने घर से धार लाकर उस घड़े में डाल रहे थे। बाहर आया, देखा कि हमारे गाड़ीवाले साथी पंडित जी धोती- निकलकर पंडित जी फिर कुशासन पर बैठ गये और कुछ दुपट्टा पहने माथे पर लाल टीका लगाये तथा लाल फूलों देर तक ध्यान करते रहे। फिर उनका शरीर काँपा और की एक माला पहने एक कुशासन पर बैठे हैं और जो ज़ोरों से हिलने लगे । देवी उन पर सवार हो गई थीं। अब कोई आता है बड़े भक्ति-भाव से उनका चरण छूता लोग दौड़ दौड़कर उनका चरण छूने लगे और भाँति है। मेरा मन पुलकित हो उठा । पंडित जी की रेलवाली भाँति के प्रश्न पूछने लगे। कोई पूछता, हमको कब सब बातें याद हो आई । सोचा चलो, आज का इधर लड़का होगा। देवी उसको व्रत रखने का उपदेश देतीं । अाना सुफल हुअा। पंडित जी के सब करिश्मे देखेंगे। कोई पूछता, हमारे ऊपर हमारा शत्रु मारण-मंत्र कर पास जाकर मैंने कहा-पंडित जी, प्रणाम।
रहा है। देवी बोलतीं, अोझा से मिल । मैं उनसे सब ____ मालूम पड़ता था, पंडित जी मुझसे वहाँ मिलने को बातें कह दूँगी । सब भला हो जायगा। एक औरत ने प्रस्तुत न थे। मुझको देखते ही उनका चेहरा फक पड़ पूछा, मेरे पति दूसरे के प्रेम में फँसे हैं । हे देवी माई, वह गया, फिर भी अपने को सँभाल कर बोले-अाइए बाबू कौन औरत है ? देवी जी ने कहा, काले रंग की औरत साहब, बहुत दिनों के बाद मुलाकात हुई। देखिए संयोग है। पड़ोस में रहती है । देवी को खसी मान दे । वह तेरे की बात है। आज मैं आपसे मिलनेवाला ही था, पर पति को आप छोड़ देगी। इसी तरह के व्यर्थ प्रश्न होते आप खुद ही मिल गये। मैंने कहा-पंडित जी, सब जाते थे और पंडित जी नहीं, देवी जी अंड-बंड उत्तर अापकी कृपा है। श्राज श्राप पर भगवती की कृपा होगी। देती जाती थीं। अब देवी जी पंडित जी के सिर से उतरने हम भी दर्शन करने के लिए आ पहुंचे।
ही वाली थीं। वे उठकर बावलों की तरह नाचने लगे ___पंडित जी ने कहा-हाँ, आज आप हम लोगों और लगे चिल्लाने-दे धार ! दे धार! दर्शकगण तो उनकी के तंत्र-शास्त्र का प्रभाव देख लेंगे। सामने बैठी बातें समझ गये और एक एक करके मन्दिर में घुसने स्त्रियों को श्राप देख रहे हैं। सबके पहले देवी मुझ पर कृपा करेंगी, फिर इन सब स्त्रियों पर | श्राप * एक तरह का शरबत जो चिरौंजी, गरी, लौंग इत्यादि इधर बैठिए ।
मिलाकर बनाया जाता है।
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