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________________ सरस्वती [भाग ३६ कर दिया जाता है। वे साथ साथ खाते हैं, साथ साथ कर लिये हैं और अपने व्यवसाय में उन्नति करने के खेलते हैं, साथ साथ टहलते हैं और अपने अपने लिए इन देशों से वे समुचित सलाह पाते रहते है। जीवन के दृष्टिकोणों के सम्बन्ध में परस्पर विचार- पाश्चात्य वेषभूषा और रहन-सहन को वे शीघ्रता के विनिमय करते हैं। विभिन्न स्वभावों और विचित्र साथ अपनाते जा रहे हैं। जापान को वे भय के भाव रुचियों के लोग परस्पर एक दूसरे को करीब से देखते से देखते हैं और वे जानते हैं कि वे शीघ्रता के साथ हैं और अपने देश और अपने रहन-सहन की मर्यादा जापानी तरीकों का अनुसरण करके ही सफलता का परिचय देते हैं। कदाचित् शरीर-विज्ञान की दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं। हम भारतीय विदेश जानेसे मनुष्य के अध्ययन के लिए इन कुछ दिनों के उदा- वाले अनेक भारतीय विद्यार्थियों के अनुभवों से लाभ हरणों से बढ़कर उदाहरण नहीं मिल सकते जब हम उठाने से वञ्चित रह जाते हैं। इसका एक बड़ा सजायहाँ चीनियों, जापानियों, जावावासियों, इटालियनों, तीय कारण यह है कि हम अपने विद्यार्थियों को फिलिपाइनवालों और भूमंडल के कोने कोने के लोगों पारिभाषिक तरीकों के अध्ययन करने के लिए बहुत से मैत्री-सूत्र में आबद्ध होते हैं। थोड़ा समय देते हैं। तीन वर्ष का कोर्स काफ़ी नहीं __यह मेरी प्रथम समुद्र-यात्रा थी, इसलिए मुझमें होना चाहिए। हमारे नवयुवकों को व्यवसाय और पास-पड़ोस के सम्बन्ध में पूछताछ करने का विशेष उत्पादन में प्रयुक्त होनेवाले विभिन्न पारिभाषिक तरीकों भाव पैदा हुआ। मैंने यह निश्चय किया कि मैं बहुत- का अध्ययन और अभ्यास करने के लिए योरप में से लोगों का परिचय प्राप्त करूँगा। इस यात्रा से मुझे लगभग दस वर्ष दत्तचित्त होकर रहना चाहिए दूसरे देशों की स्थिति-राजनैतिक और आर्थिक दोनों ताकि वे प्रत्येक व्यवसाय में वह पारिभाषिक दक्षता के जानने का यथेष्ट अवसर मिला। चीन के एक प्रधान और ज्ञान प्राप्त कर लें जो उन्हें अपने पूर्ण पारिभाव्यापारी से, जो चीन की वर्तमान स्थिति समझाने षिक ज्ञान के द्वारा दूसरे देशों से प्रतिद्वन्द्विता करने के लिए लेबर कान्फरेंस में भाग लेने जनेवा जा रहे में समर्थ बनाये। हैं, मेरो घनिष्ठतापूर्ण बातें हुई। यह देखकर मुझे मेरे मित्र जावा-निवासी मिस्टर इस्सर ने मुझसे आश्चर्य हुआ कि चीनी व्यापारी कितनी सतर्कता जावा के सामाजिक और आर्थिक जीवन का बड़ा दिलके साथ पाश्चात्य तरीकों का अनुसरण कर रहे हैं। चस्प वर्णन किया। उन्होंने अच्छी डच-सरकार के कोड़ियों चीनी नवयुवक काहिल चीन को व्यावसायिक सम्बन्ध में अपनी इस टिप्पणी पर जोर दिया कि रूप देने के निश्चित उद्देश स शिक्षा ग्रहण करने के लिए. वहाँ वर्णगत भेद-भाव नहीं है। वे एम्सटर्डन जा दूसरे देशों को गये हैं। वस्त्र, चीनी, इनेमिलिङ्ग, काँच रहे हैं। वहाँ वे अपने परिवार को छोड़ देंगे और और मिट्टी के बर्तनों आदि के अब वहाँ तमाम कारखाने तब अटलांटिक पार करके दक्षिणी अमर खुल गये हैं। यह सच है कि बड़े पैमाने पर इन चीजों पिता से मिलने जायँगे। मैं ने उनसे एम्सटर्डन में का निर्माण करने में वे जापान से बहुत पीछे हैं, जैसा मिलने का वादा किया। वे बहुत अच्छे और प्रसन्नकि मेरे चीनी मित्र ने स्वीकार किया, पर अपने चित्त अधेड़ पुरुष हैं। वे सदैव मुस्कुराते हुए मिलते तरीकों में सुधार करते हुए वे क्रमशः आगे बढ़ रहे और सवेरे ऊपरी डेक पर टहलते समय हर किसी हैं। बहुत-से नवयुवक व्यवसाय को प्रभावित करने से, जो मिलता, परिचय प्राप्त करने को तैयार रहते। वाली समस्याओं का अध्ययन करने के लिए जर्मनी ये दस दिन पहाड़ हो जाते हैं। यद्यपि समय और अमरीका गये है। अमरीका और जर्मनी के काटने के लिए आनन्द-विनोद की यथेष्ट सामग्री साथ उन्होंने अच्छे व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित रहती है, तथापि उन आनन्दों में लिप्त होना बहुतों के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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